IPS RS Yadav: क्या होता है जब एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी को अपनी निष्ठा से समझौता न करने के कारण सत्ता और राजनीति के दबाव का सामना करना पड़ता है? जब एक अधिकारी अपने कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटता, चाहे उसे कितनी ही कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े? ये कहानी है हरियाणा के जांबाज पूर्व आईपीएस अधिकारी, आर एस यादव की। हाल ही में एक इंटरव्यू में पूर्व IPS अधिकारी आरएस यादव ने अपनी जिंदगी के उन पन्नों को खोला, जो सत्ता की ताकत और कानून की ईमानदारी के बीच की जंग को बयां करते हैं। आइए जानते हैं कि उन्होंने इंटरव्यू में अपनी ज़िंदगी के किन पहलुओं पर बात की।
एक सामान्य किसान परिवार से आईपीएस अधिकारी बनने तक का सफर (IPS RS Yadav)
उनके निजी जीवन की बात करें तो आर एस यादव का जन्म 18 फरवरी 1962 को हरियाणा के शोभापुर गांव में हुआ। उनके पिता एक शिक्षक थे और दादा किसान थे। उनका बचपन एक साधारण परिवार में बीता, जहां उन्हें अच्छे संस्कार और शिक्षा का वातावरण मिला। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल से प्राप्त की और आगे चलकर बीकॉम नारनौल के गवर्नमेंट कॉलेज से किया, जहां वो हिंदी मीडियम में पढ़ते थे लेकिन खुद से इंग्लिश प्रैक्टिस करते थे, क्योंकि आगे UPSC जैसी परीक्षाओं में इंग्लिश जरूरी होती है। उसके बाद एमकॉम राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से। पढ़ाई में वो हमेशा टॉपर रहे, खासकर मैथ्स में तो 100 में 100 नंबर आते थे।
IPS बनने का सपना और संघर्ष
इंटरव्यू में यादव आगे बताते हैं कि उनके परिवार में कोई IPS नहीं था, लेकिन गांव में रामेश्वर दयाल नाम के एक SC कैटेगरी के IPS था। इसके बाद स्कूल के दिनों उन्हें एक प्रेरणा मिली थी जब उनके गांव के एक लड़के ने उन्हें बताया कि उसका अंकल आईपीएस हैं। इसके बाद से ही उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने का निर्णय लिया। वह आगे बताते हैं कि कॉलेज में प्रिंसिपल ओपी गुप्ता की बेटी अनुराधा गुप्ता IAS बनीं, और अभय सिंह जैसे टीचरों ने भी मोटिवेट किया। 22 साल की उम्र में वो GIC में असिस्टेंट एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर बने, फिर दिल्ली पोस्टिंग मिली। वहां रहते हुए UPSC की तैयारी की। दिल्ली में गुरुकुल गौतम नगर में फ्री रहकर बच्चों को इंग्लिश और मैथ्स पढ़ाते थे, बदले में खाना और 400 रुपये मिलते थे। दिन में नौकरी, रात में 4 घंटे पढ़ाई। पहला अटेम्प्ट में प्री क्लियर किया लेकिन मेन नहीं, दूसरे में 1988 बैच में पास हुए। रैंक 122 थी, और IPS में टॉपर थे। अगर एक मार्क और मिलता तो IAS हो जाते, लेकिन वो कहते हैं कि किस्मत में IPS ही लिखा था।
सत्ता और कानून का संघर्ष
इसके बाद 1993-94 में वे SP जींद, फिर सोनीपत, फिर SP सिरसा रहे। यहीं से कहानी में ट्विस्ट आया। भजनलाल के कार्यकाल में मंत्री मांगेराम गुप्ता ने उन पर गैर-कानूनी काम करने का दबाव बनाया, लेकिन यादव ने मना कर दिया। भजनलाल ने उन्हें बुलाया, लेकिन यादव ने कहा कि मर्डर, रॉबरी, रेप और किडनैपिंग जैसे मामलों में वह किसी की नहीं सुनते। इस घटना के बाद भजनलाल ने उनका ट्रांसफर कर दिया। सोनीपत में भी वे धर्मपाल मलिक और सुधा मलिक जैसे नेताओं के दबाव में नहीं झुके, इसलिए उन्हें फिर SP CID चंडीगढ़ में ट्रांसफर कर दिया गया।
