India Air Defence System: भारत ने अपनी सुरक्षा ताकत को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाते हुए स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ा लिया है। अब देश के पास ऐसा एयर डिफेंस शील्ड होगा जो दुश्मन के फाइटर जेट, मिसाइल और ड्रोन जैसे हवाई खतरों को एक झटके में नाकाम कर सकेगा। इस मल्टी लेयर सुरक्षा प्रणाली को ऐसे तैयार किया जा रहा है कि भविष्य में अमेरिकी F-35 जैसे हाईटेक फाइटर जेट भी इससे बच नहीं पाएंगे।
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दरअसल, 23 अगस्त को ओडिशा तट से DRDO ने Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का पहला सफल परीक्षण किया। यह भारत का पहला पूरी तरह स्वदेशी मल्टी-लेयर एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसे तीन स्तरों पर बनाया गया है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि अगर कोई हमला पहली लेयर से बच भी जाता है, तो दूसरी या तीसरी परत में जाकर ज़रूर फंस जाएगा।
परीक्षण के दौरान IADWS ने एक ही समय में तीन अलग-अलग टारगेट्स को अलग-अलग ऊंचाइयों और रेंज पर मार गिराया—इनमें दो हाई-स्पीड UAVs और एक मल्टीकॉप्टर ड्रोन शामिल था। ये टेस्ट यह दिखाता है कि भारत अब मल्टी टारगेट हवाई खतरों से निपटने में भी सक्षम है।
कैसी है ये तीन परतों वाली सुरक्षा प्रणाली? India Air Defence System
इस सिस्टम में DRDO ने तीन स्वदेशी टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़ा है:
- QRSAM (Quick Reaction Surface-to-Air Missile): यह 25-30 किलोमीटर तक दुश्मन के टारगेट को हिट करने में सक्षम है और 8×8 मोबाइल वाहनों पर माउंटेड होने के कारण कहीं भी तुरंत तैनात किया जा सकता है।
- VSHORADS: यह बहुत ही कम ऊंचाई पर उड़ते हुए खतरों को खत्म करने वाला पोर्टेबल सिस्टम है, जो फील्ड में आसानी से लगाया जा सकता है।
- Directed Energy Weapon (DEW): इसमें 30 किलोवॉट की लेजर टेक्नोलॉजी है जो 5 किमी तक ड्रोन, हेलिकॉप्टर और मिसाइल को हवा में ही खत्म कर सकती है।
इन सभी को DRDL द्वारा विकसित किए गए एक सेंट्रलाइज्ड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से कंट्रोल किया जाता है।
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ से मिली प्रेरणा
यह कदम ऐसे वक्त में आया है जब कुछ महीने पहले भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमलों को सफलतापूर्वक नाकाम किया था। उसी अनुभव ने साफ कर दिया था कि अब भारत को अपनी खुद की एयर डिफेंस शील्ड की तत्काल जरूरत है।
आने वाली है स्टार वॉर्स टेक्नोलॉजी
DRDO प्रमुख समीर वी. कामत के मुताबिक, यह तो बस शुरुआत है। भारत अब हाई-एनर्जी माइक्रोवेव्स और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (EMP) जैसी अत्याधुनिक तकनीकों पर काम कर रहा है, जिससे हमारी सुरक्षा प्रणाली “स्टार वॉर्स” जैसी बन सके।
इंजन टेक्नोलॉजी अब भी चुनौती
हालांकि भारत ने मिसाइल और रडार टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है, लेकिन फाइटर जेट इंजन अब भी हमारी कमजोरी है। कावेरी इंजन प्रोजेक्ट पर 2,000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, फिर भी सफलता नहीं मिली। तेजस और AMCA जैसे प्रोजेक्ट आज भी विदेशी इंजनों पर निर्भर हैं। यही वजह है कि पीएम मोदी ने इस 15 अगस्त को लाल किले से स्वदेशी जेट इंजन बनाने का आह्वान किया था।
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