हसनपुर डिपो फ्रॉड: क्या डिपो मैनेजर से मिला हुआ है विलिजेंस अधिकारी ? पूरी ख़बर समझिए

Hasanpur Depot Case
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Hasanpur Depot Case in Hindi – हसनपुर डिपो में हो रहे भ्रष्टाचार पर Nedrick News की टीम की नजर लंबे समय से बनी हुई है. इसे लेकर हमाम तमाम रिपोर्ट्स पहले भी प्रकाशित कर चुके हैं. पहले की कई ख़बरों में हमने यह बताया था कि कैसे डिपो मैनेजर पुष्पेंद्र सिंह की देखरेख में या यूं कहें कि उनकी नाक के नीचे डिपो में महिलाओं से छेड़छाड़, बदतमीजी, मारपीट, वसूली और धमकी जैसी चीजें होती रही है. लिंक पर क्लिक कर आप पूरी ख़बर पढ़ सकते हैं.

इसके बाद 12 जुलाई 2023 को हमने हसनपुर डिपो को लेकर एक अन्य रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें हमने ये बताया था कि हेडक्वार्टर से 100 से 150 लोगों के ट्रांसफर का ऑर्डर आया था लेकिन डिपो मैनेजर ने सभी को रिलीव नहीं किया. डिपो मैनेजर पुष्पेंद्र ने सिर्फ उन लोगों को रिलीव किया था, जिन लोगों ने उसे चढ़ावा नहीं चढ़ाया था. बाकी जिन लोगों ने चढ़ावा चढ़ाया, वह ट्रांसफर ऑर्डर के बावजूद वहां मजे में काम कर रहे थे. हालांकि, हमारी ख़बर पब्लिश होने के 24 घंटे के भीतर डिपो में कार्रवाई देखने को मिली लेकिन यह कार्रवाई भी सिर्फ लीपा पोती ही नजर आ रही है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, आइए बताते हैं.

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यहां समझिए पूरा मामला

दरअसल, हसनपुर डिपो में करीब 1500 लोगों की टीम है. उनमें से 100-150 लोगों के ट्रांसफर का ऑर्डर आया लेकिन डिपो मैनेजर ने 30 से 50 लोगों को रिलीव किया था. शेष लोग पैसे खिलाकर वहां काम कर रहे थे. इसे लेकर हमने हसनपुर डिपो मैनेजर पुष्पेंद्र सिंह से बातचीत करने का प्रयास भी किया. Nedrick News को फोन पर जवाब देते हुए पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि यह उनका पर्सनल ऑफिशियल मैटर है और उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया. लेकिन मैटर तो पूरे हसनपुर डिपो का था, ऐसे में यह उनका पर्सनल ऑफिशियल मैटर कैसे हो गया यह समझ से परे है. हालांकि, हमने अपनी रिपोर्ट पब्लिश कर दी. रिपोर्ट पब्लिश होने के 24 घंटे के अंदर विजिलेंस टीम हसनपुर डिपो पहुंच गई.

डीटीसी मुख्यालय (Hasanpur Depot Case) की ओर से आई विजिलेंस टीम की ओर से कहा गया कि जिन लोगों का ट्रांसफर रोका गया है, उन सब को रिलीव कर दिया जाए. सूत्रों के मुताबिक, विजिलेंस टीम के एक अधिकारी ने डिपो मैनेजर को यह सुझाव दिया कि अगर आप लोगों को रिलीव कर देंगे तो फंसने से बच सकते हैं. फिर क्या था, डिपो मैनेजर पुष्पेंद्र सिंह ने सभी को कॉल किया और रिलीव कर दिया, उनका रिलीव लेटर भी बना दिया. जब पुष्पेंद्र से इन लोगों का ट्रांसफर रोकने की वजह पूछी गई तो उन्होंने इसकी वजह स्टाफ का कम होना बताया.

विजिलेंस अधिकारी भी मिले हुए हैं!

