मिस्त्री का काम कर महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही है बठिंडा की कृष्णा देवी

Krishna Devi of Bathinda becoming inspiration for women by working as a mistri
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कृष्णा देवी पंजाब के बठिंडा जिले के मुल्तानी गांव की रहने वाली हैं। वे पिछले 16 सालों से मिस्त्री का काम कर रही हैं। वे अपने इलाके की पहली महिला मिस्त्री हैं। आमतौर पर मिस्त्री काम को पुरुषों का काम माना जाता है, लेकिन कृष्णा देवी ने इस लाइन में अपनी पहचान बनाकर इस स्टीरियोटाइप को तोड़ा है। हम आपको बताएंगे कि कैसे कृष्णा देवी ने इस काम की शुरुआत की और कैसे बठिंडा की एक आम महिला मिस्त्री बन गई।

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पहले झाड़ू-पोछा करने का काम करती थीं कृष्णा देवी

बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में कृष्णा देवी ने बताया कि कैसे उन्होंने मिस्त्री का काम शुरू किया और इस काम को शुरू करने में उन्हें किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कृष्णा अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि शुरुआत में वो झाड़ू-पोछा मारने का काम करती थीं लेकिन इससे होने वाली आमदनी बहुत कम थी। उन्हें सिर्फ़ 200 से 300 रुपए महीने की तनख्वाह मिलती थी और इसी कमाई से घर का खर्च चलाना, बच्चों की पढ़ाई और किराए के घर में रहना बहुत मुश्किल था। कृष्णा के दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की। कृष्णा चाहती थी कि उसके बच्चे खूब पढ़ें और स्कूल जाएँ लेकिन जिस तनख्वाह में वह काम कर रही थी, उसमें यह सब करना उसके लिए मुश्किल था। इसलिए उसने झाड़ू लगाने का काम छोड़ दिया और कोई दूसरा काम ढूँढने लगी।

गांव वालों ने मारे ताने

कृष्णा बताती हैं कि जब वो नई नौकरी की तलाश में थीं, तो एक महिला ने उनसे पूछा कि क्या वो राजमिस्त्री का काम करना चाहेंगी, उन्होंने कहा कि उन्हें इस काम के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन फिर भी महिला के आग्रह पर वो दूसरे मजदूरों के साथ घर बनाने जाने लगीं। कृष्णा ने एक साल तक मजदूरी की। इस तरह वो धीरे-धीरे ये काम सीख गईं। जब गांव वालों को पता चला कि कृष्णा पुरुषों के साथ काम करने जाती हैं, तो वो उनके बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे और उनके काम को लेकर ताने मारने लगे। लेकिन कृष्णा ने सबकी बातों क्कों नज़रअंदाज़ किया और अपना काम जारी रखा।

krishna devi
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खुद ठेके पर उठाती है काम

मजदूरों के साथ काम करते-करते कृष्णा इस काम में माहिर हो गई हैं और अब उन्होंने अपना खुद का काम भी शुरू कर दिया है। अब वो मॉल, घर और बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने का ठेका खुद लेती हैं। गांव वाले जो पहले उनकी आलोचना करते थे, अब कृष्णा की तारीफ करते हैं। गांव वाले कृष्णा देवी से कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि एक महिला होकर वो पुरुषों का काम इतने अच्छे से कर रही हैं। कृष्णा देवी खुद अनपढ़ हैं, लेकिन वो अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं। कृष्णा को उनके काम की वजह से कई जगहों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। महिला दिवस पर बठिंडा के डिप्टी कमिश्नर ने भी उन्हें सम्मानित किया। कृष्णा का मानना ​​है कि हर महिला को काम करने का हक मिलना चाहिए और महिलाओं का अपने पैरों पर खड़ा होना जरूरी है।

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