Husband Wife case: “पत्नी की कमाई से खर्च के लिए पैसे मांगना क्राइम नहीं”: कोलकाता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Husband Wife case
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Husband Wife case: क्या कोई पति अपनी नौकरीपेशा पत्नी से घर के खर्चे के लिए पैसे मांगता है, तो इसे मानसिक उत्पीड़न या क्रूरता माना जा सकता है? कोलकाता हाईकोर्ट ने इस सवाल पर एक बेहद अहम और साफ फैसला सुनाया है, जिससे इस बहस पर अब काफी हद तक विराम लग सकता है।

मामला भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) में काम करने वाले एक पति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत से जुड़ा है। उनकी पत्नी, जो खुद भी GSI में कार्यरत हैं, ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था। महिला ने आरोप लगाया कि पति ने उस पर खर्चों का दबाव डाला, रूप-रंग को लेकर टिप्पणी की, और जातिगत अपमान किया।

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हालांकि, जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने केस को खारिज करते हुए कहा कि एक शिक्षित और कमाने वाली पत्नी से घरेलू खर्चों में सहयोग की उम्मीद रखना ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं आता। कोर्ट ने साफ कहा कि “अगर कोई पति अपनी पत्नी से घर के खर्चों में भागीदारी की उम्मीद करता है, या फिर घर की जिम्मेदारियों को आपस में बांटने की बात करता है, तो इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।”

कोर्ट ने कही ये अहम बातें: Husband Wife case

  • वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी दोनों की साझेदारी और जिम्मेदारी होती है।
  • यदि दोनों पति-पत्नी फ्लैट के जॉइंट ओनर हैं, तो होम लोन की ईएमआई में दोनों की हिस्सेदारी बनती है।
  • लॉकडाउन के समय ऑनलाइन खरीदारी करने की जरूरत, या बच्चे की देखभाल को लेकर की गई सामान्य पारिवारिक बातें, कानूनी नजरिए से अपराध नहीं मानी जा सकतीं।
  • सिर्फ हर वैवाहिक असहमति को 498ए के तहत नहीं गिना जा सकता।

महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि उसके पति का व्यवहार क्रूर, घमंडी और अन-रोमांटिक है। उसने यह भी दावा किया कि पति और सास-ससुर ने उसकी जाति और रंग-रूप पर आपत्तिजनक बातें कहीं, और बच्चे को ठीक से खाना-पहनावा और दवाइयां भी नहीं दी गईं।

लेकिन कोर्ट ने ये साफ किया कि जब तक किसी जातिगत टिप्पणी को सार्वजनिक रूप से अपमानजनक तरीके से नहीं कहा गया हो, तब तक उसे SC/ST एक्ट के तहत नहीं गिना जा सकता।

फैसले के मायने

इस फैसले ने साफ कर दिया कि पति-पत्नी दोनों अगर कमाने वाले हैं, तो घर के आर्थिक जिम्मेदारियों को साझा करना न सिर्फ स्वाभाविक है बल्कि यह कोई कानूनन ‘क्रूरता’ नहीं है। यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल बन सकता है जहां दांपत्य जीवन की हर नाराज़गी या असहमति को तुरंत कानूनी विवाद में बदल दिया जाता है।

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