Bihar SIR News: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। निर्वाचन आयोग द्वारा कराए गए विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) के तहत हजारों मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि कई जिंदा लोगों को भी मृत घोषित कर दिया गया है। इस प्रक्रिया पर विपक्ष पहले से ही सवाल उठा रहा था, और अब मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। भोजपुर जिले के एक मजदूर मतदाता ने अदालत में पेश होकर बताया कि बिना किसी सूचना या सत्यापन के उन्हें मृत बताकर मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया। मामला सामने आने के बाद राज्य में मतदाता अधिकारों और चुनावी पारदर्शिता को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
मिंटू पासवान ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई गुहार- Bihar SIR News
दरअसल भोजपुर जिले के आरा विधानसभा क्षेत्र से आने वाले मतदाता मिंटू पासवान ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मिंटू पासवान (उम्र 41 वर्ष, पिता उदय पासवान) ने बताया कि मतदाता सूची संशोधन के दौरान बीएलओ ने उन्हें बिना कोई सूचना दिए “मृत” घोषित कर दिया और मतदाता सूची से उनका नाम हटा दिया।
उन्होंने कोर्ट को बताया कि वे आरा नगर निगम के वार्ड नंबर 1, सिंगही कला के मतदान केंद्र संख्या 92 (पुराना) और 100 (नया) के नियमित मतदाता रहे हैं। उनका पुराना इपिक नंबर 0701235 है। मिंटू पेशे से मजदूर हैं और मैट्रिक पास हैं।
बिना सत्यापन ही काटा नाम
मिंटू का आरोप है कि बीएलओ उनके पास सत्यापन के लिए कभी आए ही नहीं। वह वार्ड पार्षद से बात कर चले गए और बाद में पता चला कि उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। जब उन्होंने शिकायत दर्ज कराई, तो बीएलओ करीब 10 दिन बाद आए और नाम दोबारा जोड़ने के लिए दस्तावेज़ों की लंबी सूची मांगने लगे।
एक नहीं, कई ‘जिंदा’ मतदाताओं के नाम हटा
मिंटू के अनुसार, यह गड़बड़ी सिर्फ उनके साथ नहीं हुई। उनके ही वार्ड की 69 वर्षीय फुलझारो देवी (पति कमला यादव, इपिक नंबर 2457935) का नाम भी मृत बताकर हटा दिया गया। वह वर्षों से मतदान करती आ रही हैं।
इसी तरह, वार्ड नंबर 35, धरहरा के निवासी:
- शंकर चौहान (उम्र 64, इपिक नंबर 903331)
- मदन चौहान (उम्र 73, इपिक नंबर 1309913)
- सुधा देवी (उम्र 34, इपिक नंबर 1520642)
का नाम भी मृत घोषित कर सूची से हटा दिया गया है। इन सभी ने दावा-आपत्ति का फॉर्म भरकर अपनी शिकायत दर्ज की है।
बीएलओ की कार्यशैली पर उठे सवाल
इन सभी मामलों में एक बात समान रही बीएलओ ने बिना सत्यापन किए या संबंधित मतदाता से संपर्क किए बिना ही उनका नाम मृत बताकर काट दिया। जबकि चुनाव आयोग की ओर से बीएलओ को सख्त निर्देश दिए गए थे कि वे घर-घर जाकर सत्यापन करें। इससे मतदाता अधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।
विपक्ष का आरोप: जानबूझकर हो रही छंटनी
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया सिर्फ तकनीकी खामी नहीं है, बल्कि सुनियोजित तरीके से खास वर्गों के लोगों को सूची से हटाने की साजिश है। इससे विधानसभा चुनाव में मतदाता गणना और नतीजों पर असर पड़ सकता है।
चुनाव आयोग की चुप्पी, सुप्रीम कोर्ट की नजर
वहीं, इस पूरे विवाद पर अभी तक निर्वाचन आयोग की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है और अब सबकी नजर अदालत के रुख पर टिकी है।