Maharashtra News: महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिससे सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। अब प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को रोज़ 9 घंटे नहीं बल्कि पूरे 10 घंटे काम करना होगा। वहीं सरकारी बाबू अब भी 8 घंटे की आरामदायक नौकरी में व्यस्त रहेंगे कुछ ‘फाइल घसीटते’ हुए, तो कुछ ‘चाय की चुस्की’ लेते हुए।
दरअसल मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में यह बदलाव पास किया गया है। सरकार का दावा है कि इस कदम से राज्य में निवेश बढ़ेगा, रोजगार के नए मौके बनेंगे और औद्योगिक विकास को रफ्तार मिलेगी।
इस फैसले के तहत राज्य के दो प्रमुख कानूनों में संशोधन किया जाएगा ‘फैक्ट्रीज एक्ट, 1948’ और ‘महाराष्ट्र शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2017’। सरकार ने कहा कि यह बदलाव उन प्रतिष्ठानों पर लागू होगा जहां 20 या उससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं।
क्या बदलेगा इस फैसले के बाद? Maharashtra News
सबसे बड़ा बदलाव तो काम के घंटों को लेकर है। अब तक प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों को 9 घंटे काम करना होता था, जो अब बढ़ाकर 10 घंटे कर दिया गया है। वहीं, ओवरटाइम की सीमा भी बढ़ा दी गई है। पहले कर्मचारी हर तिमाही में अधिकतम 115 घंटे का ओवरटाइम कर सकते थे, जो अब बढ़कर 144 घंटे हो गया है लेकिन इसके लिए कर्मचारी की लिखित सहमति अनिवार्य होगी।
इसके अलावा, पहले ब्रेक का समय 5 घंटे के बाद मिलता था, अब यह समय 6 घंटे कर दिया गया है। यानी अब कर्मचारी 6 घंटे लगातार काम करने के बाद ही ब्रेक ले पाएंगे।
ओवरटाइम पर दोगुनी पगार
सरकार ने ये भी स्पष्ट किया है कि अगर कोई कर्मचारी ओवरटाइम करता है तो उसे उसके बदले दोगुनी पगार दी जाएगी। इससे कर्मचारियों को आर्थिक रूप से फायदा मिलेगा, लेकिन शारीरिक और मानसिक थकान भी एक बड़ी चिंता है।
छोटे प्रतिष्ठानों को राहत
जहां इस बदलाव का असर बड़े प्रतिष्ठानों पर ज्यादा पड़ेगा, वहीं 20 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को पंजीकरण सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि, उन्हें काम की जानकारी संबंधित अधिकारियों को देनी होगी।
महाराष्ट्र भी शामिल हुआ इन राज्यों में
आपको बता दें, महाराष्ट्र अब उन राज्यों की लिस्ट में शामिल हो गया है जहां पहले से ही 10 घंटे काम का नियम लागू है जैसे कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा।
सरकार का पक्ष
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में यह फैसला इसलिए लिया गया ताकि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा मिल सके। सरकार का मानना है कि इससे निवेश आएगा, रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और राज्य की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचेगा।
कर्मचारियों की चिंता भी अहम
हालांकि सरकार का इरादा निवेश और रोजगार बढ़ाने का है, लेकिन कर्मचारी वर्ग में इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि लंबे समय तक काम करने से हेल्थ और वर्क-लाइफ बैलेंस पर असर पड़ेगा।
क्या सिर्फ निजी क्षेत्र की ज़िम्मेदारी है?
अब सवाल ये उठता है कि सरकार ने जो बदलाव किए हैं, वो कागज़ पर काफी प्रोग्रेसिव लगते हैं। लेकिन असली चिंता ये है कि क्या सिर्फ प्राइवेट सेक्टर के लोग ही सुधार की जिम्मेदारी उठाएंगे? सरकारी कर्मचारियों पर कोई जवाबदेही क्यों नहीं? क्या सुधार की शुरुआत ‘ऊपर’ से नहीं होनी चाहिए?
और पढ़ें: Hyderabad Gazette: 100 साल पुराना कागज़ और जरांगे की जिद… क्या है ‘हैदराबाद गजट’ की असली ताकत?