PM Modi vs Journalism: भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया की स्वतंत्रता पिछले कुछ सालों में सवालों के घेरे में रही है। वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) की रिपोर्ट ने भारत के मीडिया पर गहरी चिंता जताई है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024 में भारत 180 देशों में से 159वें स्थान पर है। मई 2023 की रिपोर्ट के अनुसार प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग 180 देशों में से 161वीं थी। यह स्थिति वर्ष 2002 में 150वें स्थान पर होने से स्पष्ट रूप से खराब हुई है। यह बदलाव भारत में मीडिया की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे का प्रतीक है, खासकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में।
मोदी शासन में मीडिया की स्वतंत्रता पर दबाव– PM Modi vs Journalism
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि भारत में अधिकांश प्रमुख मीडिया हाउस अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी उद्योगपतियों के स्वामित्व में हैं। यह मीडिया संस्थानों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सीधा सवाल उठाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि मोदी समर्थक समर्थकों की एक बड़ी फौज है जो सरकार की आलोचना करने वाली सभी रिपोर्टिंग पर नजर रखती है और आलोचकों को डराने-धमकाने के लिए उत्पीड़न अभियान चलाती है।
यह रिपोर्ट इस तथ्य को उजागर करती है कि कई पत्रकार अपने काम के दौरान सेंसरशिप का सामना कर रहे हैं और वे खुद को स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने में असमर्थ महसूस करते हैं। इस स्थिति ने लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को खतरे में डाल दिया है, क्योंकि एक स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बीबीसी पर प्रतिबंध और सरकार की कठोर प्रतिक्रिया
बीबीसी द्वारा 2002 के गुजरात दंगों पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री ने सरकार के खिलाफ मीडिया की स्वतंत्रता के मुद्दे को और गहरा किया। इस डॉक्यूमेंट्री में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर सवाल उठाए गए थे, जिनमें आरोप था कि गुजरात दंगों के दौरान मोदी की भूमिका संदिग्ध रही थी। इस घटना में लगभग 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकतर मुसलमान थे। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का दावा है कि मरने वालों की संख्या करीब 2,500 थी।
भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे देश के हितों के खिलाफ बताया। इस तरह के कदमों से यह सिद्ध होता है कि आलोचना करने वाले पत्रकारों और मीडिया संगठनों पर सरकार का दबाव बढ़ता जा रहा है।
न्यूज़ पोर्टल और पत्रकारों पर सरकारी छापे
पिछले कुछ वर्षों में ‘दैनिक भास्कर’, ‘न्यूज़लांड्री’, ‘द कश्मीर वाला’ और ‘द वायर’ जैसे मीडिया संगठनों पर सरकारी एजेंसियों की छापेमारी के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत में लोकतंत्र का दमन हो रहा है। ये मीडिया संगठन सरकार के खिलाफ रिपोर्टिंग करते हुए अक्सर आलोचना का शिकार बने हैं, और कई बार इन पर आर्थिक और कानूनी दबाव डालने के प्रयास किए गए हैं। इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि सरकार आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों को खामोश करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद मीडिया पर कार्रवाई
हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कई मीडिया चैनलों को निशाना बनाया। इस हमले पर बीबीसी की रिपोर्टिंग पर भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई और बीबीसी इंडिया की प्रमुख जैकी मार्टिन को औपचारिक पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की। बीबीसी ने हमले को “मिलिटेंट अटैक” के रूप में बताया था, जिस पर सरकार ने इसे गंभीरता से न दिखाने का आरोप लगाया। इसके बाद, सरकार ने बीबीसी की रिपोर्टिंग पर कड़ी नजर रखने का निर्णय लिया।
इस घटना के बाद कई अन्य मीडिया चैनलों पर भी कार्रवाई की गई। उदाहरण के लिए, 4PM नेशनल चैनल को सरकार द्वारा पहलगाम हमले पर सवाल उठाने के कारण भारत में बैन कर दिया गया। इस घटना से यह साबित होता है कि सरकार विरोधी रिपोर्टिंग को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
