Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का हिल स्टेशन मैनपाट, जिसे लोग प्यार से ‘छत्तीसगढ़ का शिमला’ कहते हैं, अपनी हरियाली, ठंडी हवाओं और मनोरम नजारों के लिए हमेशा पर्यटकों को लुभाता रहा है। गर्मियों में यह पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है और सर्दियों में तापमान कई बार 2-3 डिग्री तक गिरकर यहां का मिज़ाज और भी रोमांचक बना देता है। लेकिन अब इस प्राकृतिक जन्नत की खूबसूरती पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि मैनपाट की हरी-भरी घाटियों और पहाड़ों की जगह खनन की खाइयों और रिजॉर्ट्स की इमारतों ने ले ली है। सवाल यह है कि अगर प्राकृतिक सुंदरता ही खत्म हो गई, तो पर्यटक यहां क्यों आएंगे? वहीं आदिवासी और ग्रामीण अपनी जमीन, घर और जीवन बचाने के लिए आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
पर्यटन और खनन का टकराव (Chhattisgarh News)
स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले भी इलाके में बाक्साइट खनन चलता रहा है, लेकिन अब नए खदानों के खुलने की तैयारी ने चिंता बढ़ा दी है। बताया जा रहा है कि बतौली विकासखंड के चिरगा में प्रस्तावित एलुमिना प्लांट के लिए खदानों का आबंटन शुरू हो चुका है।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर खदान खोली गई तो उन्हें अपने घर और जमीन छोड़नी पड़ सकती है। स्थानीय बीजेपी विधायक प्रबोध मिंज भी मानते हैं कि मैनपाट में पर्यटन और खनन दोनों एक साथ नहीं चल सकते।
ग्रामीणों की आवाज़ और विरोध
स्थानीय लोग अपने घर, खेत और जीवन को बचाने के लिए खड़े हैं। दीनानाथ नामक निवासी ने कहा, “जब जनसुनवाई होगी तो हम इसका विरोध करेंगे। खदान खुली तो हम कहां जाएंगे? हमारे परिवार की जिम्मेदारी कौन उठाएगा? दबाव डाला गया तो हम अपनी आवाज बुलंद करेंगे।”
तीन पंचायतों के किसान मिलकर खदान के खिलाफ खड़े हैं। राम सिंह ने बताया,
“खदान खुली तो खेत और बाड़ी सब चौपट हो जाएंगे। पहले भी जहां खदान खोली गई, वहां खेती बर्बाद हो गई।”
राम प्रसाद कहते हैं, “हमारा छोटा सा गांव है, हम कहां जाएंगे? खेती और जीविकोपार्जन के लिए यही जगह बची है।”
स्थानीय युवा लव दुबे ने कहा, “बीजेपी कहती थी कि मैनपाट को स्वर्ग बनाएंगे, लेकिन यहां तो खदान खोलने का काम हो रहा है। प्राकृतिक सुंदरता और मौसम दोनों प्रभावित होंगे।”
विधायक की राय: पर्यावरण या खनन?
बीजेपी विधायक प्रबोध मिंजका कहना है कि मैनपाट की नैसर्गिक सुंदरता को बचाना जरूरी है। उन्होंने कहा, “यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूची में आता है। ऐसे में यहां कोई भी काम शुरू करने से पहले ग्राम सभा की अनुमति जरूरी है। पर्यटन और खनन दोनों साथ में नहीं चल सकते। सभी को इस मुद्दे पर सामने आना चाहिए।”
इस विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ भी है। 2023 में लगभग 7,000 ग्रामीणों ने 90 गांवों से सड़क अवरुद्ध कर विरोध जताया था। इन ग्रामीणों ने नए पुलिस कैंप और सड़क निर्माण के खिलाफ प्रदर्शन किया था, क्योंकि उनके अनुसार, “सड़क बनाने के बहाने उन्हें अपनी जमीन छोड़नी पड़ रही है और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंच रहा है।”
कोरबा जिले में अंबिका कोयला खदान विवाद
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस साल की शुरुआत में भी छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में अंबिका कोयला खदान के लिए कार्य शुरू हो गया था। एसईसीएल के अफसर जेसीबी मशीन लेकर जमीन को समतलीकरण कर रहे हैं। उस दौरान भी ग्रामीणों ने इसे रोकने का प्रयास किया क्योंकि अधिग्रहित जमीन के बदले रोजगार, पुनर्वास और स्थाई नौकरी जैसी मांगें पूरी नहीं हुई थीं।
दरअसल अंबिका खदान के लिए 335.19 एकड़ निजी जमीन और 15.52 एकड़ राजस्व भूमि अधिग्रहित की गई। इसके कारण 492 परिवार प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित हैं। कंपनी ने योजना बनाई है कि घटते क्रम में 155 परिवारों को नौकरी दी जाएगी।
हालांकि, अधिकांश ग्रामीणों ने मुआवजा नहीं लिया है और उनका कहना है कि जब तक रोजगार और पुनर्वास का समाधान नहीं होता, तब तक वे खदान को शुरू नहीं होने देंगे। इस बीच, मुआवजा लेने वाले ग्रामीणों और न लेने वालों के बीच मतभेद भी देखा जा रहा है।
स्थानीय प्रशासन और खनन कंपनियों की भूमिका
एसईसीएल ने कहा कि खनन का संचालन 100% आउटसोर्सिंग पर होगा। कंपनी के अधिकारी केवल निगरानी करेंगे, जबकि खनन का काम गुजरात की एक निजी कंपनी करेगी। स्थानीय प्रशासन और पुलिस भी मौके पर मौजूद थे ताकि समतलीकरण कार्य के दौरान कोई बाधा न आए।
कोरबा में अंबिका खदान को खोलने का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा कोयला खनन करना है। यह खदान कोरबा जिले की छठवीं ओपनकास्ट खदान है। पहले यहां गेवरा, दीपका, कुसमुंडा, मानिकपुर और सरायपाली खदानें संचालित हो रही हैं।
ग्रामीणों की आवाज़: प्रकृति और जीवन की रक्षा
ग्रामीण और आदिवासी नेता लगातार विरोध जताते रहे हैं। उनका कहना है कि खनन और बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट्स के बहाने जंगल, पानी और जमीन पर कब्ज़ा किया जा रहा है। महिला और बच्चे भी सड़कें अवरुद्ध करके अपनी मांगें दर्ज करा रहे हैं।
2023 में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की आदिवासी समाज ने इंद्रावती नदी पर पुल निर्माण के विरोध में 14 दिन का विरोध शिविर लगाया था। उनका कहना था कि इस पुल से उनके प्राकृतिक संसाधनों और जीवन पर खतरा है।
पर्यटन और खनन के बीच संघर्ष
मैनपाट का केस और कोरबा की अंबिका खदान विवाद दर्शाता है कि पर्यटन और खनन दोनों एक साथ नहीं चल सकते। पर्यटन स्थल की सुंदरता और स्थानीय जीवन के लिए खनन खतरा बन चुका है। स्थानीय विधायक और ग्रामीण मिलकर इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि उनका मकसद सिर्फ अपनी जमीन और जीवन बचाना है। अगर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण नहीं हुआ, तो न केवल पर्यावरण बर्बाद होगा, बल्कि पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर पड़ेगा।
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