Jhansi News: कुत्ते का अंतिम संस्कार कर अस्थियों को गंगा में किया गया विसर्जित, इसके पीछे की वजह आपको हैरान कर देगी

Jhansi dog's last rites
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बेजुबान जानवरों की दोस्ती कितनी प्यारी होती है, यह आपको झांसी से आई हालिया खबर जानकर पता चलेगा। यहां एक परिवार ने अपने कुत्ते का पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार (Jhansi dog’s funeral) किया, जो बिल्कुल इंसानों के अंतिम संस्कार की तरह किया गया। इस घटना में कुत्ते की अस्थियां गंगा नदी में विसर्जित की गईं और फिर परिवार ने तेरहवीं की रस्म भी आयोजित की। दरअसल, शादी के बाद जब इस शख्स को संतान नहीं हुई तो उसने दो बेजुबान जानवरों को अपना बेटा और बेटी मानकर पाला। अब जब बेटे जैसे बेजुबान जानवर की मौत हो गई तो शख्स ने कुत्ते की तेरहवीं की रस्म पूरे रीति-रिवाज के साथ की। यह घटना हमारे समाज में पालतू जानवरों के प्रति गहरे भावनात्मक लगाव और उन्हें परिवार का अभिन्न अंग होने की भावना को दर्शाती है।

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ये हैं पूरा मामला – Jhansi dog’s funeral case

रक्सा थाना क्षेत्र के सुजवाह गांव निवासी 55 वर्षीय संजीव परिहार अपनी 50 वर्षीय पत्नी माला के साथ रहते हैं। दंपती के कोई संतान न होने पर संजीव ने 13 वर्ष पूर्व दो पैवेलियन पपी, एक नर कुत्ता बिट्टू और एक मादा कुत्ती पायल खरीदे थे। दोनों पति-पत्नी बिट्टू और पायल को अपने बच्चों की तरह पालते थे। 24 सितंबर की दोपहर बिट्टू और पायल घर से कुछ दूर टहल रहे थे। इसी दौरान गांव के कुछ आवारा कुत्तों ने दोनों को घेर लिया। दोनों की आवारा कुत्तों से भिड़ंत हो गई। इसमें मादा कुत्ती पायल तो भागकर घर वापस आ गई, लेकिन बिट्टू गंभीर रूप से घायल हो गया।

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बच नहीं पाया बिट्टू

संजीव ने कुत्ते को इलाज के लिए झांसी भी पहुंचाया, लेकिन बिट्टू को नहीं बचाया जा सका। बिट्टू की मौत से दुखी पति-पत्नी पूरी शाम रोते रहे। संजीव ने भारी मन से कुत्ते बिट्टू को दफना दिया और उस दिन घर में खाना नहीं बना। संजीव ने उसी दिन तेरहवीं करने का फैसला किया। वह कुत्ते की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने प्रयागराज चले गए। प्रयागराज से लौटने के बाद उन्होंने कुत्ते की तेरहवीं की रस्म पूरी की। स्थानीय लोगों और उनके रिश्तेदारों ने मिलकर एक हजार लोगों के लिए खाना पकाया। इससे पूड़ी, कई तरह की मिठाइयां और सब्जियां बनाई गईं। कुत्ते की तेरहवीं की चर्चा मोहल्ले में आम हो गई है।

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बिट्टू के बिना ज़िंदगी सूनी-सूनी

पेशे से किसान संजीव कहते हैं कि जिस तरह से उन्होंने बिट्टू की परवरिश की, बिट्टू के हमेशा के लिए चले जाने के बाद अब घर सूना लगता है। बिट्टू की यादें उन्हें ताउम्र सताती रहेंगी। पड़ोसी भी कहते हैं कि संजीव ने मूक जानवरों के साथ अच्छा व्यवहार किया है। उन्होंने दोनों कुत्तों को अपने बच्चों से बढ़कर पाला। इसके बाद एक कुत्ते की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। 50 की उम्र में मूक जानवरों के लिए ऐसा प्यार मैंने पहले कभी नहीं देखा।

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