Delhi Land Subsidence Danger: दिल्ली-NCR में पर्यावरण संबंधी संकट अब गंभीर रूप ले चुका है। राजधानी में जमीन धंसाव (Land Subsidence) की दर इतनी तेज़ हो गई है कि अगर शासन-प्रशासन और आम लोग समय रहते नहीं जागे तो यह बड़े पैमाने पर तबाही का कारण बन सकता है। हाल ही में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दिल्ली में जमीन लगातार धंस रही है और हजारों इमारतें संरचनात्मक रूप से खतरे में हैं।
राजधानी में खतरे की स्थिति- Delhi Land Subsidence Danger
‘Building Damage Risk in Sinking Indian Megacities’ नामक अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली में जमीन धंसने की अधिकतम दर सालाना 51 मिलीमीटर तक पहुँच चुकी है। इस समस्या के कारण राजधानी की 2,264 इमारतें उच्च संरचनात्मक जोखिम की श्रेणी में आ चुकी हैं। अनुमान है कि करीब 17 लाख लोग सीधे तौर पर इस संकट से प्रभावित हैं। अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि अगर हालात में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले समय में खतरे का दायरा और बढ़ सकता है।
गंभीर कारण: भूजल का अत्यधिक दोहन
अध्ययन के अनुसार दिल्ली में जमीन के लगातार धंसने का सबसे बड़ा कारण भूजल का अत्यधिक दोहन है। राजधानी की जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) में पानी की कमी से संकुचन की प्रक्रिया तेज हो गई है, जिससे जमीन नीचे धंस रही है। शोध में यह भी बताया गया कि मानसून के अस्थिर पैटर्न और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। सतही जल और भूजल की आपूर्ति मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती है, और वर्षा में अनियमितता के कारण एक्विफर पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।
दिल्ली-NCR में क्षेत्रीय स्थिति
उपग्रह रडार (InSAR) डेटा के विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली के आसपास के शहरों में भी जमीन धंस रही है। बिजवासन में सालाना 28.5 मिमी, फरीदाबाद में 38.2 मिमी और गाजियाबाद में 20.7 मिमी की दर से जमीन नीचे जा रही है। दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में कुछ जगहों पर जमीन सालाना 15.1 मिमी की दर से ऊपर उठती भी पाई गई है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अगले 30 वर्षों में दिल्ली में 3,169 इमारतें उच्च जोखिम में होंगी और अगले 50 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 11,457 तक पहुँच सकती है।
भारत के अन्य शहरों में स्थिति
अध्ययन में मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु का भी जिक्र किया गया है। मुंबई में 262.36 वर्ग किलोमीटर, कोलकाता में 222.91 वर्ग किलोमीटर और दिल्ली में 196.27 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस खतरे से प्रभावित है। इन महानगरों में भी इमारतों के धंसने और संरचनात्मक नुकसान का खतरा गंभीर है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
अध्ययन के शोधकर्ताओं ने तीन मुख्य कारणों को जमीन धंसाव का जिम्मेदार बताया है:
- भूजल का अत्यधिक दोहन
- मानसून की अनियमितता
- जलवायु परिवर्तन
शोध में यह भी कहा गया कि पारंपरिक तरीकों से इमारतों की संरचनात्मक स्थिति का आकलन करना मुश्किल है, क्योंकि हर दरार खतरे का संकेत नहीं होती। इसलिए आवश्यक है कि जमीन धंसाव और इमारतों की क्षति का समग्र और मानकीकृत डेटाबेस तैयार किया जाए।
शोध निष्कर्ष में चेतावनी देता है कि जलवायु परिवर्तन, चरम मौसम की घटनाएं और भूमि धंसाव मिलकर भारत के शहरी बुनियादी ढांचे पर गंभीर संकट पैदा कर रहे हैं। राजधानी दिल्ली और NCR में इस खतरे से निपटने के लिए समय रहते ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी है। अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में हजारों लोगों की जिंदगी और संपत्ति को बड़ा जोखिम हो सकता है।
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