Bhagalpur News: भागलपुर के तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से जुड़ी एक अहम ऐतिहासिक खोज ने एक बार फिर चंपा की प्राचीन विरासत को चर्चा में ला दिया है। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की सर्वेक्षण टीम को चंपा टीले के अध्ययन के दौरान शुंग और कुषाण काल से जुड़े कई महत्वपूर्ण पुरावशेष मिले हैं। यह सर्वेक्षण विभाग के सेमेस्टर-एक और तीन के छात्र-छात्राओं और शोधार्थियों ने शिक्षकों के मार्गदर्शन में किया।
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चंपा टीले पर हुआ सर्वेक्षण (Bhagalpur News)
यह सर्वेक्षण हाल ही में चंपा टीले पर किया गया, जिसे आज कर्णगढ़ के नाम से जाना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से यही स्थान प्राचीन अंग महाजनपद की राजधानी चंपा माना जाता है। वर्तमान समय में इसी टीले पर आरक्षी प्रशिक्षण महाविद्यालय संचालित है। सर्वेक्षण दल ने खासतौर पर उन ट्रेंच यानी खातों का अध्ययन किया, जहां 1960-70 के दशक में पटना विश्वविद्यालय द्वारा प्रो. बीपी सिन्हा के निर्देशन में उत्खनन कराया गया था।
पहली-दूसरी शताब्दी में बौद्ध प्रभाव के संकेत
सर्वेक्षण के दौरान टीम को ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो बताते हैं कि पहली और दूसरी शताब्दी के बीच इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव काफी मजबूत था। विभागाध्यक्ष प्रो. अमर कांत सिंह के अनुसार, यहां छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर शुंग-कुषाण काल और उसके बाद के दौर तक के अवशेष मिले हैं, जो इस क्षेत्र की लगातार बसावट और प्रशासनिक महत्व को दर्शाते हैं।
मनौती स्तूप बना सबसे खास खोज
इस सर्वेक्षण की सबसे बड़ी उपलब्धि टेराकोटा यानी मिट्टी से निर्मित मनौती स्तूप को माना जा रहा है। यह स्तूप शुंग-कुषाण काल का प्रतीत होता है और बौद्ध परंपरा से जुड़ा हुआ माना जा रहा है। इसके अलावा एनबीपीडब्ल्यू (नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर), रेड वेयर, मृदभांड, हैंडलयुक्त कढ़ाई, टोंटीदार पात्र, प्यालानुमा पात्र, गोफन गुल्ला, धातुमल, ढक्कन, हांडी की गर्दन के हिस्से, टेराकोटा मूर्तियां और मनके (बीड्स) भी बड़ी संख्या में मिले हैं।
सर्वेक्षण दल और मार्गदर्शन
इस पूरे सर्वेक्षण का निर्देशन विभागाध्यक्ष प्रो. अमर कांत सिंह के साथ-साथ डॉ. उमेश तिवारी, डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता और डॉ. आशा कुमारी ने किया। शोध छात्र फैसल, आइसा, सुमन, रितेश, आनंद, विनित और घनश्याम जैसे कई विद्यार्थी इस दल का हिस्सा रहे।
चंपा टीले के संरक्षण की जरूरत
प्रो. सिंह का कहना है कि चंपा टीला अंग महाजनपद के गौरव का जीवंत प्रमाण है। पहले चरण के उत्खनन में यहां छठी शताब्दी ईसा पूर्व की काली मिट्टी की प्राचीर मिली थी, जबकि दूसरे चरण में शुंग-कुषाण कालीन मोटी ईंटों की दीवारें सामने आई थीं। इससे साफ होता है कि यह स्थान लंबे समय तक प्रशासनिक केंद्र रहा। ऐसे में पुरातात्विक दृष्टि से इसका संरक्षण बेहद जरूरी है।
अंग संस्कृति का पालना रही चंपा
इतिहासकारों के अनुसार, चंपा नदी के तट पर बसी यह नगरी प्राचीन काल से ही सुख-समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता का केंद्र रही है। यहां शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध और जैन सभी परंपराएं साथ-साथ फली-फूलीं। मनसा विषहरी की लोकगाथा से लेकर जैन सूत्रों तक, इस भूमि पर हर धर्म की छाप दिखाई देती है।
गौतम बुद्ध और चंपा का गहरा रिश्ता
बौद्ध ग्रंथों में चंपा का विशेष उल्लेख मिलता है। बताया जाता है कि गौतम बुद्ध अपने अंग प्रवास के दौरान गग्गरा पुष्करिणी के पास ठहरते थे। बुद्धचर्या, दीघनिकाय और अंगुत्तर निकाय जैसे ग्रंथों में चंपा को एक समृद्ध और उन्नत नगर बताया गया है। बुद्ध के जीवनकाल में उन्होंने केवल छह प्रमुख नगरों का भ्रमण किया था, जिनमें चंपा भी शामिल था।
जैन धर्म के लिए भी पवित्र भूमि
चंपा जैन धर्मावलंबियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। 12वें जैन तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य की जन्मस्थली होने के साथ-साथ यह उनकी पंचकल्याणक भूमि भी मानी जाती है। भगवान महावीर ने यहां तीन वर्षामास बिताए थे और उनकी प्रमुख शिष्या चंदनबाला भी यहीं की थीं।
प्राचीन व्यापार और समृद्धि का केंद्र
चंपा सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण रही है। चंपा नदी के जरिए यहां से बड़े पैमाने पर आंतरिक और विदेशी व्यापार होता था। बौद्ध जातक कथाओं और अन्य ग्रंथों में गंगा मार्ग से बंगाल की खाड़ी और आगे दक्षिण-पूर्व एशिया तक व्यापार के उल्लेख मिलते हैं। जवाहरलाल नेहरू ने भी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में चंपा के व्यापारिक महत्व का जिक्र किया है।
एक सुनियोजित प्राचीन नगरी
इतिहासकार मानते हैं कि चंपा एक व्यवस्थित और योजनाबद्ध नगर था। उर्वर भूमि, सुगंधित चावल, स्वर्ण आभूषण निर्माण और अंतरराष्ट्रीय व्यापार ने इसे प्राचीन भारत के प्रमुख नगरों में शामिल किया। आज चंपा टीले पर मिले नए पुरावशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह क्षेत्र न सिर्फ इतिहास में, बल्कि भविष्य में भी शोध का बड़ा केंद्र बन सकता है।
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