PM Modi Slams Congress: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मंगलवार को एक कार्यक्रम के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के कश्मीर को लेकर अलग-अलग रुख पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। मोदी ने कहा कि तत्कालीन गृह मंत्री पटेल चाहते थे कि सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर तब तक कार्रवाई जारी रखे जब तक पूरा क्षेत्र वापस नहीं ले लिया जाता, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पटेल की यह रणनीति अपनाई गई होती तो शायद आज देश को आतंकवाद की इस कष्टदायक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
पीएम मोदी के बयान की पृष्ठभूमि- PM Modi Slams Congress
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2023 को हुए आतंकवादी हमले के बाद आया, जिसमें पाकिस्तान और वहां से प्रशिक्षित आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की हत्या कर दी थी। इसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर हमला किया गया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद मोदी ने अपने भाषण में कहा, “सरदार पटेल की इच्छा थी कि जब तक पीओके वापस नहीं लिया जाता, तब तक सेना को रुकना नहीं चाहिए था।”
सरदार पटेल और नेहरू के बीच कश्मीर पर मतभेद
इतिहासकार राजमोहन गांधी ने अपनी पुस्तक ‘पटेल: ए लाइफ’ में बताया है कि सरदार पटेल का कश्मीर को लेकर नजरिया समय के साथ बदलता रहा। शुरुआत में, सितंबर 1947 तक, पटेल की कश्मीर में रुचि कम थी और उन्होंने कश्मीर के पाकिस्तान में शामिल होने को स्वीकार करने का इशारा किया था। लेकिन जूनागढ़ के विलय की घटना के बाद उनका नजरिया बदल गया और उन्होंने कश्मीर को भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण माना जितना कि जूनागढ़ को।
पटेल चाहते थे कि भारत जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को सैन्य सहायता तुरंत दे और पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों को जल्द से जल्द वापस लिया जाए। वे कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के खिलाफ थे क्योंकि उनका मानना था कि जमीन पर कार्रवाई करना अधिक प्रभावी होगा।
वहीं, नेहरू कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने पर ज़ोर दे रहे थे और उन्होंने इसे संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश किया। इसके अलावा, नेहरू ने कश्मीर के मुद्दे पर युद्धविराम का भी समर्थन किया, जिससे पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र बढ़ गए।
1947-48 के दौरान महत्वपूर्ण घटनाएं
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ, लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में अपने हमले जारी रखे। भारत ने मजबूरी में अपनी सेना कश्मीर भेजी। नेहरू ने 1 जनवरी 1948 को इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का फैसला किया। यह निर्णय लॉर्ड माउंटबेटन के प्रोत्साहन पर लिया गया था।
सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री नेहरू के जिन्ना से मिलने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। उनका मानना था कि जब भारत मजबूत स्थिति में है तो प्रधानमंत्री का पाकिस्तान के संस्थापक के सामने झुकना ठीक नहीं होगा।
पटेल की आशंकाएं और बाद की स्थिति
पटेल की आशंकाएं सही साबित हुईं क्योंकि संयुक्त राष्ट्र में भारत की शिकायत के बाद पाकिस्तान ने कई आरोप लगाए और मामला विवादास्पद बन गया। इस बहस ने कश्मीर समस्या को अंतरराष्ट्रीय विवाद में बदल दिया।
पटेल कई महत्वपूर्ण फैसलों से असंतुष्ट थे, जिनमें जनमत संग्रह का प्रस्ताव, युद्धविराम और महाराजा हरि सिंह को हटाना शामिल था। हालांकि, उन्होंने कभी स्पष्ट रूप से अपनी नीति नहीं बताई। उनके करीबी भी नहीं कह सके कि वे कश्मीर समस्या को कैसे सुलझाना चाहते थे।
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