Jammu Rohingya refugees: कहीं रोहिंग्या बने टीचर, कहीं बस गई ‘बर्मा कॉलोनी’; CJI की रेड-कार्पेट वाली चेतावनी जम्मू में सच साबित

Jammu Rohingya refugees
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Jammu Rohingya refugees: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि देश में घुसपैठियों के लिए किसी भी तरह का “रेड कार्पेट वेलकम” नहीं होना चाहिए। अदालत का यह रुख साफ तौर पर बताता है कि भारत अवैध घुसपैठ को लेकर कितनी गंभीरता से सोचता है। लेकिन दूसरी तरफ, अगर जम्मू की जमीनी स्थिति को देखा जाए, तो तस्वीर अदालत की चेतावनी से बिल्कुल उलट दिखाई देती है। न्यूज18 की एक ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि म्यांमार से आए रोहिंग्या मुस्लिम न सिर्फ जम्मू में बस चुके हैं, बल्कि उनकी मौजूदगी अब स्थायी ढांचे का रूप लेती जा रही है।

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कासिम नगर अब ‘बर्मा बस्ती’, तेजी से बढ़ी स्थायी बसावट (Jammu Rohingya refugees)

पहले जिन रोहिंग्या परिवारों को जम्मू शहर के इर्द-गिर्द बने अस्थायी कैम्पों में देखा जाता था, वे अब तमाम इलाकों में स्थायी बस्तियां बना चुके हैं। नरवाल, सुंजवां, भठिंडी और आसपास के कई हिस्सों में झुग्गियों का विस्तार हो चुका है। इन जगहों पर छोटी दुकानों, कबाड़ी के ठेलों, और अस्थायी बाजारों का उभरना बताता है कि यह समुदाय अब अल्पकालिक रहने वालों की तरह नहीं, बल्कि स्थायी रूप से बस चुके लोगों की तरह व्यवहार कर रहा है।

कासिम नगर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2007 से यह इलाका ‘रोहिंग्या बस्ती’ के नाम से जाना जाने लगा। और अब तो स्थिति इतनी बदल गई है कि 2020 के बाद इसे समुदाय ने ही “बर्मा बस्ती” नाम दे दिया, जो उनके बढ़ते प्रभाव और स्थायी पहचान की ओर इशारा करता है।

रोहिंग्या समुदाय का बढ़ता नेटवर्क

रोहिंग्या सिर्फ बस ही नहीं रहे, बल्कि स्थानीय ढांचे में धीरे-धीरे घुल-मिल भी रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार कई रोहिंग्या बच्चों को स्थानीय सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में दाखिला मिला हुआ है। इतना ही नहीं, एक रोहिंग्या मूल के शिक्षक सादिक की भी पहचान हुई है, जो बच्चों को पढ़ाता है।

इसके अलावा, बच्चों के लिए अलग से मदरसे चल रहे हैं, जिनकी गतिविधियों पर सुरक्षा एजेंसियां नजर रखती रही हैं। इन मदरसों और स्कूलों तक पहुंच यह संकेत देती है कि यह समुदाय सिर्फ शरण लेने नहीं आया, बल्कि धीरे-धीरे अपना सामाजिक ढांचा तैयार कर रहा है।

आर्थिक रूप से भी रोहिंग्या लोगों की मौजूदगी बढ़ी है। वे कबाड़ इकट्ठा करने, मजदूरी, छोटी दुकानों और रेहड़ी फड़ी जैसे कामों में सक्रिय हैं। कुछ जगहों पर कपड़ों की छोटी दुकानें भी उनके द्वारा चलाई जा रही हैं। यह सब उनकी स्थायी बसावट के इरादे को और मजबूत करता है।

जनसांख्यिकीय बदलाव की चिंता, सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ी सतर्कता

साल 2007 से 2015 के बीच रोहिंग्या आबादी में तीव्र वृद्धि देखी गई। 1994 में जहां सिर्फ एक परिवार जम्मू पहुंचा था, वहीं 2009 के बाद इनकी संख्या लगातार बढ़ती गई। सुरक्षा एजेंसियों ने कई बार दस्तावेज जांच अभियान चलाए, जिनमें कई रोहिंग्या बिना किसी वैध पहचान पत्र के पाए गए। 2021 में, कई रोहिंग्या महिलाएं और बच्चे को हिरासत में लिया गया था। यह स्थिति बताती है कि प्रशासन के बार-बार चेतावनी देने के बावजूद अवैध बसावट अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही है।

जम्मू जैसी संवेदनशील सीमा वाले क्षेत्र में इस तरह की अनधिकृत बसावट देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है। स्थानीय लोगों और सुरक्षा अधिकारियों की चिंता है कि कहीं यह बदलाव भविष्य में जनसांख्यिकीय स्वरूप को न बदल दे।

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और जमीनी स्थिति के बीच बड़ा विरोधाभास

सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि भारत में घुसपैठियों को किसी भी प्रकार की सहज सुविधा नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन जम्मू की जमीनी हकीकत यह दिखा रही है कि रोहिंग्या समुदाय संगठित तरीके से एक स्थायी ढांचा बना चुका है बस्तियां, बाजार, स्कूल, धार्मिक संस्थान और कारोबार… सब कुछ।

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