Kishtwar Cloudburst: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले का चशोटी गांव गुरुवार दोपहर एक दिल दहला देने वाली त्रासदी का गवाह बना। करीब 12:25 बजे बादल फटने की वजह से गांव में ऐसी तबाही मची कि पल भर में घर-मकान, रास्ते और ज़िंदगियां सब बर्बाद हो गए। इस दर्दनाक हादसे में अब तक 46 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें दो CISF के जवान भी शामिल हैं। वहीं, 69 लोग अब भी लापता हैं और उनके परिजन आस लगाए रेस्क्यू टीमों की ओर देख रहे हैं।
बारिश की वजह से गुरुवार रात राहत कार्य रुक गया था, लेकिन शुक्रवार सुबह से फिर से अभियान तेज़ी से शुरू हुआ। सेना, पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय लोग लगातार मलबा हटाकर दबे लोगों को ढूंढने में लगे हुए हैं। हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रेस्क्यू के लिए भारी मशीनें, जेसीबी और अर्थमूवर्स बुलाए गए हैं ताकि रास्ता साफ किया जा सके। अब तक 167 घायलों को मलबे से निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया है।
गांव का नक्शा ही बदल गया– Kishtwar Cloudburst
इस बाढ़ ने चशोटी गांव की शक्ल ही बदल दी। 16 मकान, कई सरकारी दफ्तर, तीन मंदिर, चार पानी की चक्कियां और एक 30 मीटर लंबा पुल बह गया है। दर्जनों गाड़ियां बाढ़ में बहकर चकनाचूर हो गईं। यहां तक कि एक अस्थायी बाजार, लंगर का स्थान और एक सुरक्षाबल की चौकी भी बर्बाद हो गई है।
सोशल मीडिया पर जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें देखा जा सकता है कि कैसे पूरे गांव को कीचड़ और बोल्डर ने ढंक लिया है। मकान ताश के पत्तों की तरह गिर पड़े हैं और सड़कों पर चलना तक मुश्किल हो गया है।
मचैल यात्रा भी रोकी गई
चशोटी वही जगह है जहां से मचैल माता मंदिर की यात्रा शुरू होती है। यह गांव किश्तवाड़ से करीब 90 किलोमीटर दूर है और यहां से श्रद्धालु 8.5 किलोमीटर पैदल चलकर लगभग 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर पहुंचते हैं। यात्रा इस बार 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी, लेकिन अब इस त्रासदी के बाद यात्रा को दूसरे ही दिन रोक दिया गया है।
अस्पताल में अपनों की तलाश
किश्तवाड़ का जिला अस्पताल इस समय सिर्फ इलाज का नहीं, बल्कि उम्मीद और डर के बीच झूल रहे लोगों का ठिकाना बना हुआ है। अपने गुमशुदा परिवार वालों की तस्वीरें लिए लोग हर कोने में उन्हें ढूंढते घूम रहे हैं। स्टाफ की कमी है, लेकिन SDRF के जवान लोगों की मदद में जुटे हुए हैं।
घटना में घायल उषा देवी ने बताया, “हमें लगा कि अब सब खत्म हो गया। चारों ओर पानी और पत्थर ही पत्थर थे। हम किसी तरह बचकर निकले हैं।” वहीं एक महिला जो बोल नहीं पा रही, उसकी आंखों में जो डर है, वो सब बयां कर देता है।
अनु नाम की एक मां, जो अपने छोटे बेटे के लिए परेशान है, कहती है, “मेरा बच्चा बस बच जाए। अभी तो उसकी ज़िंदगी शुरू हुई है।”
तिलक राज शर्मा अपने आंसू नहीं रोक पाए जब उन्होंने अपनी लापता भाभी की तस्वीर दिखाते हुए कहा, “पता नहीं वो किस हालत में होगी। हम हर जगह तलाश कर रहे हैं।” अनुज कुमार अपने बेटे को ढूंढने के लिए हर अस्पताल, हर रेस्क्यू कैंप में जा रहे हैं। वहीं देश कुमार की दो बहनें अब तक नहीं मिलीं। वो बस यही दुआ कर रहे हैं कि वो सुरक्षित हों।
सेना और प्रशासन मोर्चे पर
सेना की व्हाइट नाइट कॉर्प्स ने जानकारी दी है कि राहत और बचाव का काम लगातार जारी है। जवान बेहद कठिन हालातों में सर्च लाइट, रस्सियों और खुदाई के औज़ारों के साथ लोगों को मलबे से बाहर निकाल रहे हैं। किश्तवाड़ के डिप्टी कमिश्नर पंकज कुमार शर्मा और एसएसपी नरेश सिंह खुद घटनास्थल पर मौजूद हैं और हर गतिविधि की निगरानी कर रहे हैं।
प्रशासन को अंदेशा है कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है, क्योंकि अभी भी दर्जनों लोग लापता हैं और कई इलाकों में मलबा हटाया जाना बाकी है।
यह तबाही अकेली नहीं
गौर करने वाली बात यह है कि ऐसी ही एक भयावह घटना महज नौ दिन पहले उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुई थी, जहां धराली गांव में फ्लैश फ्लड से एक की मौत हुई थी और 68 लोग लापता हो गए थे।
अब सवाल ये है कि क्या पहाड़ी इलाकों में हो रहे ये हादसे सिर्फ प्राकृतिक आपदा हैं या फिर किसी बड़ी चेतावनी का संकेत? फिलहाल, चशोटी गांव के लोग इस सदमे से कब उबरेंगे, ये कहना मुश्किल है। राहत और उम्मीद दोनों अभी मलबे के नीचे दबे हुए हैं।