Buddhist pilgrimage: उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले का नाम आते ही इतिहास, आस्था और अध्यात्म की एक अनोखी छवि सामने आ जाती है। यमुना तट पर बसा यह शहर न सिर्फ प्राचीन काल से समृद्ध रहा है, बल्कि इसे भगवान बुद्ध की नगरी के रूप में भी पूरी दुनिया में जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल में यहीं चातुर्मास बिताया था। यही वजह है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए कौशांबी की यात्रा एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव मानी जाती है।
इतिहासकार बताते हैं कि प्राचीन समय में कौशांबी को ‘कोसम’ या ‘कोसम ईनाम’ के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहीं अपनी साधना की थी। बौद्ध अनुयायियों का यह भी विश्वास है कि जब तक वे कौशांबी नहीं आते, उनकी तीर्थ यात्रा अधूरी रहती है। इसी वजह से हर साल श्रीलंका, कम्बोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और अन्य देशों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
बौद्ध और जैन धर्म का संगम स्थल- Buddhist pilgrimage
कौशांबी केवल बौद्ध धर्म ही नहीं, बल्कि जैन धर्म के इतिहास में भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कहा जाता है कि भगवान महावीर और भगवान बुद्ध, दोनों ही इस पवित्र भूमि पर आए थे। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में कौशांबी की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण रही कि यह स्थान एक समय आध्यात्मिक शिक्षाओं का केंद्र बन गया था। यहां के खंडहरों, स्तूपों और पुरातात्विक अवशेषों में आज भी उस गौरवशाली काल की झलक देखी जा सकती है।
विदेशी सरकारों ने बनवाए भव्य मंदिर
कौशांबी की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय पहचान को देखते हुए श्रीलंका और कम्बोडिया की सरकारों ने यहां भगवान बुद्ध को समर्पित भव्य मंदिर बनवाए हैं। ये मंदिर कौशांबी की पहचान को न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक नई ऊंचाई पर पहुंचाते हैं। मंदिरों की वास्तुकला में एशियाई शिल्पकला की झलक देखने को मिलती है, जो श्रद्धालुओं के लिए बेहद आकर्षण का केंद्र है।
हर साल हजारों की संख्या में विदेशी पर्यटक और बौद्ध अनुयायी यहां आते हैं, ध्यान लगाते हैं और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को करीब से महसूस करते हैं। मंदिर परिसर में फैली शांति और अध्यात्म का वातावरण हर किसी को भीतर तक छू जाता है।
पर्यटन में बाधा बन रही ठहरने की कमी
हालांकि, एक बड़ी समस्या यह है कि कौशांबी में अभी भी रात्रि ठहरने की पर्याप्त सुविधा नहीं है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन के बाद शाम ढलते ही वापस लौटना पड़ता है। कई यात्री चाहते हैं कि वे यहां रुककर ध्यान और साधना करें, लेकिन ठहरने की सीमित व्यवस्था उन्हें ऐसा करने से रोक देती है।
अगर यहां रात्रि विश्राम और पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं को और विकसित किया जाए, तो यह न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए राहत भरा कदम होगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार के नए रास्ते भी खोलेगा।
कौशांबी की यह ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यहां की मिट्टी में आज भी बुद्ध के उपदेशों की वह शांति और करुणा महसूस की जा सकती है, जो हजारों साल पहले उन्होंने मानवता को सिखाई थी।
