Bihar SIR Fraud: अजीत अंजुम ने पटना के एक ब्लॉक कार्यालय में रिपोर्टिंग करते हुए दिखाया कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) द्वारा फर्जी तरीके से मतदाता फॉर्म पर दस्तखत किए जा रहे थे। उनके मुताबिक, ऐसे कई मामले सामने आए, जहां मतदाताओं ने न तो फॉर्म भरे थे और न ही हस्ताक्षर किए थे, फिर भी उनके नाम से फर्जी दस्तखत कर फॉर्म अपलोड कर दिए गए थे। उन्होंने वीडियो में यह भी बताया कि कुछ मृतकों के नाम पर भी फॉर्म जमा किए गए, जो चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
एफआईआर: सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप- Bihar SIR Fraud
अजीत अंजुम के खुलासे के बाद, बेगूसराय जिला प्रशासन ने उन पर एफआईआर दर्ज कर दी। आरोप है कि उन्होंने सरकारी काम में बाधा डाली और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसकर रिपोर्टिंग की। अजीत अंजुम के खिलाफ यह मामला बलिया थाना में दर्ज किया गया, और इसमें उन पर सांप्रदायिक तनाव फैलाने और झूठी जानकारी फैलाने का आरोप भी लगाया गया है। एफआईआर में कहा गया कि अजीत अंजुम और उनकी टीम बलिया प्रखंड सभागार में वोटर लिस्ट से संबंधित काम में व्यवधान उत्पन्न कर रहे थे।
बिहार में ‘SIR’ के नाम पर ये क्या हो रहा है ? pic.twitter.com/sjNSzO4upx
— Ajit Anjum (@ajitanjum) July 19, 2025
प्रशासन का आरोप: गलत जानकारी फैलाने की कोशिश
बेगूसराय जिला प्रशासन ने 13 जुलाई को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए आरोप लगाया कि अजीत अंजुम ने वोटर लिस्ट सुधार कार्य के दौरान झूठी और भ्रामक जानकारी फैलाई, जिससे समाज में भेदभाव और तनाव पैदा हो सकता था। प्रशासन का कहना है कि अजीत अंजुम ने बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसकर निजी दस्तावेजों को दिखाया और सांप्रदायिकता को भड़काने की कोशिश की। इस वीडियो को लेकर प्रशासन ने चेतावनी दी कि अगर इस वीडियो के कारण किसी अप्रिय घटना का सामना करना पड़ा, तो उसकी जिम्मेदारी अजीत अंजुम और उनके सहयोगियों की होगी।
राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल
अजीत अंजुम के खुलासे के बाद, इस मुद्दे ने बिहार में राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह मामला एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। विपक्षी दलों, विशेषकर आरजेडी और कांग्रेस, ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी जैसे प्रमुख नेताओं ने इस वीडियो को शेयर करते हुए वोट चोरी और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। तेजस्वी यादव ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार देते हुए कहा कि इस प्रकार की गतिविधियों के जरिए गरीब और अल्पसंख्यक वोटरों को वोट देने से वंचित किया जा सकता है।
राहुल गांधी ने भी इस पर ट्वीट करते हुए कहा, “चुनाव आयोग एसआईआर के नाम पर वोट चोरी कर रहा है। क्या चुनाव आयोग अब बीजेपी का चुनाव चोरी विंग बन चुका है?” दोनों नेताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग और सरकार मिलकर चुनावी प्रक्रिया को पक्षपाती बना रहे हैं, जिससे चुनावी निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो रहा है।
चुनाव आयोग का मौन
अजीत अंजुम के वीडियो के बाद चुनाव आयोग की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। आयोग ने न तो इस वीडियो पर कोई बयान जारी किया और न ही इस पर कोई स्पष्टीकरण दिया। इस चुप्पी ने विपक्षी दलों के आरोपों को और मजबूत किया है। हालांकि, बेगूसराय जिला प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है, लेकिन चुनाव आयोग की मौन स्थिति पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
मृतकों के नाम पर फर्जी फॉर्म्स: गंभीर आरोप
अजीत अंजुम ने यह भी बताया कि एक शख्स का मृतक माता-पिता का नाम पर फॉर्म अपलोड कर दिया गया था। इस गंभीर आरोप ने चुनावी प्रक्रिया की सटीकता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। यह साफ करता है कि चुनावी प्रक्रिया में कई गड़बड़ियां हैं, जो निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए खतरा बन सकती हैं। यह भी सवाल उठाता है कि ये फर्जी फॉर्म कौन अपलोड कर रहा था और इसका उद्देश्य क्या था?
कांग्रेस और आरजेडी का आरोप: वोट चोरी की साजिश
विपक्षी दलों ने इस मामले को वोट चोरी की साजिश करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग और बीजेपी मिलकर मदद कर रहे हैं ताकि गरीब, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों को बाहर किया जा सके। महुआ मोइत्रा जैसे नेताओं ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है और सुप्रीम कोर्ट में इस प्रक्रिया को रोकने के लिए याचिका दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल दिया है। 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस मामले में जवाब देने को कहा था। उन्होंने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे सामान्य दस्तावेजों को स्वीकार किया जाए। 25 जुलाई तक चुनाव आयोग को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया है, और 28 जुलाई को इस मामले पर अगली सुनवाई होनी है।
चुनावी प्रक्रिया पर संदेह और सवाल
अजीत अंजुम के वीडियो और खुलासे ने बिहार में चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग की भूमिका पर विपक्षी दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया भाजपा के पक्ष में काम कर रही है। यदि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दखल नहीं होता है, तो यह मामले और अधिक बढ़ सकते हैं और बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान यह बड़ा मुद्दा बन सकता है।
राजनीतिक विवाद और प्रशासनिक कार्यवाही ने इस मामले को और भी जटिल बना दिया है। अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और क्या यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी हो सकेगी या इसके खिलाफ और खुलासे होंगे।