यहां आपको बता दें कि अगर किसी डीपो में स्टाफ कम होने की वजह से लोगों का ट्रांसफर रोका जाता है तो DO रजिस्टर में इस बात की जानकारी देनी होती है, रिमार्क लिखना होता है. लेकिन DO रजिस्टर के रिमार्क में ये लिखा गया कि इन कर्मचारियों का ट्रांसफर हो गया है और इन्हें ड्यूटी न दी जाए (जबकि ये सारे के सारे लोग वहां ड्यूटी कर ही रहे थे). साथ ही विजिलेंस टीम ने हसनपुर डिपो के ड्यूटी इंचार्ज (जिस पर पैसे लेकर लोगों को मनचाही ड्यूटी देने का आरोप है) रंजीत की छानबीन की और उसे निर्दोष साबित कर दिया गया.

डीटीसी मुख्यालय (Hasanpur Depot Case) की ओर से जो विजिलेंस टीम आई थी, उसमें एक ऐसा अधिकारी भी था जो पहले हसनपुर डिपो में काम कर चुका है यानी हसनपुर डिपो के हर हालात से परिचित है. यह मौजूदा समय में फोरमैन के पद पर तैनात है, जिसका नाम प्रिंस (टोकन नंबर 69162) बताया जा रहा है. सूत्रों की मानें तो प्रिंस ने जैसा कहा, वैसी ही रिपोर्ट बनाई गई और भ्रष्टाचार में संलिप्त डिपो मैनेजर को बचाने का प्रयास किया गया. यहां तक कि जिस रंजीत पर अभी तक कई संगीन आरोप लग चुके हैं, उसे पूरी तरह से निर्दोष साबित कर दिया गया. अब विजिलेंस टीम के अधिकारी प्रिंस ने ऐसा क्यों किया, भ्रष्ट लोगों को क्यों बचाया, सारी चीजें सामने होते हुए भी इन्हें निर्दोष कैसे बता दिया, इन सारे सवालों के जवाब प्रिंस ही दे सकते हैं.

अभी भी पद पर बने हुए हैं रंजीत और हरीश

आपको बता दें कि हसनपुर डिपो (Hasanpur Depot Case) में रंजीत (टोकन नंबर 73889) और हरीश (टोकन नंबर 76804) पुष्पेंद्र सिंह के राइटहैंड बताए जाते हैं. हसनपुर एक्सीडेंट सेल में काम करता है. हरीश के पोस्ट की बात करें तो उस पोस्ट पर कोई भी आदमी केवल 1 साल काम कर सकता है. उसके बाद उस शख्स का या तो ट्रांसफर हो सकता है या फिर रोटेशन के तहत किसी अन्य पोस्ट पर भेजा जा सकता है लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि हरीश इस पोस्ट पर करीब 5 सालों से बना हुआ है. अब इतनी सारी चीजें होने के बाद भी डिपो मैनेजर की देखरेख में ये दोनों शख्स अभी भी उसी पोस्ट पर बने हुए हैं. इन पर किसी भी तरह की कार्रवाई न होना, इसी बात का संकेत देता है कि इन्हें पूरी तरह से डिपो मैनेजर का संरक्षण प्राप्त है और यह डिपो मैनेजर का जेब भरने का काम करते हैं.

ध्यान देने वाली बात है कि जब ऐसा ही मामला नंद नगरी डिपो में आया था, तब कई अधिकारियों को डायरेक्ट सस्पेंड कर दिया गया था. कई लोगों को वहां से हटा दिया गया और ऐसी चीजें कर दी गई कि वे 3 साल तक नंद नगरी डिपो में नहीं आ सकते थे. ऐसे में अगर भ्रष्टाचार के मामले में नंद नगरी डिपो में कार्रवाई हो सकती है तो फिर हसनपुर डिपो में कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्यों भ्रष्ट अधिकारियों को अधिकारियों के द्वारा ही बचाया जा रहा है?

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