Jarnail Singh Bhindranwale: पंजाब के उथल-पुथल भरे दौर में एक ऐसा किस्सा हुआ था, जो अगर हकीकत बन जाता, तो शायद इतिहास की दिशा कुछ और होती। इस दिलचस्प और सस्पेंस से भरी कहानी का खुलासा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद किया है। ये वही दौर था जब पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन अपने चरम पर था और जरनैल सिंह भिंडरावाले की धमक पूरे राज्य में महसूस की जा रही थी।
इस घटनाक्रम का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार हरिंदर बावेजा की नई किताब ‘They Will Shoot You, Madam: My Life Through Conflict’ में किया गया है, जिसका हाल ही में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में विमोचन हुआ। इसी मौके पर अमरिंदर सिंह ने मंच से उस वाकये को साझा किया, जिसमें वो राजीव गांधी और भिंडरावाले की मीटिंग करवाने वाले थे, एक ऐसी मुलाकात जो कभी हो नहीं पाई।
राजीव गांधी ने दी थी खास जिम्मेदारी- Jarnail Singh Bhindranwale
अमरिंदर सिंह उस वक्त कांग्रेस सांसद थे और उन्होंने बताया कि राजीव गांधी ने खुद उनसे कहा था,
“क्या आप भिंडरावाले के साथ एक मीटिंग फिक्स कर सकते हैं?”
सिंह ने हामी भरी और आगे की योजना पर काम शुरू कर दिया।
सिंह ने इस काम के लिए पंजाब पुलिस के एसएसपी सिमरन सिंह मान से संपर्क किया, जो उस समय भिंडरावाले के नजदीकी माने जाते थे। बातचीत हुई, और भिंडरावाले अंबाला एयरपोर्ट पर मीटिंग के लिए आने को तैयार हो गया। अमरिंदर और राजीव गांधी को दिल्ली से उड़ान भरनी थी, लेकिन जैसे ही तैयारी पूरी हुई, एक अचानक आदेश आया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यह बैठक रद्द करने को कहा।
क्यों रद्द हुई मीटिंग?
अमरिंदर सिंह के मुताबिक, मीटिंग रद्द होने की असली वजह सुरक्षा को लेकर चिंता थी। भिंडरावाले को गुस्सा आ गया था, लेकिन अमरिंदर ने उन्हें यह कहकर मना लिया कि विमान में तकनीकी खराबी आ गई है।
तीन हफ्ते बाद, फिर से प्रयास हुआ। इस बार विमान उड़ान भर चुका था और जब वो अंबाला के पास पहुंचा, तो एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संदेश आया “तुरंत लौट आइए”। दोबारा मीटिंग टाल दी गई।
इंदिरा गांधी को मिली थी हमले की चेतावनी
बावेजा की किताब में लिखा गया है कि पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी थी कि भिंडरावाले की ओर से राजीव गांधी पर घात लगाकर हमला किया जा सकता है। उन्होंने साफ कहा कि यह एक जाल हो सकता है और राजीव की जान खतरे में पड़ सकती है।
सियासी साजिश या एहतियात?
किताब में अमरिंदर सिंह के हवाले से एक और पहलू सामने आया, उन्होंने शक जताया कि दरबारा सिंह, जो पहले भिंडरावाले की गिरफ्तारी का समर्थन कर चुके थे, शायद इस बैठक को रोककर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जैल सिंह को कमजोर करना चाहते थे। हालांकि, अमरिंदर का मानना है कि अगर वो बातचीत हो जाती, तो शायद खालिस्तानी आंदोलन को रोकने की दिशा में कुछ हल जरूर निकलता।
एक अनोखा किस्सा भी सुनाया
अमरिंदर सिंह ने एक हल्का-फुल्का किस्सा भी साझा किया, जो माहौल को थोड़ी देर के लिए हल्का कर गया। उन्होंने कहा,
“मैं शायद इकलौता इंसान हूं जो भिंडरावाले की खाट पर सोया है।”
अब सवाल ये उठता है कि आख़िर जरनैल सिंह भिंडरावाले कौन था और क्यों आज भी उसका नाम पंजाब के इतिहास में विवाद और उथल-पुथल की मिसाल बनकर देखा जाता है?
मोगा के छोटे से गांव से निकला था ‘बड़ा’ नाम
भिंडरावाले का असली नाम जनरैल सिंह था। उसका जन्म पंजाब के मोगा ज़िले के रोडे गांव में हुआ था। बचपन से ही उसकी सोच आम बच्चों से अलग मानी जाती थी। महज़ 30 साल की उम्र में वह सिख धर्म की शिक्षा देने वाली प्रसिद्ध संस्था दमदमी टकसाल का प्रमुख बन गया। यहीं से उसने खुद को नया नाम दिया – जरनैल सिंह भिंडरावाले।
दमदमी टकसाल का नेतृत्व मिलने के बाद उसके तेवर और विचार और ज्यादा कट्टर होते चले गए। उसने अपने भाषणों के जरिए युवाओं को प्रभावित करना शुरू किया और धीरे-धीरे वो पंजाब में एक ऐसा चेहरा बन गया, जिससे सरकारें तक खौफ खाने लगीं।
भड़काऊ भाषण और बढ़ती हिंसा
भिंडरावाले का अंदाज़ अलग था। उसके भाषणों में कड़वाहट और उग्रता थी, जो कई नौजवानों को आकर्षित करती थी। उसने एक ऐसा माहौल बना दिया जहां विरोध की आवाजें या तो दबा दी गईं या फिर खत्म कर दी गईं। हत्याओं और हिंसक घटनाओं में उसका नाम लगातार सामने आने लगा।
उस समय पंजाब में माहौल इतना बिगड़ चुका था कि 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
जब अकाल तख्त बना ठिकाना
भिंडरावाले ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर को अपना ठिकाना बना लिया और वहां स्थित अकाल तख्त से अपने समर्थकों को लगातार संबोधित करने लगा। माना जाता है कि वो जल्द ही ‘खालिस्तान’ नामक एक अलग देश की घोषणा करने वाला था। ऐसे में केंद्र सरकार के पास कार्रवाई के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा।
ऑपरेशन ब्लू स्टार – एक बड़ा और दर्दनाक अध्याय
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत हुई। 3 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और 4 जून से सेना ने स्वर्ण मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया। टैंकों और भारी हथियारों के साथ सेना ने मंदिर परिसर में प्रवेश किया।
6 जून 1984 को दो दिन की ज़बरदस्त लड़ाई के बाद भिंडरावाले मारा गया। इस ऑपरेशन में 83 भारतीय सैनिक शहीद हुए, सैकड़ों घायल हुए और करीब 400 चरमपंथियों को मार गिराया गया।
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