Gurudwara Guru Singh Sabha Sahib:भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और युद्ध की गूंज के बीच, एक पवित्र स्थल की आस्था ने यह साबित कर दिया कि कोई भी ताकत श्रद्धा को कमजोर नहीं कर सकती। पुंछ जिले में स्थित श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा, जो भारत-पाक सीमा के पास स्थित है, पाकिस्तान की ओर से किए गए एक जघन्य हमले का शिकार हुआ। लेकिन इस हमले ने न केवल गुरुद्वारे को नुकसान पहुँचाया, बल्कि पूरी सिख समुदाय को एकजुट कर दिया। दरअसल, पाकिस्तान के हमले में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए गुरुद्वारे को फिर से खोलने का निर्णय लिया गया। गुरुवार को गुरुद्वारे में अरदास शुरू हुई, और श्रद्धालु फिर से पूजा अर्चना करने के लिए एकत्रित हुए। इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे को सिख समुदाय ने दोबारा खोलकर यह संदेश दिया है कि आतंक और डर के आगे श्रद्धा कभी नहीं झुकती।
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गोलियों की बौछार में जली आस्था की लौ- Gurudwara Guru Singh Sabha Sahib
गुरुवार को जिस गुरुद्वारे में फिर से अरदास शुरू हुई, वह पुंछ जिले में स्थित गुरु सिंह सभा साहिब, जिसे नंगली साहिब भी कहा जाता है, एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल है। यह गुरुद्वारा पाकिस्तान की ओर से की गई बेमकसद गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो गया था। दीवारों पर गोलियों और धमाकों के निशान आज भी हमले की गवाही दे रहे हैं। इस हमले में भजन-कीर्तन करने वाले भाई अमरीक सिंह जी, भारतीय सेना के जवान भाई अमरजीत सिंह और व्यवसायी भाई रणजीत सिंह ने अपने प्राणों की आहुति दी। लेकिन सिख संगत ने डर के आगे हार नहीं मानी और गुरुवार को श्रद्धालुओं के लिए फिर से इसके दरवाज़े खोल दिए।
तीन गुरसिखों की शहादत पर बोला शिरोमणि अकाली दल
शिरोमणि अकाली दल ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए शहीदों को राष्ट्र का सम्मान देने की मांग की। सुखबीर सिंह बादल ने इस अमानवीय हमले को मानवता पर आघात बताया और कहा कि शहीदों के परिवारों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। वहीं, श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने भी इस हमले की कड़ी निंदा की और भारत-पाक दोनों से संयम बरतने की अपील की, साथ ही कहा कि “शांति कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत होती है।”
Strongly condemn the inhuman attack by Pakistani forces on the sacred Central Gurdwara Sri Guru Singh Sabha Sahib in Poonch, in which three innocent Gursikhs, including Bhai Amrik Singh Ji (a raagi Singh), Bhai Amarjeet Singh and Bhai Ranjit Singh lost their lives.
The Shiromani… pic.twitter.com/T5CFLfBeyx— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) May 7, 2025
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बौखलाया पाकिस्तान
पाकिस्तान की ओर से यह हमला ऐसे समय में हुआ जब भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले का करारा जवाब देते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष लोग, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे, मारे गए थे। जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना ने मिलकर पाकिस्तान के बहावलपुर, मुरीदके और मुजफ्फराबाद स्थित कुल 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के मुख्यालय शामिल थे। इस कार्रवाई में 90 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की सूचना है।
ऐतिहासिक गुरुद्वारा जो बना श्रद्धा का प्रतीक
आइये अब बात करते हैं इस गुरुद्वारे के बारे में। पुंछ में सिख समुदाय के 25 से 30 हजार लोग रहते हैं। इस शहर से करीब छह किलोमीटर दूर एक शांत पहाड़ी की तलहटी में स्थित नंगली साहिब गुरुद्वारा की स्थापना 1803 में ठाकुर भाई मेला सिंह जी ने की थी। यह उत्तरी भारत के सबसे प्राचीन सिख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। गुरुद्वारा परिसर में लगभग 70 कमरे, एक विशाल लंगर हॉल, और धार्मिक भवन हैं। यहां हर धर्म और जाति के लोग दर्शन के लिए आते हैं, जिससे यह स्थान सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है।
इतिहास गवाह है कि 1947 में जब पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने इस क्षेत्र पर हमला किया था, तब गुरुद्वारे की मूल इमारत को जला दिया गया था। लेकिन संगत के सहयोग से इसे महंत बचितर सिंह जी ने फिर से खड़ा किया। इसके बाद यह गुरुद्वारा न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना, बल्कि सामाजिक सेवा का भी बड़ा माध्यम बना।
बैसाखी पर लगता है विशाल मेला
हर साल बैसाखी के पर्व पर गुरुद्वारा नंगली साहिब में एक विशाल समारोह होता है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि पूरे देश से हिस्सा लेते हैं। यह आयोजन न केवल खालसा पंथ के जन्म दिवस की याद दिलाता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी मजबूत करता है।
हर विपत्ति में खड़ी रही संगत
हालिया हमले के बावजूद, सिख समुदाय ने डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। जब गुरुद्वारे को दोबारा खोला गया, तो श्रद्धालुओं की आंखों में न केवल राहत थी, बल्कि गर्व और आत्मविश्वास की झलक भी थी। यह एक प्रतीक है उस जज़्बे का जो न केवल पूजा-पाठ में बल्कि देशभक्ति और मानवता में भी दिखता है।
श्रद्धा पर न गोलियां असर करती हैं, न बारूद
गोलियों और बमों से इमारतों को तो नुकसान पहुंचाया जा सकता है, लेकिन आस्था और विश्वास को कभी पराजित नहीं किया जा सकता। पुंछ में सिख संगत द्वारा गुरुद्वारा फिर से खोलकर यही संदेश दिया गया है—धर्म और देशभक्ति किसी भी हमले से कमजोर नहीं पड़ती।