Dhan Kharid: राज्य सरकार हर साल दावा करती है कि जिले में धान खरीद की तैयारियां अक्टूबर से ही शुरू कर दी जाती हैं लेकिन ज़मीन पर तस्वीर कुछ और ही दिखती है। प्रशासन लक्ष्य तय कर देता है, मीटिंगें होती हैं, पैक्सों को सक्रिय करने की बातें होती हैं, लेकिन जब किसान अपनी उपज लेकर बाजार में उतरते हैं, तो सरकारी व्यवस्था अक्सर नदारद मिलती है। नतीजन, जिले में पैदा होने वाला करीब 80 प्रतिशत धान बिना सरकारी रिकॉर्ड में आए, सीधे बिहार से बाहर बेच दिया जाता है। और चौंकाने वाली बात ये है कि इस बड़े पैमाने पर हो रहे धान के पलायन को रोकने के लिए प्रशासन के पास कोई ठोस व्यवस्था अब तक नहीं है।
सरकारी खरीद सिर्फ 20–25%, बाकी बेच देता है बाजार (Dhan Kharid)
किसानों का कहना है कि जिले में जितना धान पैदा होता है, उसकी तुलना में सरकारी खरीद का लक्ष्य बेहद कम तय किया जाता है उत्पादन का सिर्फ 20–25 प्रतिशत। इस बार भी स्थिति वही है। ऊपर से खरीद देर से शुरू होने और नमी की अनिवार्य शर्तों के कारण बड़ी संख्या में किसान सरकारी खरीद केंद्रों तक पहुंच ही नहीं पाते।
नवंबर के दूसरे सप्ताह से ही धान की कटनी शुरू हो गई थी। उसी समय किसानों को गेहूं की बोआई के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन सरकारी खरीद केंद्रों पर लंबी प्रक्रिया, पंजीकरण, सत्यापन और बार-बार दौड़ ने उन्हें परेशान कर दिया। ऐसे में किसान मजबूर होकर थोक व्यापारियों को तत्काल कैश के बदले धान सस्ते में बेच देते हैं।
व्यापारी खरीदते 1600–1700 में, बाहर बेचते 2050–2100 में
स्थानीय व्यापारियों ने बताया कि वे किसानों से 1600 से 1700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदते हैं और स्टॉक करते रहते हैं। जैसे ही पूरा ट्रक भर जाता है, मुजफ्फरपुर, पटना, बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, पंजाब और हरियाणा के व्यापारी ट्रक लेकर आते हैं।
धान लोड होता है और सीधे दूसरे राज्यों में भेज दिया जाता है जहां वही धान 2050 से 2100 रुपये प्रति क्विंटल तक आसानी से बिक जाता है।
किसानों को जहां सरकारी दर 2365 रुपये प्रति क्विंटल मिलना चाहिए, वहीं वे मजबूरी में 600–700 रुपये कम दाम पर इसे बेचने को मजबूर हैं। किसानों के मुताबिक, “सरकारी दर का फायदा तभी मिलेगा, जब सरकारी खरीद आसान होगी। रजिस्ट्रेशन, टोकन, नमी जांच इतना झंझट है कि व्यापारियों को बेचना ही आसान लगता है।” स्थानीय व्यापारियों के मुताबिक, जिले से हर दिन करीब 50–100 ट्रक धान दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं।
सरकारी खरीद की स्थिति: लक्ष्य अधूरा, प्रक्रिया सुस्त
डीसीओ कार्यालय के मुताबिक अभी तक खरीद लक्ष्य का बड़ा हिस्सा अधूरा है। अब तक:
- 318 किसानों से
- 1936 मीट्रिक टन धान खरीदा गया है
- 153 किसानों को भुगतान किया जा चुका है
- जिले में 191 पैक्स और 3 व्यापार मंडल खरीद प्रक्रिया में शामिल हैं
धान का चावल तैयार करने के लिए 7 राइस मिलों का निबंधन किया गया है और इन्हें संबंधित पैक्सों से टैग किया गया है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि साल दर साल लक्ष्य बड़ा तय होता है, पर खरीद आधी या उससे भी कम होती है।
पिछले चार वर्षों के लक्ष्य और वास्तविक खरीद
| वर्ष | लक्ष्य (MT) | वास्तविक खरीद (MT) | पैक्स/व्यापार मंडल | किसानों की संख्या |
| 2021–22 | 35000 | 34956 | 209 | 7997 |
| 2022–23 | 76375 | 48553 | 167 | 9688 |
| 2023–24 | 80212 | 28563 | 239 | 4466 |
| 2024–25 | 73757 | 41366 | 178 | 5867 |
स्पष्ट है कि कई वर्षों में आधा लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ।
उत्पादन 21 लाख क्विंटल से बढ़कर 35 लाख क्विंटल, पर खरीद लक्ष्य तय ही नहीं
कृषि विभाग के अनुसार:
- 2024–25 में धान उत्पादन: 21,52,396 क्विंटल
- 2025–26 में अनुमानित उत्पादन: 35,65,113 क्विंटल
उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इस बार जिले को धान खरीद का लक्ष्य अभी तक न देने से किसान और अधिक परेशान हैं।
जिला सहकारिता पदाधिकारी अरुण कुमार का कहना है, “जिन पैक्सों ने पहली लॉट की खरीद कर ली है, उनकी सूची बैंक को भेजी जा रही है। अभी तक 198 किसानों से 1936 MT खरीद हो चुकी है। दूसरे राज्यों में धान भेजे जाने की कोई जानकारी मेरे पास नहीं है।”
किसान परेशान, व्यापारी मुनाफे में, सरकारी सिस्टम सुस्त
जिला हर साल वही समस्या झेलता है देर से खरीद, नमी की शर्तें, जटिल प्रक्रिया, कम लक्ष्य, कमजोर निगरानी और सबसे बड़ा मुद्दा समय पर भुगतान न मिलना। नतीजा यह होता है कि किसान का धान सस्ते में व्यापारियों के हाथ बिकता है और बाहर जाकर महंगे दाम पर बेचा जाता है।
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