CJI Justice BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्णा गवई ने बुधवार को पद और गोपनीयता की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में हुई इस शपथ ग्रहण समारोह में न्यायाधीश ने अपनी मां से आशीर्वाद भी प्राप्त किया। सीजेआई के तौर पर जस्टिस गवई के सामने सबसे बड़ा और संवैधानिक तौर पर चुनौतीपूर्ण मामला राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143(1) के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए 14 सवालों का जवाब देना होगा।
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राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा संवैधानिक सवाल- CJI Justice BR Gavai
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह पूछा है कि क्या अदालत विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर सकती है? यह सवाल इसलिए उठाया गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक अहम निर्णय सुनाया था, जिसमें तमिलनाडु के राज्यपाल और राष्ट्रपति को कुछ विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा दी गई थी। राष्ट्रपति ने इस फैसले पर संवैधानिक और विधिक सवाल उठाए हैं और इसे लेकर शीर्ष अदालत की राय मांगी है।
क्या सुप्रीम कोर्ट निर्धारित कर सकता है समय सीमा?
संविधान में राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए विधेयकों पर मंजूरी देने की कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है। ऐसे में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या कोर्ट अपने फैसले से इस तरह की सीमा तय कर सकती है, जबकि संविधान में इसकी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। यह सवाल एक अहम संवैधानिक मुद्दा है, क्योंकि इससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन पर असर पड़ सकता है।
अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति का सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगना
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। राष्ट्रपति मुर्मू ने इसी अनुच्छेद का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से इन 14 सवालों का स्पष्टीकरण मांगा है। इस संदर्भ में कोर्ट को एक संविधान पीठ का गठन करना होगा, जिसमें कम से कम पांच न्यायाधीश शामिल होंगे, ताकि इस जटिल मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जा सके।
राष्ट्रपति के 14 सवाल: विस्तार से
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कुल 14 सवाल पूछे हैं, जिनमें प्रमुख रूप से यह पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह कार्यपालिका के सदस्यों जैसे राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधायकों द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय देने की समयसीमा तय कर सके। यह सवाल पिछले कुछ दिनों में विशेष रूप से चर्चा में आया है, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और अन्य कार्यपालिका सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर नाराजगी जताई थी।
जस्टिस गवई के सामने बड़ा संवैधानिक मसला
जस्टिस भूषण रामकृष्णा गवई ने मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के साथ ही एक बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण संवैधानिक मसले को संभालना शुरू कर दिया है। उनके सामने पहला और सबसे बड़ा काम राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए इन सवालों पर विचार करना होगा। इसके लिए वह एक संविधान पीठ का गठन करेंगे, जो देश के संविधान की व्याख्या करेगा और कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन को तय करेगा।
शपथ ग्रहण समारोह की कुछ खास बातें
शपथ ग्रहण के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायाधीश को शुभकामनाएं दीं। इसके बाद जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। न्यायपालिका में उनके नए कार्यकाल की शुरुआत इस संवैधानिक चुनौती के साथ हुई है, जो भारत के लोकतंत्र और शासन व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।