Railway Minister Ashwini Vaishnav: “एक आईएएस अफसर, जिसने सरकारी फाइलों से निकलकर बिज़नेस की दुनिया में कदम रखा… फिर राजनीति में आया और सीधे सत्ता के हाईवे पर चढ़ गया। रास्ते में खनन माफिया मिले, करोड़ों के शेयर मिले, और अंत में मिला रेल मंत्रालय, जहां से रेल ही अपनी पटरी भूल गई।”
ये कहानी किसी काल्पनिक सीरीज़ की नहीं, बल्कि असली ज़िंदगी की है और किरदार हैं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव।
एक ऐसा नाम, जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी के ऑफिस में बैठा करता था, फिर अमेरिका की व्हार्टन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करता है, और फिर लौटकर भारत में एक कंपनी खोलता है।
कंपनी शुरू होती है सिर्फ ₹1 लाख से, लेकिन कुछ ही सालों में कमाती है ₹113 करोड़ से ज़्यादा।
इतना ही नहीं, उस कंपनी का रेवेन्यू 45 लाख से उछलकर सीधे 323 करोड़ तक पहुंच जाता है और उसके पीछे छिपी होती है एक माफिया, एक सियासी गेम और वो पूरा ताना-बाना जिसे जानना देश के हर नागरिक के लिए ज़रूरी है।
1 लाख से 113 करोड़: चौंकाने वाला मुनाफा- Railway Minister Ashwini Vaishnav
सबसे पहले इस चौंकाने वाली कहानी की शुरुआत करते हैं उस इन्वेस्टमेंट से, जिसने सबका ध्यान खींचा। अश्विनी वैष्णव ने 2015 में Adler Industrial Services Pvt. Ltd. नाम की एक कंपनी शुरू की अपनी पत्नी सुनीता वैष्णव के नाम पर। इस कंपनी में उन्होंने ₹1 लाख का शुरुआती निवेश किया। कुछ ही सालों में इस कंपनी का रेवेन्यू 45 लाख से बढ़कर सीधे 323 करोड़ पार कर गया। और इसी के बदले उन्हें 113 करोड़ रुपए के शेयर मिले।
अमित शाह और नितिन गडकरी के बेटे के बाद पेश है
रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव के बेटे का 1 लाख से 323 करोड़ कमाने का तरीका
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— Garvi Rawat (@garvirawat) September 1, 2025
कंपनी की तरक्की के बाद, अश्विनी वैष्णव ने 2020 में निदेशक का पद छोड़ दिया, लेकिन उनकी पत्नी सुनीता, बेटा राहुल वैष्णव (2019 से निदेशक), बेटी तान्या वैष्णव (2017 से निदेशक) कंपनी का प्रबंधन कर रहे हैं।
लेकिन यहां सवाल ये है कि इतना जबरदस्त ग्रोथ किसी सामान्य बिज़नेस मॉडल में संभव नहीं लगता जब तक कि पीछे कोई बहुत ताकतवर हाथ न हो।
एक ग्राहक, वो भी खनन घोटालों में घिरा
अडलर कंपनी का सिर्फ एक ग्राहक था — Thriveni Earth Movers, जिसका मालिक है बी. प्रभाकरण। यह वही प्रभाकरण है जिस पर उड़ीसा में 900 करोड़ की अवैध कोयला खनन का आरोप है, और जो इन आरोपों के चलते जेल भी जा चुका है। प्रभाकरण की कंपनी खुद को देश की सबसे बड़ी कोल माइनिंग कंपनी बताती है।
बीजद के पूर्व वित्त मंत्री प्रफुल्ला घड़ाई ने यहां तक कह दिया था कि “प्रभाकरण उन चार लोगों में से एक हैं जो राज्य सरकार को कंट्रोल करते हैं।” इस बयान के बाद उन्हें पार्टी से निकाल भी दिया गया।
राजनीति में एंट्री और राज्यसभा की चौंकाने वाली डील
वहीं अश्विनी वैष्णव की बता करें तो उनका राजनीतिक करियर 2019 में तब शुरू होता है, जब बीजू जनता दल (BJD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) एक साथ मिलकर उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए सहमत होते हैं। इससे लोग चौंक गए क्योंकि ये दोनों पार्टियां उस वक्त एक-दूसरे की विरोधी थीं।
