Rafale Scam Controversy: राफेल डील में अनिल अंबानी की एंट्री कैसे हुई? ED की कार्रवाई से फिर क्यों गर्माया पुराना विवाद

Rafale Scam Controversy
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Rafale Scam Controversy: देश के बड़े उद्योगपतियों में गिने जाने वाले अनिल अंबानी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वजह है प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की बड़ी कार्रवाई। 31 अक्टूबर को ED ने अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की करीब 3,084 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त कर लीं। यह कार्रवाई कथित वित्तीय अनियमितताओं के मामले में हुई है। लेकिन अनिल अंबानी का नाम इससे पहले भी कई विवादों में आ चुका है, खासकर 2018 में राफेल डील को लेकर उठे सियासी बवाल में।

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जब राफेल डील अचानक बन गई सबसे बड़ा मुद्दा (Rafale Scam Controversy)

10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस की राजधानी पेरिस में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा की थी। यह घोषणा सबके लिए अचानक थी, क्योंकि इससे पहले 126 विमानों की डील पर बातचीत चल रही थी। इस फैसले ने देश की राजनीति को पूरी तरह से गरमा दिया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार ने महंगे दामों पर विमान खरीदकर देश के साथ धोखा किया और एक खास उद्योगपति को फायदा पहुंचाया।

दाम को लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस का दावा था कि यूपीए सरकार के समय एक विमान की कीमत करीब 526 करोड़ रुपये तय हुई थी, जबकि मोदी सरकार के सौदे में यही कीमत करीब 1,671 करोड़ रुपये प्रति विमान तक पहुंच गई। यानी कांग्रेस के मुताबिक करीब तीन गुना ज्यादा दाम दिए गए। दूसरी तरफ सरकार का कहना था कि उनके सौदे में अत्याधुनिक हथियार, खास भारतीय जरूरतों के हिसाब से बदलाव, रखरखाव और सपोर्ट सिस्टम सब कुछ शामिल है, इसलिए सीधा तुलना करना गलत है।

अनिल अंबानी का नाम कैसे जुड़ा?

सबसे बड़ा सवाल यही उठा कि जिस अनिल अंबानी की कंपनी का रक्षा क्षेत्र में कोई बड़ा अनुभव नहीं था, वही राफेल डील में कैसे आ गई? कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकारी दबाव में उन्हें इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर बनाया गया। ऑफसेट नीति के तहत फ्रांस की कंपनी दसॉ और उसके साझेदारों को करीब 30,000 करोड़ रुपये का निवेश भारतीय कंपनियों में करना था। इसी ऑफसेट का बड़ा हिस्सा अनिल अंबानी की कंपनी दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) को मिल गया।

ओलांद के बयान से विवाद और बढ़ा

21 सितंबर 2018 को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत सरकार ने ही अनिल अंबानी समूह का नाम औद्योगिक साझेदार के रूप में सुझाया था। यह बयान मोदी सरकार के दावों के बिल्कुल उलट था, क्योंकि सरकार कहती रही थी कि उसने किसी कंपनी का नाम नहीं सुझाया।

इस बयान के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया। कांग्रेस ने इसे मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ा सबूत बताया। हालांकि बाद में ओलांद ने अपने बयान में कुछ नरमी दिखाई, लेकिन तब तक विवाद पूरी तरह से हवा पकड़ चुका था।

HAL को बाहर क्यों किया गया?

इस पूरे सौदे में एक और बड़ा सवाल उठा हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को क्यों बाहर रखा गया? 126 विमानों की पुरानी डील में HAL को भारत में 108 विमान बनाने थे। लेकिन 36 विमानों की नई डील में सारे विमान पूरी तरह बने-बनाए फ्रांस से खरीदे गए। सरकार का तर्क था कि सिर्फ 36 विमान भारत में बनवाना बेहद महंगा पड़ता। वहीं कांग्रेस का कहना था कि HAL को जानबूझकर किनारे किया गया।

अनिल अंबानी की कंपनी रक्षा क्षेत्र में तेजी से कैसे बढ़ी?

मार्च 2015 में अनिल अंबानी ने गुजरात की कर्ज में डूबी पीपावाव शिपयार्ड को खरीदकर रक्षा क्षेत्र में एंट्री कर ली। इसके बाद उन्होंने कुछ ही महीनों में 14 अलग-अलग रक्षा कंपनियां रजिस्टर करवा दीं। नागपुर के मिहान में 289 एकड़ जमीन लेकर एयरोस्पेस प्रोजेक्ट की घोषणा भी की गई।

लेकिन इस परियोजना पर काम आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि रिलायंस ग्रुप समय पर जमीन की किस्तें तक नहीं चुका पाया। ऐसे में दसॉ के साथ हुआ जॉइंट वेंचर अनिल अंबानी के लिए एक नई उम्मीद बनकर सामने आया। 2017 में DRAL की स्थापना हुई, जिसमें 51% हिस्सेदारी रिलायंस की और 49% दसॉ की है।

रिलायंस वास्तव में कितना पैसा कमा सकती थी?

अनुमान लगाया गया था कि रिलायंस को ऑफसेट से करीब 1,200 से 1,400 करोड़ रुपये तक का काम मिल सकता है। हालांकि दसॉ का कहना था कि यह कारोबार बहुत धीमी रफ्तार से मुनाफा देता है और कंपनी को ब्रेक-ईवन तक पहुंचने में कम से कम 10 साल लगेंगे।

राफेल ऑफसेट का असली फायदा DRDO को?

इस डील से सबसे बड़ा रणनीतिक फायदा DRDO को मिलने की उम्मीद जताई गई थी। खासकर कावेरी जेट इंजन को फिर से मजबूत करने का सपना राफेल ऑफसेट से जुड़ा था। अगर यह इंजन सफल हो जाता, तो भारत को भविष्य के लड़ाकू विमानों के लिए विदेशी इंजनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

फिल्म फंडिंग विवाद ने भी बढ़ाया शक

राफेल विवाद के बीच यह भी सामने आया कि रिलायंस एंटरटेनमेंट ने ओलांद की पार्टनर जूली गाये की एक फिल्म को लेकर फंडिंग से जुड़ा भुगतान किया था। इस पर सवाल उठे कि कहीं यह सब राफेल डील से जुड़ा कोई परोक्ष फायदा तो नहीं था? हालांकि रिलायंस और फिल्म निर्माताओं ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया।

2019 चुनाव और राफेल मुद्दा

2019 के लोकसभा चुनाव में राफेल कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी हथियार बन गया। राहुल गांधी ने “चौकीदार चोर है” जैसे नारे के साथ मोदी सरकार पर सीधे हमला बोला। हालांकि चुनावी सर्वे बताते थे कि उस समय सिर्फ करीब 20 फीसदी लोगों को ही राफेल डील की पूरी जानकारी थी।

अब फिर क्यों चर्चा में है राफेल-अंबानी कनेक्शन?

अब जब ED ने अनिल अंबानी की हजारों करोड़ की संपत्तियां जब्त की हैं, तो एक बार फिर उनके पुराने विवादों की फाइलें खुलने लगी हैं। वित्तीय संकट, कर्ज में डूबी कंपनियां, अधूरी परियोजनाएं और अब जांच एजेंसियों की कार्रवाई इन सबके बीच राफेल डील में उनकी एंट्री एक बार फिर लोगों के सवालों के घेरे में है।

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