Bhim Janmabhoomi dispute: महू स्थित संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि से जुड़ा राष्ट्रीय स्मारक एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी, महू में कथित तौर पर हुई गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, फर्जीवाड़े और सत्ता हथियाने के आरोपों ने इस ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय महत्व के स्मारक की गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला अब न्यायिक दायरे में है और हाईकोर्ट के आदेश के बाद पंजीयक कार्यालय भोपाल में 12 दिसंबर को पहली आधिकारिक सुनवाई तय की गई है।
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क्या है पूरा विवाद (Bhim Janmabhoomi dispute)
दरअसल, डॉ. अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी में कुल 23 वैध सदस्य हैं। आरोप है कि इनमें से अल्पमत में रहने वाले केवल तीन लोगों राजेश वानखेड़े, उनके मामा अरुण कुमार इंगले और कार्यकारी अध्यक्ष पद के दावेदार साहित्यकार अनिल गजभिए ने आपराधिक षड्यंत्र रचकर सोसायटी पर कब्जा करने की कोशिश की। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इन तीनों ने नकली बहुमत दिखाने के लिए अपने भाई, भतीजों, रिश्तेदारों और पद व प्रतिष्ठा के लालची लोगों को फर्जी तरीके से सदस्य बना दिया।
इतना ही नहीं, आरोप यह भी है कि रात के अंधेरे में राष्ट्रीय स्मारक के ताले तोड़े गए, वैध सदस्यों को जान से मारने की धमकियां दी गईं और सोसायटी की संपत्ति पर अवैध कब्जा किया गया। यह सब उस स्मारक के साथ हुआ, जिसे देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बाबासाहेब के अनुयायी सम्मान की नजर से देखते हैं।
राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक लापरवाही के आरोप
मामले में इंदौर के सहायक पंजीयक पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कहा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय महत्व के इस स्मारक से जुड़े मामले में सहायक पंजीयक ने राजनीतिक दबाव में आकर जानबूझकर अनदेखी की और नियमों के मुताबिक कार्रवाई नहीं की। इस कथित लापरवाही का खामियाजा यह हुआ कि पीड़ित और वैध सदस्यों को जेल तक जाना पड़ा।
गौरतलब है कि इसी सहायक पंजीयक बी.डी. कुबेर को लोकायुक्त पुलिस ग्वालियर ने 20 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़ा था। इसके बावजूद सोसायटी विवाद में समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, जिससे मामला और उलझता चला गया।
मजबूरी में हाईकोर्ट की शरण
जब दो-तिहाई बहुमत रखने वाले वैध सदस्यों की शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं हुई, तो आखिरकार उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इस संबंध में याचिका क्रमांक 22207/2024 दायर की गई। याचिका में न सिर्फ असंवैधानिक तरीके से समिति गठन का मुद्दा उठाया गया, बल्कि गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, फर्जी सदस्यता और दस्तावेजों में हेराफेरी की जांच की मांग भी की गई।
हाईकोर्ट ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए 3 नवंबर 2025 को आदेश जारी किया। अदालत ने उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव, भोपाल और पंजीयक फर्म्स एवं सोसायटीज, भोपाल को निर्देश दिए कि वे सोसायटी के विधान के नियम 21 और मध्यप्रदेश सोसायटी अधिनियम की धारा 32 के तहत शीघ्र और निर्णायक कार्रवाई करें।
12 दिसंबर को अहम सुनवाई
हाईकोर्ट के आदेश के बाद पंजीयक कार्यालय भोपाल ने 12 दिसंबर को इस मामले में पहली सुनवाई की तारीख तय की है। यह सुनवाई इसलिए भी अहम मानी जा रही है, क्योंकि इसमें यह तय होगा कि सोसायटी की मौजूदा स्थिति, कथित फर्जी सदस्यता और वित्तीय गड़बड़ियों पर आगे क्या कदम उठाए जाएंगे।
सोसायटी के बहुमत वाले सदस्यों को उम्मीद है कि अब उन्हें न्याय मिलेगा और स्मारक की गरिमा को नुकसान पहुंचाने वालों पर कार्रवाई होगी।
आरोपों की परतें और ‘फर्जी सचिव’ की भूमिका
शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि निष्कासित सचिव राजेश वानखेड़े ने अपने प्रभाव और नेटवर्क का इस्तेमाल कर न सिर्फ फर्जी सदस्य बनाए, बल्कि विरोध करने वाले सदस्यों को झूठे मामलों में फंसाने की भी कोशिश की। इसके लिए महू और इंदौर के थानों के साथ-साथ कई शासकीय कार्यालयों में बेबुनियाद शिकायतें दी गईं।
इन शिकायतों के पीछे जिन लोगों की भूमिका बताई जा रही है, उनमें नगर निगम का एक मस्टरकर्मी सुभाष रायपुरे प्रमुख है। उस पर आरोप है कि वह आदतन फर्जी शिकायतकर्ता है और उसने निजी संस्था के लेटरपैड पर भारत सरकार के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का दुरुपयोग कर कई झूठी शिकायतें कीं। यह काम वह पहले भी करता रहा है।
दूसरा नाम रवि वानखेड़े का सामने आता है, जो नगर निगम के बिल्डिंग परमिशन विभाग में मस्टरकर्मी है और राजेश वानखेड़े का सगा भाई बताया जा रहा है। आरोप है कि वह अवैध वसूली और मोटी उगाही के लिए पूरे महकमे में कुख्यात है। कुछ समय पहले निर्माणाधीन भवन के एक ठेकेदार पर काम रुकवाने और अवैध वसूली का दबाव बनाने का वीडियो भी मीडिया में वायरल हुआ था।
दस्तावेजी जालसाजी और आईटी एक्सपर्ट की भूमिका
मामले में तीसरा अहम नाम विनोद मेघवाल का है, जिसे आईटी एक्सपर्ट बताया जा रहा है। वह मध्यप्रदेश शासन के उपक्रम इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन में सर्वेयर के पद पर कार्यरत है। आरोप है कि वह समिति के दस्तावेजों और कंप्यूटर से जुड़ी जालसाजी में माहिर है और फर्जी कागजात तैयार करने में उसकी अहम भूमिका रही है।
इसके अलावा एक और निगम मस्टरकर्मी पर आरोप है कि वह खुद को जोन प्रभारी बताकर लोगों को धमकाता रहता है। फर्जी सचिव की इस कथित टीम में भंते धम्मदीप, माणिकराव तायडे, दिनेश सोनोने, दुर्गेश राठौर, योगेंद्र गवांदे, नानेश तायड़े, अमोल इंगले और सुमित चौहान जैसे कई अन्य नाम भी शामिल बताए जा रहे हैं।
अंबेडकर जयंती और राजनीतिक-आर्थिक फायदा?
शिकायतकर्ताओं का यह भी कहना है कि आगामी 14 अप्रैल को होने वाली अंबेडकर जयंती के आयोजन से राजनीतिक और आर्थिक फायदा उठाने के मकसद से भी यह पूरा खेल खेला गया। जो सदस्य अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, उन्हें दबाने और बदनाम करने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं।
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