मोदी के स्टैंड अप इंडिया स्कीम में सैकड़ो दलित उद्यमी झेल रहे नुकसान! जानिए योजना की जमीनी हकीकत

Hundreds of Dalit entrepreneurs are facing losses under Modi's Stand Up India Scheme
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल 2016 को ‘स्टैंडअप इंडिया’ योजना की शुरुआत की थी। यह योजना अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला उद्यमियों को अपना व्यवसाय शुरू करने और विनिर्माण, सेवा और व्यापार क्षेत्रों और कृषि से संबंधित उद्यम स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए शुरू की गई थी। लेकिन 2024 के चुनाव से पहले ही ये स्कीम अपना दम तोड़ चुकी है और उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित सड़कों पर आ गए हैं।

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स्कीम में क्या कहा गया था?

दरअसल, स्टैंड अप इंडिया योजना के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत ब्लॉक एलपीजी ट्रांसपोर्टेशन कार्य शुरू किया गया था। इसमें तीन तेल कंपनियां शामिल थीं. IOC-इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, BPCL-भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और HPCL- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड। इन तीनों कंपनियों ने मिलकर एक टेंडर निकाला जिसमें कहा गया कि वे टैंकर ट्रक खरीदने वाले उद्यमियों को अपनी कंपनी के तहत रोजगार उपलब्ध कराएंगी। इस योजना के तहत एससी-एसटी समुदाय के उद्यमियों को उनकी आबादी के हिसाब से 23 फीसदी आरक्षण दिया गया था।

योजना में DICCI की भूमिका

इसके लिए दलितों में उद्यमी तैयार करने का दावा करने वाली दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI) नाम की संस्था ने सरकार, तेल कंपनियों और दलित उद्यमियों को एक साथ जोड़ा। DICCI ने बैंकों के साथ MOU पर हस्ताक्षर किये। जिसमें बैंकों को बताया गया कि प्रत्येक वाहन को प्रति माह लगभग 5000 किलोमीटर का काम मिलेगा और यह एक लाभदायक व्यवसाय होगा।

पहली बार उद्यमिता के क्षेत्र में उतरने वाले एससी-एसटी उद्यमियों के लिए वाहन होने से DICCI और तेल कंपनियों ने प्रति माह 50-60 हजार रुपये बतच का हिसाब लगाया था। सरकारी योजना के तहत लोन भी आसानी से मिल जाता था। बहुत से लोगों ने बैंकों से लोन लिया और लाभदायक व्यवसायों में पैसा लगाया। दो बैंकों, बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया ने ट्रक टैंकर खरीदने वाले एससी-एसटी उद्यमियों को लोन दिया। लेकिन पांच साल पहले जिस उम्मीद से दलित उद्यमियों ने इस योजना में पैसा लगाया था वह पूरी नहीं हो सकी और कई लोग दिवालिया हो गये। आलम ये हैं कि बैंकों ने अब रिकवरी नोटिस भेजना शुरू कर दिया है, जिससे एससी-एसटी समुदाय के उद्यमियों में काफी बेचैनी है।

पीड़ितों का क्या कहना है

कोलकाता के रहने वाले पीड़ित मनोज कुमार दास कहते हैं कि हमसे किया गया वादा पूरा नहीं हुआ।  हमें बताया गया था कि हमारी गाड़ियां पांच हजार किलोमीटर तक चलेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसकी शिकायत जब DICCI के सलाहकार राजेश पासवान से की गयी तो उन्होंने कहा कि यह योजना पुरानी हो गयी है।

दलित दस्तक के मुताबिक भगवती इंटरप्राइजेज के कुलदीप सिंह रंगा कहते हैं, “इसमें मुख्य भूमिका DICCI और IOCL कंपनियों की थी। इसमें जो MOU साइन हुआ था, उसमें डिक्की, तेल कंपनियों और फाइनेंस मिनिस्ट्री के साथ हुआ था। इसमें सभी टर्म्स और कंडिशन डिक्की ने रखी थी। कहा गया था कि कोई दिक्कत आएगी तो इसका समाधान निकाला जाएगा। एससी-एसटी ट्रांसपोर्टर की मदद की जाएगी। लेकिन जब मुश्लिक वक्त आया तो किसी ने मदद नहीं की।”

कैसे फेल हुई स्कीम

दलित दस्तक के पास मौजूद जानकारी और RTI से मिली जानकारी के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ौदा ने 457 निवेशकों को लोन दिया, जबकि इंडियन बैंक ने 189 निवेशकों को लोन दिया। मौजूदा स्थिति यह है कि बैंक ऑफ बड़ौदा से कर्ज लेने वाले 457 उद्यमियों में से 153 जबकि इंडियन बैंक से कर्ज लेने वाले 189 उद्यमियों में से 86 नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) बन चुके हैं। सीधे शब्दों में कहें तो बैंक करप्ट हो गए हैं।

इसी वजह से कई दलित उद्यमियों ने अपने ट्रक और टैंकर खड़े कर दिए हैं। कारण यह था कि तेल कंपनियों द्वारा हर महीने 5000 किमी ट्रक चलाने का दिया गया आश्वासन पूरा नहीं हो सका। परिणामस्वरूप खर्चा अधिक और आय कम थी। ऐसे में कई लोगों की ईएमआई फेल होने लगी। आज स्थिति यह है कि सभी गाड़ियां खड़ी हैं। कुछ एक वर्ष से अधिक समय तक वहां खड़े रहने के बाद कबाड़ में तब्दील हो गए हैं। तो कंपनी के पास निवेशकों के बैंक गारंटी के तौर पर 4 लाख से 7.5 लाख रुपये तक की सिक्योरिटी होती है। इसका मतलब यह है कि प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना स्टैंड अप इंडिया योजना के जरिए उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित दिवालिया हो गए हैं।

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