अभय चौटाला से हुई दुश्मनी
आर एस यादव के करियर की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1995 में हुई, जब उन्हें सिरसा में कानून व्यवस्था को संभालने का आदेश मिला। दरअसल 1995 में सिरसा में रास्ता रोको आंदोलन से हालात बिगड़े। बसें जलीं, ट्रेन गिराई गई। भजनलाल ने यादव को SP सिरसा बनाया, फ्री हैंड दिया। उस समय सिरसा में चौटाला परिवार के सदस्य अजय और अभय चौटाला के खिलाफ एक केस दर्ज था, वे GRP केस में वांटेड थे। यादव ने थाना इंचार्जों को उन्हें अरेस्ट करने का ऑर्डर दिया, लेकिन वे डरे हुए थे। सात थाना इंचार्ज सस्पेंड हुए, तब जाकर एक्शन हुआ।
इसी बीच अजय चौटाला ने यादव को चौराहे पर चैलेंज किया कि मुझे अरेस्ट कर के दिखाओ, लेकिन जब यादव अरेस्ट करने गए तब अजय चौटाला वहां से भाग गया। यादव ने उनका पीछा किया और राजस्थान के फफड़ाना गांव में एक रिटायर्ड DSP के घर से उन्हें पकड़ लिया। अभय को भी एक जज के घर से अरेस्ट किया गया। दोनों एक महीने तक सिरसा जेल में रहे। हालांकि, यह कदम उनकी सरकार के मंत्रियों को नापसंद आया और उन्होंने यादव को बार-बार दबाव डालने की कोशिश की। यहां तक कि मुख्यमंत्री भजनलाल के द्वारा उन्हें यह कहा गया कि वह चौटाला परिवार को नाराज क्यों कर रहे हैं। यादव ने उन्हें यह स्पष्ट किया कि वह अपने कर्तव्यों से कभी समझौता नहीं करेंगे, चाहे जो भी हो।
इसके बाद देवीलाल ने नरसिम्हा राव से बात की, फिर भजनलाल ने यादव को NOC देकर चौटाला को रिहा करवा लिया। लेकिन इस घटना से चौटाला परिवार नाराज हो गया। 1996 में बंसीलाल CM बन गए और यादव को गुजरात रिलीव कर दिया।
गुजरात में उनकी चुनौतियाँ और सस्पेंशन
अपने इंटरव्यू में उन्होंने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि गुजरात पोस्टिंग में उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। यहां यादव का होम मिनिस्टर हरन पंड्या से टकराव हुआ। दरअसल यादव पर किडनैपिंग केस में किडनैपर जयसुख शाह को बचाने का दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन यादव ने मना कर दिया। लड़की को 10 दिन के अंदर ज़िंदा बचा लिया गया, लेकिन पंड्या नाराज़ रहे। वहीं एक रॉबरी केस में भी यादव पर राजनीतिक दबाव बढ़ा, तो उन्होंने अपने उच्च अधिकारियों को यह बताया कि वे इस प्रकार के अपराधियों का समर्थन नहीं कर सकते। यादव ने बताया कि पॉलिटिकल प्रेशर के लेकर उन्होंने गवर्नर को एक पत्र भी लिखा। हालांकि बाद में साल 2000 में यादव को सस्पेंड कर दिया गया। इंटरव्यू में यादव ने कहा कि हरन पंड्या जैसे शक्तिशाली नेता ने उन्हें धमकी दी थी कि वह हरियाणा में कहीं भी काम नहीं करने देंगे। यह धमकी उनके लिए एक बड़ा चुनौती थी, लेकिन उन्होंने कभी अपनी ईमानदारी से समझौता नहीं किया
पुराना बदला और सरकारी गाड़ी का केस
