FIR on Ajit Anjum: बिहार के बेगूसराय जिले में जाने-माने यूट्यूबर और पत्रकार अजीत अंजुम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उन पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी काम में बाधा डाली और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसकर कामकाजी कर्मचारियों से सवाल-जवाब किए। यह मामला 12 जुलाई को बलिया थाना में दर्ज किया गया, जब अजीत अंजुम और उनकी टीम बिना अनुमति के बलिया प्रखंड सभागार में पहुंच गए और वहां मतदाता सूची के सुधार कार्य से जुड़े अधिकारियों से सवाल-जवाब किए। इस दौरान अजीत अंजुम ने बीएलओ से सवाल किए जैसे कि “बूथ पर कितने मतदाता हैं?”, “कितने फार्म दिए गए और कितने वापस लिए गए?”, “मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कितनी है?” आदि।
सवाल उठाने के बाद बढ़ी विवाद की स्थिति- FIR on Ajit Anjum
बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) मो. अंसारुल हक के मुताबिक, जब अजीत अंजुम और उनकी टीम वहां आई, तो वे करीब एक घंटे तक कार्यालय में रहे, जिससे सरकारी काम में काफी रुकावट हुई। बीएलओ ने यह भी बताया कि अजीत अंजुम ने बार-बार आरोप लगाया कि मुस्लिम मतदाताओं को परेशान किया जा रहा है, जबकि बीएलओ का कहना है कि ऐसा कोई मामला नहीं था। इस पर विवाद बढ़ गया और प्रशासन ने अजीत अंजुम और उनकी टीम के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज करवाई।
यूट्यूब चैनल पर आरोपित रिपोर्टिंग
अजीत अंजुम ने अपनी यूट्यूब चैनल पर वोटर लिस्ट पुनरीक्षण अभियान से जुड़ी एक रिपोर्टिंग की थी, जिसे लेकर प्रशासन ने आपत्ति जताई है। प्रशासन का कहना है कि अजीत अंजुम ने बिना अनुमति के सरकारी दफ्तर में जाकर वीडियो बनाया और उसे चैनल पर प्रसारित किया, जिसमें कुछ भ्रामक जानकारी दी गई है। इससे समाज में भ्रम और तनाव फैल सकता है। वीडियो में दिखाया गया था कि अजीत अंजुम बलिया प्रखंड सभागार में जा कर कर्मचारियों से वोटर लिस्ट के सुधार के बारे में जानकारी ले रहे थे। इसके बाद प्रशासन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अजीत अंजुम पर आरोप लगाया कि उन्होंने एक विशेष समुदाय को लेकर गलत बातें फैलाईं, जिससे समाज में भेदभाव और तनाव का माहौल बन सकता है।
प्रशासन की कार्रवाई और स्थिति
बेगूसराय जिला प्रशासन ने इस घटना पर गंभीरता से प्रतिक्रिया दी और 13 जुलाई को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। प्रशासन ने यह आरोप लगाया कि अजीत अंजुम ने वीडियो में बिना अनुमति के सरकारी दस्तावेजों को दिखाया और एक समुदाय विशेष को लेकर सवाल उठाए, जिससे तनाव और भेदभाव का माहौल बन सकता है। प्रशासन ने यह भी चेतावनी दी कि यदि इस वीडियो के कारण कोई अप्रिय घटना होती है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी अजीत अंजुम और उनके साथियों की होगी। प्रशासन का कहना था कि साहेबपुर कमाल विधानसभा क्षेत्र में वोटर लिस्ट सुधार कार्य शांतिपूर्वक चल रहा था और किसी भी प्रकार का सांप्रदायिक तनाव नहीं था।
सांसद और राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस मुद्दे को लेकर बेगूसराय में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। मंगलवार को नागरिक संवाद समिति द्वारा विरोध मार्च निकाले जाने की योजना बनाई गई थी। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने इस पूरे मामले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। प्रशासन का कहना है कि अजीत अंजुम का यह कदम सरकारी कार्यों में बाधा डालने और गलत सूचना फैलाने का कारण बना है। हालांकि, अजीत अंजुम का कहना है कि उन्होंने केवल अपने चैनल पर समाज को जागरूक करने के लिए यह रिपोर्टिंग की थी और किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक नफरत फैलाने का उनका इरादा नहीं था।
पत्रकारिता की स्वतंत्रता
इस पूरे विवाद में एक बड़ा सवाल उठता है कि पत्रकारिता और सवाल पूछने की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच सीमा कहां खींची जाती है। क्या पत्रकारों को बिना किसी डर के सरकारी कामकाजी प्रक्रियाओं की रिपोर्टिंग करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, या फिर इस तरह के मुद्दों से समाज में तनाव फैलने का खतरा हो सकता है? अजीत अंजुम के मामले में यह साफ हो जाता है कि सवाल उठाने का अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए ताकि समाज में किसी प्रकार का अनावश्यक विवाद या तनाव न पैदा हो।
इस तरह की घटनाओं से यह भी संदेश जाता है कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सरकारी कामकाजी प्रक्रिया के बीच एक संतुलन बनाए रखना जरूरी है। प्रशासन और मीडिया दोनों के पास अपनी-अपनी जिम्मेदारियां होती हैं, और दोनों को ही समाज में सकारात्मक माहौल बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के कार्यों का सम्मान करना चाहिए।