CJI BR Gavai: देश की सर्वोच्च अदालत ने एक अहम फैसले में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी गंभीर अनदेखी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई है। मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जुड़ा है, जिसमें एक आरोपी रामनाथ मिश्रा की जमानत याचिका 43 बार टाली गई, और वह पिछले साढ़े तीन साल से जेल में बंद है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में कोर्ट को त्वरित और गंभीर निर्णय लेना चाहिए, न कि सालों तक जमानत पर सुनवाई टालते रहना चाहिए।
“ऐसी प्रवृत्ति हमें पसंद नहीं”: सुप्रीम कोर्ट- CJI BR Gavai
CJI गवई ने बेहद सख्त लहजे में कहा,
“हमने कई बार कहा है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में कोर्ट को जल्दी फैसला लेना चाहिए। हाईकोर्ट से ये उम्मीद नहीं की जाती कि वह बार-बार सिर्फ सुनवाई टाले और कुछ न करे। इस केस में 43 बार जमानत पर सुनवाई टाल दी गई, जो न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति साढ़े तीन साल तक बिना दोष सिद्ध हुए हिरासत में हो, और उसकी जमानत याचिका पर इतनी बार सुनवाई टाली जाए, तो यह सीधे-सीधे व्यक्तिगत अधिकारों का हनन है।
CBI ने फिर जताई आपत्ति, पर SC ने खारिज की दलील
सुनवाई के दौरान CBI की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसडी संजय ने दलील दी कि अगर सुप्रीम कोर्ट खुद जमानत देने लगेगा, तो यह एक गलत मिसाल बन सकती है, खासकर जब हाई कोर्ट में मामला लंबित हो।
लेकिन पीठ ने इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए साफ कहा कि,
“कोई भी व्यक्ति कब तक इंतज़ार करे? अगर हाईकोर्ट 43 बार सुनवाई टाल चुका है, तो ऐसे में हम आंखें मूंद नहीं सकते। यह मामला सिर्फ एक आरोपी की नहीं, बल्कि देश की न्यायिक व्यवस्था और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा से जुड़ा है।”
पहले भी एक और आरोपी को SC ने दी थी राहत
दिलचस्प बात यह है कि इसी केस के एक अन्य आरोपी को सुप्रीम कोर्ट पहले ही (22 मई 2025 को) ज़मानत दे चुका है, जब यह सामने आया था कि उसकी जमानत याचिका 27 बार टाली गई थी। उस समय भी कोर्ट ने हाईकोर्ट के रवैये पर नाराज़गी जताई थी और कहा था कि,
“इतनी बार सुनवाई टालना, इंसाफ से खिलवाड़ है।”
सुप्रीम कोर्ट का संदेश साफ – इंसाफ में देरी, अन्याय के बराबर
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की जवाबदेही और लोगों के मूल अधिकारों की अहमियत पर ज़ोर दिया। जस्टिस गवई की पीठ का साफ संदेश है कि जमानत जैसी संवेदनशील याचिकाओं को अनिश्चितकाल तक लटकाना, न सिर्फ संविधान के खिलाफ है, बल्कि आम नागरिक के न्याय पर विश्वास को भी कमजोर करता है।
अब रामनाथ मिश्रा को निचली अदालत की तय शर्तों पर ज़मानत देने का आदेश दे दिया गया है। कोर्ट के इस कड़े रुख से उम्मीद की जा रही है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में अनावश्यक देरी की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी, खासकर तब जब बात व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हो।
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