India-US Trade Deal: भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित ट्रेड डील को लेकर बातचीत एक बार फिर रफ्तार पकड़ रही है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल दोबारा वाशिंगटन पहुंच चुका है, और उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका द्वारा 1 अगस्त 2025 से लागू की जाने वाली टैरिफ डेडलाइन से पहले कोई बड़ा ऐलान संभव हो सकता है। हालांकि, डील की राह में सबसे बड़ी अड़चन अब भी कृषि और डेयरी सेक्टर को लेकर बनी हुई है, जिस पर दोनों देशों के बीच असहमति बनी हुई है।
अमेरिकी मांग और भारत की स्पष्ट नीति- India-US Trade Deal
अमेरिका लगातार भारत से कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने की मांग कर रहा है। वह चाहता है कि भारत अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स को देश में प्रवेश की अनुमति दे। लेकिन भारत सरकार का रुख स्पष्ट है—देश के करोड़ों किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा, चाहे जितना भी दबाव क्यों न हो।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत केवल उन्हीं शर्तों पर समझौता करेगा, जो दोनों देशों के लिए बराबरी से फायदेमंद हो। वहीं, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कहा था कि “ट्रेड डील पर कोई भी निर्णय भारतीय किसानों के हित को प्राथमिकता देते हुए ही लिया जाएगा।”
डेयरी सेक्टर को खोलना बन सकता है बड़ा संकट
भारत के इस सख्त रुख के पीछे मजबूत आर्थिक तर्क भी हैं। हाल ही में एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट ने साफ किया है कि अगर भारत अपने डेयरी बाजार को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोलता है, तो इससे देश के करीब 8 करोड़ डेयरी किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स को भारी सब्सिडी मिलती है, और उनके भारत में प्रवेश से घरेलू दूध की कीमतों में 15% से 20% तक गिरावट आ सकती है। इससे पूरे सेक्टर को 1.8 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू लॉस झेलना पड़ सकता है। इसमें से किसानों को लगभग 1.03 लाख करोड़ रुपये सालाना नुकसान होगा, जो सीधे तौर पर उनकी आय और जीवन स्तर को प्रभावित करेगा।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव
भारत का डेयरी उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। यह राष्ट्रीय सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में लगभग 2.5% से 3% का योगदान देता है और इसकी कुल वैल्यू 7.5 से 9 लाख करोड़ रुपये के बीच है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसान जुड़े हुए हैं, जिनकी जीविका पूरी तरह इस पर निर्भर है।
एसबीआई की रिपोर्ट यह भी बताती है कि यदि अमेरिका को बाजार की पहुंच दी जाती है, तो भारत का दूध आयात सालाना 2.5 करोड़ टन तक बढ़ सकता है। इससे घरेलू उत्पादकों पर जबरदस्त दबाव पड़ेगा और उन्हें बाजार से बाहर होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
व्यापक आर्थिक साझेदारी बनाम स्थानीय हित
हालांकि अमेरिका के साथ व्यापक आर्थिक और रणनीतिक सहयोग की संभावना इस डील के जरिए बढ़ सकती है, लेकिन इसका सामाजिक और राजनीतिक मूल्य बहुत अधिक हो सकता है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई है कि अमेरिका जैसे देशों से अत्यधिक सब्सिडी वाले कृषि उत्पादों—जैसे जीएम सोया, पोल्ट्री और चावल—के आयात से भारत की खाद्य सुरक्षा और कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।