IAS Santosh Verma: मध्य प्रदेश में एक बड़े प्रशासनिक मामले ने हलचल मचा दी है। राज्य सरकार ने विवादित बयानों और गंभीर आरोपों से घिरे आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए उन्हें आईएएस सेवा से बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार का कहना है कि वर्मा की पदोन्नति “सही” नहीं, बल्कि जाली दस्तावेज़ों और मनगढ़ंत फाइलों के सहारे हासिल की गई थी। यही नहीं, विभागीय जांच में उनके आचरण को सेवा नियमों का सीधा उल्लंघन बताया गया है।
कैसे शुरू हुई कार्रवाई? (IAS Santosh Verma)
मुख्यमंत्री के निर्देश पर सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) ने पूरी फाइल केंद्र सरकार को भेज दी है और औपचारिक तौर पर वर्मा की आईएएस से बर्खास्तगी की सिफारिश कर दी है। सरकार का आरोप है कि वर्मा को राज्य प्रशासनिक सेवा (SAS) से आईएएस कैडर में लाने के लिए फर्जी पदोन्नति आदेश तैयार किए गए, जिन पर अब कई आपराधिक मामले भी अदालतों में लंबित हैं। जांच में यह भी सामने आया कि वर्मा ने फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर ‘इंटीग्रिटी सर्टिफिकेट’ हासिल किया था जो किसी भी पदोन्नति की प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा होता है।
कारण बताओ नोटिस पर उनकी प्रतिक्रिया भी अधिकारियों को असंतोषजनक लगी। उल्टा वर्मा इस दौरान भी लगातार अभद्र और भड़काऊ बयान देते रहे, जिससे मामला और गंभीर हो गया। इसके बाद सरकार ने अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के तहत उन पर औपचारिक आरोप पत्र जारी करने का फैसला लिया।
न्यायाधीश के साथ कथित साजिश
इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाली बात इंदौर की एक अदालत से आई रिपोर्ट है। आरोपों के अनुसार, संतोष वर्मा ने एक जज के साथ मिलकर ‘मनगढ़ंत फैसला’ तैयार करवाने की कोशिश की, ताकि वे एक घरेलू मामले में बरी हो सकें और पदोन्नति का रास्ता साफ हो जाए।
सूत्रों के मुताबिक, वर्मा ने न्यायिक रिकॉर्ड में हेरफेर कर अपनी छवि ‘क्लीन’ दिखाने का प्रयास किया था, जिससे वे विभागीय पदोन्नति समिति में क्वालिफाई कर सकें। यह आरोप प्रशासनिक सेवा में बेहद गंभीर माना जाता है।
विवादित बयान ने बढ़ाई मुश्किलें
इन सबके बीच वर्मा का विवादित बयान उनके लिए और बड़ी मुसीबत बन गया। 23 नवंबर 2025 को भोपाल में आयोजित AJJAKS सम्मेलन में उन्होंने कहा था, “आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कोई ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को न दे दे।”
यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और कई ब्राह्मण संगठनों ने इसे “जातिवादी, भड़काऊ और महिलाओं का अपमान” बताया। न्यायपालिका और सामाजिक समूहों ने भी इसकी कड़ी आलोचना की, जिसके बाद मामला पूरी तरह राजनीतिक और प्रशासनिक संकट बन गया।
पद से हटाए गए, अब केंद्र के फैसले का इंतजार
मुख्यमंत्री के निर्देश पर कृषि विभाग ने तुरंत उन्हें उप सचिव के पद से हटा दिया और उनका कार्यभार भी छीन लिया। अब उन्हें GAD पूल में भेज दिया गया है, जहां न कोई विभाग होता है, न कोई जिम्मेदारी—एक तरह से यह ठंडे बस्ते में डालने जैसा कदम है।
अब क्या होगा आगे?
राज्य सरकार उनकी बर्खास्तगी की फाइल केंद्र को भेज चुकी है। अंतिम फैसला अब केंद्र सरकार के हाथ में है कि उन्हें आईएएस सेवा से पूरी तरह हटाया जाए या नहीं। लेकिन इतना साफ है कि मध्य प्रदेश सरकार यह संदेश देना चाहती है कि फर्जी पदोन्नति, दस्तावेज़ों में हेरफेर और जातीय तनाव भड़काने वाला व्यवहार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यदि केंद्र सरकार ने भी मंजूरी दे दी, तो संतोष वर्मा उन चंद अफसरों में शामिल हो जाएंगे जिन्हें इतने गंभीर आरोपों पर सरकारी सेवा से बाहर किया गया।
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