Kaveri Engine Project: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान की सीमा के पार जाकर अपने टारगेट को सफलता से निशाना बनाया, जो देश के लिए गर्व का विषय है। इस प्रदर्शन के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक है इन विमानों के इंजन, जो उन्हें ध्वनि से तेज गति, हवा में अद्भुत घूमने-फिरने की क्षमता और उच्च फायर पावर देते हैं। भारत लंबे समय से स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन बनाने की दिशा में काम कर रहा है, जिसका नाम है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट।
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कावेरी इंजन की शुरुआत और उद्देश्य- Kaveri Engine Project
1989 में शुरू हुआ कावेरी प्रोजेक्ट भारत की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसका लक्ष्य था 81-83 kN थ्रस्ट वाला टर्बोफैन इंजन विकसित करना, जिसे हल्के लड़ाकू विमान तेजस में लगाया जा सके। इस परियोजना का संचालन डीआरडीओ की गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैबलिशमेंट (GTRE) ने किया। हालांकि तकनीकी जटिलताएं, आवश्यक सामग्री की कमी और वित्तीय बाधाओं के कारण इस प्रोजेक्ट में देरी हुई। तेजस विमान में अमेरिका के GE F404 इंजन का उपयोग करना पड़ा क्योंकि कावेरी इंजन अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाया।
तकनीकी और राजनीतिक चुनौतियां
1998 के बाद भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों के बाद कई देशों ने भारत को संवेदनशील लड़ाकू विमान तकनीक की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे कावेरी प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ क्योंकि सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड जैसी जरूरी सामग्रियां भारत को नहीं मिल पाईं। तकनीकी विशेषज्ञता और परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण भारत को रूस जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ा।
आधुनिक प्रगति और भविष्य की संभावनाएं
हालांकि प्रोजेक्ट में बाधाएं आईं, लेकिन हाल के वर्षों में कावेरी इंजन ने महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। GTRE ने ड्राई वैरिएंट इंजन विकसित किया है, जिसे कठोर परीक्षणों में शानदार परिणाम मिले हैं। इस इंजन के पंखे का डिजाइन विशेष रूप से ‘सांप’ आकार का है, जो हवा की बेहतर खपत सुनिश्चित करता है और इसे 13 टन वजन वाले रिमोटली पाइलटेड स्ट्राइक एयरक्राफ्ट (RSPA) जैसे मानव रहित लड़ाकू विमानों के लिए उपयुक्त बनाता है।
देरी के कारण
कावेरी प्रोजेक्ट में देरी के पीछे मुख्य रूप से तकनीकी जटिलताएं, फंड की कमी और पश्चिमी देशों की प्रतिबंध नीति रही है। ये देश भारत को केवल हथियारों का बाजार मानते हैं, तकनीक साझा करने से कतराते हैं, ताकि भारत की आत्मनिर्भरता सीमित रहे। साथ ही, विमान इंजन बनाने के लिए उन्नत एयरोथर्मल डायनेमिक्स, धातु विज्ञान और नियंत्रण प्रणाली में विशेषज्ञता आवश्यक है, जो एक चुनौती रही।
भारत की स्वदेशी तकनीक की मांग
‘मेक इन इंडिया’ और रक्षा आत्मनिर्भरता के तहत भारत ने कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को पुनः गति दी है। सरकार ने DRDO को प्रति वर्ष 100 इंजन बनाने के लिए बजट भी आवंटित किया है। यह न केवल रक्षा बल्कि नागरिक उड्डयन के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा। ऑपरेशन सिंदूर के बाद स्वदेशी तकनीक की अहमियत और बढ़ गई है, क्योंकि जियो-पॉलिटिकल चुनौतियों के बीच भारत को विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता कम करनी है।
राफेल सोर्स कोड विवाद और कावेरी की भूमिका
हाल ही में भारत ने राफेल लड़ाकू विमान का सोर्स कोड मांगकर उसमें स्वदेशी हथियारों को इंटीग्रेट करने की कोशिश की, लेकिन फ्रांस ने इसे साझा करने से मना कर दिया। सोर्स कोड, जो विमान के ऑपरेशन का मूल प्रोग्रामिंग हिस्सा होता है, न मिलने के कारण भारत के लिए स्वदेशी विकल्प और भी जरूरी हो गया है। यदि कावेरी इंजन अपने पूर्ण थ्रस्ट (90 kN) को प्राप्त कर लेता है, तो यह भविष्य में राफेल जैसे विमानों के लिए स्वदेशी विकल्प बन सकता है।