Justice Swaminathan Impeachment: मंदिर-दरगाह विवाद से बढ़ा बवाल, जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश पर महाभियोग की मांग

Justice Swaminathan Impeachment
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Justice Swaminathan Impeachment: देश में पहले से ही धार्मिक मुद्दों को लेकर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। बंगाल के मुर्शिदाबाद और तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद में बाबरी मस्जिद के शिलान्यास और गीता पाठ को लेकर विवाद अभी थमा भी नहीं था कि अब तमिलनाडु से एक और संवेदनशील मामला सामने आ गया है। इस बार विवाद का केंद्र बने हैं जस्टिस स्वामीनाथन, जिनके एक आदेश के बाद मंदिर और दरगाह का मुद्दा सियासी बहस में बदल गया है। उनके खिलाफ अब महाभियोग (इम्पीचमेंट) की मांग तेज हो गई है।

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पूरा मामला मदुरै जिले के थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी से जुड़ा है, जहां एक प्राचीन हिंदू मंदिर स्थित है। इस मंदिर में हर साल परंपरागत रूप से कार्तिगई दीपम जलाने की परंपरा रही है। हाल ही में जस्टिस स्वामीनाथन ने इस परंपरा के अनुसार दीप जलाने का आदेश दिया। लेकिन परेशानी इस बात पर खड़ी हो गई कि यह मंदिर जिस जगह स्थित है, उसके ठीक पास एक मुस्लिम धार्मिक स्थल यानी दरगाह भी मौजूद है।

मंदिर और दरगाह की नजदीकी से भड़का विवाद (Justice Swaminathan Impeachment)

जस्टिस स्वामीनाथन का यह आदेश सामने आते ही दोनों धार्मिक समुदायों के बीच तनाव की स्थिति बन गई। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इस आदेश से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है और इससे आपसी सौहार्द्र बिगड़ सकता है। उनका तर्क है कि दरगाह के पास इस तरह का धार्मिक आयोजन कराना तनाव को न्योता देने जैसा है।

वहीं दूसरी तरफ हिंदू संगठनों का कहना है कि कार्तिगई दीपम सदियों पुरानी परंपरा है और इसे रोकना उनके धार्मिक अधिकारों का हनन होगा। उनका कहना है कि यह आयोजन किसी के खिलाफ नहीं बल्कि अपनी आस्था के अनुसार किया जा रहा है। इसी टकराव ने इस पूरे मामले को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक बना दिया है।

डीएमके का तीखा हमला, महाभियोग की मांग

तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके ने जस्टिस स्वामीनाथन के इस आदेश को लेकर सीधे मोर्चा खोल दिया है। पार्टी का आरोप है कि यह फैसला एकतरफा है और इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। डीएमके ने साफ कहा है कि इस आदेश से राज्य की धार्मिक एकता और सामाजिक शांति को खतरा पैदा हुआ है।

डीएमके नेताओं का कहना है कि जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया है और इसी वजह से उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। पार्टी ने अपने सांसदों और विधायकों से इस मुद्दे पर एकजुट होकर समर्थन करने का निर्देश भी दिया है।

महाभियोग की प्रक्रिया क्या होती है?

भारतीय संविधान में महाभियोग एक बेहद गंभीर और दुर्लभ प्रक्रिया मानी जाती है। इसका इस्तेमाल तभी किया जाता है जब किसी जज पर गंभीर आरोप लगते हैं। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए पहले संसद में विशेष प्रस्ताव लाया जाता है। इसके बाद लोकसभा और राज्यसभा दोनों में निर्धारित बहुमत से इसे पास कराना होता है। फिर इस पूरे मामले की जांच होती है। अगर आरोप सही साबित होते हैं, तभी जज को पद से हटाया जा सकता है।

यानी साफ है कि यह कोई आसान या जल्दी पूरी होने वाली प्रक्रिया नहीं है। लेकिन डीएमके का मानना है कि मामला इतना संवेदनशील है कि उसे इस स्तर तक ले जाना जरूरी हो गया है।

सियासी गलियारों में बढ़ी हलचल

राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो यह मामला डीएमके के लिए भी काफी अहम बन चुका है। पार्टी लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह तमिलनाडु के धर्मनिरपेक्ष ढांचे से कोई समझौता नहीं करेगी। डीएमके और उसके सहयोगी दल इसे सीधे तौर पर सांप्रदायिक सौहार्द्र से जोड़कर देख रहे हैं।

वहीं सत्ता पक्ष इस पूरे विवाद को राजनीतिक रूप से प्रेरित बता रहा है। सत्ता पक्ष का कहना है कि न्यायपालिका के एक आदेश को लेकर इस तरह की सियासत करना ठीक नहीं है और इससे संस्थाओं की गरिमा पर असर पड़ता है।

देशभर में पहले से चल रहे धार्मिक विवादों से जुड़ा मामला

इस पूरे घटनाक्रम को देश के मौजूदा माहौल से अलग करके नहीं देखा जा रहा है। एक तरफ बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में धार्मिक प्रतीकों को लेकर राजनीति हो रही है, दूसरी तरफ अब तमिलनाडु में भी ऐसे ही हालात बनते दिख रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि अलग-अलग राज्यों में धर्म से जुड़े मामलों का राजनीतिक रंग लेना देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।

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