न्यूज़ पोर्टल और पत्रकारों पर हमले
2023 में दिल्ली पुलिस ने न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ से जुड़े पत्रकारों के घरों पर छापेमारी की और दो प्रमुख पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया। यह कार्रवाई उस समय की गई जब यह मीडिया संगठन चीन के प्रभाव और उसके प्रोपेगैंडा फैलाने के आरोपों के तहत जांच के दायरे में था। इन दोनों पत्रकारों को आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया, जिससे यह साबित होता है कि सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए जा रहे हैं।
इसी तरह के घटनाक्रम ने प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकारों को आपराधिक आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है और उन्हें अपनी आवाज उठाने के लिए डराया जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि पत्रकार अब सरकार की आलोचना करने में कतराते हैं और खुद को सेंसर कर रहे हैं।
डिजिटल मीडिया और यूट्यूब चैनलों का वर्चस्व
वहीं पिछले कुछ सालों से, भारत में डिजिटल मीडिया की अहमियत बढ़ रही है। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत में 56% उत्तरदाताओं ने समाचार के लिए यूट्यूब का उपयोग किया है। इसके अलावा, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों का भी समाचार फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान है। यह दर्शाता है कि भारत में पारंपरिक टीवी चैनलों पर भरोसा कम हो रहा है और लोग अब सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों पर अपनी जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
लेकिन, इस बढ़ते डिजिटल मीडिया के बीच सरकार द्वारा कई यूट्यूब चैनलों को ब्लॉक किया जा रहा है। ‘बोलता हिंदुस्तान’ और ‘नेशनल दस्तक’ जैसे चैनल सरकार की आलोचना करने के कारण ब्लॉक किए गए हैं। इस प्रकार के कदम से यह साबित होता है कि सरकार डिजिटल प्लेटफार्मों को भी नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, ताकि आलोचना के स्वर को दबाया जा सके।
पत्रकारों की हत्या और उनके उत्पीड़न की घटनाएँ
भारत में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों और हत्याओं का सिलसिला भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 28 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश पत्रकारों की मौत पर्यावरणीय मुद्दों, अवैध खनन, और भ्रष्टाचार पर रिपोर्टिंग करते हुए हुई। कई पत्रकारों की हत्या के पीछे सैंड माफिया और अन्य आपराधिक समूहों का हाथ था, जो राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करते हैं।
इन पत्रकारों में से कुछ को अवैध खनन और सैंड माफिया की रिपोर्टिंग करने के कारण मारा गया। उदाहरण के लिए, पत्रकार जगेंद्र सिंह की हत्या 2015 में हुई थी, जब वह उत्तर प्रदेश में अवैध सैंड खनन के बारे में रिपोर्ट कर रहे थे। इसके बाद, 2016 में करुण मिश्रा और रंजन राजदेव जैसे पत्रकारों की हत्या भी इसी कारण हुई। इन घटनाओं ने यह दिखाया कि भारत में पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के कारण मौत का सामना करना पड़ रहा है, खासकर जब उनका काम भ्रष्टाचार और संगठित अपराध से जुड़ा होता है।
प्रेस की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर चिंता
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, मोदी सरकार के तहत पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठते हैं। एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत में पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाले पत्रकारों को अधिक खतरे का सामना करना पड़ा है। इन पत्रकारों ने अवैध खनन और सैंड माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग की थी, जिसके कारण उनकी हत्या की गई। इसके अलावा, कई पत्रकारों को हिंसक धमकियों का सामना करना पड़ता है, और वे लगातार डर के साये में काम कर रहे हैं।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे और पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाएं लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। सरकार के पक्ष में काम करने वाले मीडिया संस्थान और पत्रकारों को प्रमोट किया जा रहा है, जबकि आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।