Independence Day 2025: 15 अगस्त 1947 वो तारीख जिसे हर भारतीय गर्व से याद करता है। इसी दिन भारत ने सैकड़ों साल की गुलामी की जंजीरें तोड़ी थीं। देशभर में आज़ादी का जश्न था। दिल्ली के लाल किले से पंडित नेहरू ने ‘त्रिस्ट विद डेस्टिनी’ का ऐतिहासिक भाषण दिया। तिरंगा पहली बार आधिकारिक रूप से स्वतंत्र भारत में फहराया गया। हर गली, हर मोहल्ले में ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंज रहे थे। लेकिन एक शख्स इस ऐतिहासिक दिन के जश्न से दूर था — राष्ट्रपिता महात्मा गांधी।
लोग आज भी पूछते हैं कि जब पूरा देश आज़ाद हो रहा था, तब गांधी जी कहां थे? क्या वो इस मौके पर शामिल नहीं होना चाहते थे? और अगर नहीं हुए, तो क्यों?
बंगाल में, जहां आज़ादी के साथ दर्द भी बंट रहा था- Independence Day 2025
जिस समय दिल्ली में आज़ादी का उत्सव मनाया जा रहा था, उस वक्त महात्मा गांधी बंगाल के नोआखली (जो अब बांग्लादेश में है) में थे। वहां वो सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए कोशिश कर रहे थे। भारत की आज़ादी के साथ ही देश का विभाजन हुआ, और इसी के साथ शुरू हुई भयानक सांप्रदायिक दंगों की एक लहर। लाखों लोग मारे गए, करोड़ों को घर छोड़ना पड़ा। पंजाब और बंगाल में हालात सबसे बदतर थे।
गांधी जी ने तय किया कि वो जश्न में शामिल नहीं होंगे। उनकी नज़र में आज़ादी का असली मतलब तभी था जब हर धर्म, हर इंसान को बराबरी और सुरक्षा मिले। इसलिए उन्होंने दिल्ली में झंडा फहराने की बजाय हिंदू-मुस्लिम एकता और शांति के लिए नोआखली में रहकर काम करना ज़्यादा ज़रूरी समझा।
भूख हड़ताल और शांति की पुकार
गांधी जी ने वहां हिंसा रोकने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। उनका मानना था कि अगर इंसान एक-दूसरे को मार रहे हैं, तो आज़ादी का मतलब ही क्या रह जाता है? उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की कि नफरत से कोई देश नहीं बनता।
नेहरू और पटेल का निमंत्रण, गांधी जी का जवाब
स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने गांधी जी को दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। लेकिन गांधी जी ने विनम्रता से मना कर दिया। उन्होंने जवाब में लिखा,
“मैं 15 अगस्त को खुश नहीं हो सकता। मैं आपको धोखा नहीं देना चाहता, मगर मुझे भारत-पाकिस्तान के बीच भविष्य के संघर्ष की चिंता है। मेरे लिए हिंदू-मुस्लिम एकता, आज़ादी से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
आधी रात को ही क्यों मिली आज़ादी?
इस सवाल का जवाब भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। भारत को आधी रात को आज़ादी इसलिए दी गई क्योंकि ब्रिटिश सरकार को डर था कि दिन में विभाजन की खबर के साथ दंगे और हिंसा और भड़क सकती है। इसके अलावा, पाकिस्तान को 14 अगस्त को स्वतंत्र घोषित किया गया था और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को कराची जाकर वहां सत्ता का हस्तांतरण करना था। इसलिए उन्होंने तय किया कि भारत को आज़ादी 15 अगस्त की आधी रात को दी जाएगी, ताकि दोनों देश एक-दूसरे से कुछ घंटों के फर्क से आज़ाद हो सकें।
आज़ादी और गांधी — एक साथ, लेकिन अलग
गांधी जी का इस ऐतिहासिक समारोह में शामिल न होना इस बात का प्रतीक था कि उनके लिए स्वराज सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता थी। वो मानते थे कि अगर लोगों के दिलों में नफरत बाकी है, तो झंडा फहराने से क्या बदलता है?
इसलिए जब पूरा देश 15 अगस्त 1947 की रात खुशी से झूम रहा था, गांधी जी मौन थे — एक कोने में, एक जलते हुए बंगाल में, जहां वो अपने भारत की आत्मा को बचाने की कोशिश कर रहे थे।