यादव ने अपने इंटरव्यू में आगे बताया, ‘मैं 2000 में गुजरात में सस्पेंड था। उसी साल हरियाणा में चौटाला साहब मुख्यमंत्री बन गए। पुराना हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया। 16 सितंबर 2000 को उन्होंने मेरे खिलाफ केस दर्ज करवा दिया … सरकारी गाड़ी के कथित मिसयूज का। कहा गया कि मैंने एक लाख रुपए का नुकसान पहुँचाया। मैंने कहा, ठीक है साहब, रिकवरी कर लो, मैं भर दूँगा। लेकिन वो तो बदला लेना था।’
गिरफ्तारी और चौटाला गांव की रात
उन्होंने आगे बताया, ‘फिर आया 17 दिसंबर 2003 का दिन। मैं पंचकूला में था। सुबह-सुबह पुलिस आई और मुझे अरेस्ट कर लिया। जींद कोर्ट में पेश किया, फिर रिमांड पर ले लिया। पहले सफीदों थाने ले गए, फिर रात को मुझे चौटाला गांव ले जाया गया। वहाँ मंजीत अहलावत और समय राम कौशिक थे। अभय चौटाला खुद थानेदार की कुर्सी पर बैठे थे। रबड़ की मोटी छित्तर थी उनके हाथ में। एकदम नई। उन्होंने उससे मुझे 39 बार छित्तर मारे। खून निकाल रहा था। मैं चुपचाप गिनता रहा एक, दो, तीन… उनतालीस। एक बार भी चीखा नहीं। मन में बस भगवान बुद्ध की बात घूम रही थी ‘जो दुख आता है, उसे स्वीकार कर लो, फिर वो कम दुख देता है।’
हिसार जेल और चौटाला साहब की मुलाकात जो नहीं हो सकी
उन्होंने आगे बताया, ‘फिर मुझे हिसार सेंट्रल जेल भेज दिया। वहाँ खबर आई कि ओम प्रकाश चौटाला साहब खुद मुझसे मिलने आ रहे हैं। जेलर बिश्नोई साहब ने साफ मना कर दिया बोले, आप नहीं मिल सकते। 26 दिसंबर 2003 को दस दिन बाद मुझे जमानत मिल गई और केस बाद में खत्म हो गया। उधर गुजरात सरकार ने मुझे सर्विस से डिसमिस कर दिया। तीन साल मैं नवीन जिंदल जी के साथ पर्सनल असिस्टेंट रहा। 2010 में CAT (Central Administrative Tribunal) में केस जीता, नौकरी फिर से मिल गई। मैं दिल्ली गया, नरेंद्र मोदी जी से मिला, उस वक्त वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कहा, ‘यादव जी, हरन पंड्या तो मर चुका है, अब आप आ जाओ।’ मैंने कहा, ‘सर, अब उम्र हो गई, लाइट ड्यूटी दे दो।’ बस, लाइट ड्यूटी ले ली और 2022 में रिटायर हो गया।’
सफलता का राज: माफ करना और शांति की प्राप्ति
अपने संघर्षों और कठिनाइयों के बावजूद, आर एस यादव ने हमेशा ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने भगवान बुद्ध के सिद्धांतों को अपनाया और उन्हें अपनी मुश्किलों से उबरने के लिए प्रेरणा मिली। उनका मानना है कि जो कुछ भी जीवन में हुआ, वह उनके कर्मों का परिणाम था और वे उसे संतुलित करने की कोशिश कर रहे थे।
यादव का कहना है कि उनके जीवन में सबसे बड़ा सबक यह था कि वे उन लोगों को माफ कर सकें, जिन्होंने उन्हें तंग किया था। उन्होंने कहा, “आप जितना किसी को माफ करेंगे, उतना ही जीवन में शांति और खुशी आएगी।” उनका मानना है कि अगर हम अपने अंदर की नफरत और गुस्से को छोड़ दें, तो हम मानसिक शांति पा सकते हैं।
समाज के लिए योगदान: बुद्ध का प्रचार
आर एस यादव ने अपने जीवन के संघर्षों से बहुत कुछ सीखा और अब वह भगवान बुद्ध के उपदेशों को फैलाने का काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि जितना अधिक हम दूसरों को क्षमा करते हैं, उतना अधिक हम खुद शांति और सुख पा सकते हैं। वह अब अपने पैतृक गांव शोभापुर में भगवान बुद्ध के मंदिर और ध्यान केंद्र का संचालन करते हैं, जहां वह लोगों को विपसना और ध्यान सिखाते हैं।








