Ethiopia Volcano Ash: अफ्रीका के इथियोपिया में स्थित हायली गुबी ज्वालामुखी ने 12,000 साल की नींद तोड़ते हुए अचानक विस्फोट कर दिया। 23 नवंबर 2025 को दोपहर 2 बजे भारतीय समयानुसार यह ज्वालामुखी फटा और उसकी राख इतनी ऊंचाई तक उड़ गई कि यह 4,500 किलोमीटर दूर भारत की राजधानी दिल्ली तक पहुँच रही है। आसमान में 14 किलोमीटर तक फैल गई राख ने वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों दोनों को चौंका दिया।
हायली गुबी ज्वालामुखी: सोया हुआ राक्षस
हायली गुबी एक शील्ड ज्वालामुखी है, जो पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट वैली का हिस्सा है। अफार क्षेत्र, जिसे ‘पृथ्वी का नर्क’ भी कहा जाता है, उच्च तापमान और ज्वालामुखीय गतिविधियों के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें लगातार अलग हो रही हैं, जिससे भूगर्भीय गतिविधियां सक्रिय रहती हैं। अफार क्षेत्र अत्यधिक गर्म और शुष्क है, जहां तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह ज्वालामुखी अब तक का सबसे लंबा सोया हुआ ज्वालामुखी था, जिसका कोई रिकॉर्ड पिछले 12,000 साल में नहीं मिला।
विस्फोट का समय और प्रभाव (Ethiopia Volcano Ash)
भारतीय समयानुसार 23 नवंबर को दोपहर 2 बजे हायली गुबी ज्वालामुखी फटा। सैटेलाइट डेटा के अनुसार विस्फोट में भारी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) गैस भी निकली। विस्फोट से पहले 4.7 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया, जो मैग्मा की दीवार (मैग्मा डैम) टूटने का संकेत था। विस्फोट से राख का गुबार लाल सागर और अरब प्रायद्वीप होते हुए पाकिस्तान और उत्तरी भारत तक पहुंचा।
राख दिल्ली कैसे पहुंची?
हायली गुबी से दिल्ली की दूरी लगभग 4,500 किलोमीटर है। राख इतनी दूर पहुँचने का मुख्य कारण वायुमंडलीय हवाएं, विशेषकर जेट स्ट्रीम है। विस्फोट से निकली राख इतनी ऊँचाई तक गई कि स्ट्रेटोस्फीयर में पहुँच गई। यहां तेज हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं और राख को हजारों किलोमीटर दूर ले जाती हैं। 24 नवंबर की रात तक यह दिल्ली पर छा गई। सैटेलाइट मैप्स से पता चला कि राख 15,000 से 45,000 फीट ऊँचाई पर बह रही थी।
क्या दिल्ली का प्रदूषण बढ़ेगा?
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादा चिंता की जरूरत नहीं है। राख ऊँचाई पर होने के कारण सतह पर इसका बड़ा असर नहीं पड़ेगा। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) पहले से ही खराब है, लेकिन यह राख वहां तक नहीं पहुंचेगी। हालांकि आकाश धुंधला दिख सकता है और विजिबिलिटी थोड़ी कम हो सकती है। सल्फर डाइऑक्साइड बादल बनाकर बारिश ला सकता है, जो प्रदूषण को धो सकता है। लंबे समय में SO₂ एसिड रेन पैदा कर सकती है, लेकिन मात्रा सीमित है।
12,000 साल बाद अचानक विस्फोट: कारण
हायली गुबी के अचानक फटने का कारण पृथ्वी के भीतर की उथल-पुथल है। यह ज्वालामुखी पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट का हिस्सा है, जहां अफ्रीकी प्लेट दो भागों में बंट रही हैं। मैग्मा का विशाल भंडार (सुपर प्लूम) दबाव बना रहा था। विस्फोट से पहले मैग्मा की दीवार टूट गई और भूकंप ने इसे ट्रिगर किया। यह घटना लाखों वर्षों में नया समुद्र बनने की प्रक्रिया का हिस्सा भी हो सकती है।
स्थानीय प्रभाव और पर्यावरण
इथियोपिया में पास के गांवों पर राख गिरी। अफदेरा के चरवाहे और पशु इससे प्रभावित हो सकते हैं। राख मिट्टी की उर्वरता कम कर देती है और पशुओं को सांस की बीमारी हो सकती है। दनाकिल रेगिस्तान में पर्यटक फंस गए, क्योंकि राख से सड़कें फिसलन भरी हो गईं। सल्फर डाइऑक्साइड के कारण एसिड रेन भी बन सकती है, जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है। लेकिन कोई जान-माल का बड़ा नुकसान नहीं हुआ।
विमानन और ट्रैवल पर असर
राख के फैलने के कारण भारत और अन्य देशों में कई उड़ानें रद्द हुईं। एयर इंडिया की मुंबई-हैदराबाद और इंडिगो की कन्नूर-अबू धाबी फ्लाइट्स प्रभावित हुईं। DGCA ने एयरलाइंस को चेतावनी दी कि राख इंजन को नुकसान पहुंचा सकती है।
सुपर प्लूम और बाढ़ का सवाल
हायली गुबी के सुपर प्लूम का बाढ़ से सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं है। रिफ्ट वैली में पानी के स्रोत प्लेटों के अलग होने से ऊपर आते हैं। सुपर प्लूम दबाव बढ़ाता है, जिससे भूकंप और विस्फोट होते हैं। इससे गर्मी फैलने और भूजल बढ़ने की संभावना है, लेकिन फिलहाल हायली गुबी का विस्फोट बाढ़ का मुख्य कारण नहीं माना जाता।
प्रकृति की शक्ति और सतर्कता
हायली गुबी का विस्फोट हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी लगातार जीवित और सक्रिय है। प्लेटें हिलती हैं, मैग्मा उबलता है और प्रकृति का संतुलन लगातार बदलता रहता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे दुर्लभ विस्फोटों के दौरान चेतावनी और सैटेलाइट डेटा हमारी सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली और आसपास के लोग आकाश पर नजर रखें धुंधला दिखे तो मास्क पहनें और विशेष सावधानी बरतें।