लेकिन उड़ीसा कैडर के IAS अधिकारी रहे वैष्णव को वहां की राजनीतिक और ब्यूरोक्रेसी की गहराइयों की अच्छी समझ थी। यही वजह है कि उनका नाम दोनों पार्टियों के बीच सहमति से आगे आया।
खनन, कंपनियों और चंदे की जालसाजी
2015 में उड़ीसा लौटने के बाद वैष्णव ने अडलर कंपनी के जरिए आयरन ओर खनन इंडस्ट्री में कदम रखा। शुरुआती सालों में रेवेन्यू की छोटी शुरुआत के बाद कुछ ही सालों में कंपनी का टर्नओवर 323 करोड़ पार कर गया।
- 2015-16 में रेवेन्यू: ₹45 लाख
- 2016-17: ₹3.79 करोड़
- 2017-18: ₹4.51 करोड़
- 2019-20: ₹48.02 करोड़
- 2020-21: ₹323.27 करोड़
- 2021-22: ₹348.4 करोड़
इतना ही नहीं, 2016-17 में अडलर का 3.79 करोड़ का रेवेन्यू था, जिसमें से 2.46 करोड़ रुपए सिर्फ अश्विनी और सुनीता वैष्णव को वेतन के तौर पर दिए गए। बाकी कर्मचारियों के लिए महज ₹1.93 लाख ही खर्च हुए। मतलब कंपनी एक फैमिली अफेयर से ज्यादा कुछ नहीं थी।
TPPL: नई कंपनी, नया खेल
इसके बाद, वैष्णव और प्रभाकरण ने मिलकर एक और कंपनी बनाई — Thriveni Pellets Pvt. Ltd. (TPPL)। अडलर ने इस कंपनी को 11.5 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी। इससे TPPL को लोन लेने की ताकत मिली और प्रभाकरण की कंपनी ने उसकी गारंटी दी। यानि एक तरह से वैष्णव और प्रभाकरण के बीच एक मजबूत साझेदारी बन चुकी थी।
बाद में TPPL ने JSW और मित्सुन स्टील के साथ मिलकर Brahmani River Pellets Pvt. Ltd. को खरीदा, जिसमें अश्विनी वैष्णव डायरेक्टर बनाए गए। यह पूरा कॉरपोरेट स्ट्रक्चर बेहद बारीकी से तैयार किया गया था, जहां पैसा एक जेब से निकलकर दूसरी जेब में गया और बाहर से सब कुछ साफ दिखता रहा।
इन्वेंट्री जीरो, लेकिन रेवेन्यू बंपर
अडलर की एक खास बात थी इसकी इन्वेंट्री हमेशा शून्य रही। यानी कंपनी ने माल कभी अपने पास स्टोर ही नहीं किया। बस खरीदा और बेच दिया। ये सीधा संकेत है कि कंपनी एक ‘पास-थ्रू’ यूनिट की तरह काम कर रही थी, जहां सिर्फ कागजों पर लेन-देन हुआ।
एडलर और TPPL के बीच माल की खरीद-बिक्री में भारी मार्जिन रखा गया:
- 2019-20 में: 56%
- 2020-21 में: 6%
- 2021-22 में: 3%
बीजेपी को मिला चंदा
इसी पूरे खेल के बीच एक और तथ्य सामने आता है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले Thriveni Earth Movers ने बीजेपी को 11 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे। इसके अलावा, 2014 से 2017 के बीच 89.99 लाख के अलग-अलग डोनेशन भी दिए गए।
क्या यह सब सिर्फ संयोग था?
फिर बने रेल मंत्री, और हुआ देश का सबसे बड़ा रेल हादसा
जुलाई 2021 में अश्विनी वैष्णव को रेल मंत्रालय दिया गया। इसके बाद का कार्यकाल रेल विभाग के लिए एक बुरे सपने की तरह रहा।
- 2023 बालासोर रेल हादसा: 293 मौतें, 1100 घायल
- कुल रेल दुर्घटनाएं: 113
- रेलवे बोर्ड में बर्खास्तगियां: कई सीनियर अफसर हटाए गए, जैसे जनवरी 2022 में राहुल जैन
इतनी दुर्घटनाओं के बाद भी वैष्णव को मंत्री पद से नहीं हटाया गया। क्योंकि उनकी बर्खास्तगी, सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की प्रशासनिक विफलता मानी जाती।
राजनीति में क्यों मिले ये फायदे?
एक कारण यह भी सामने आया कि 2019 से 2021 के बीच अश्विनी वैष्णव सिर्फ उन्हीं सेक्टर्स में निवेश कर रहे थे, जो अंततः उन्हें मंत्रालय के तौर पर मिलने थे। इसका मतलब है कि उन्हें पहले से अंदेशा था कि किस मंत्रालय की जिम्मेदारी उन्हें मिलेगी और उसी अनुसार उनका कारोबारी प्लान पहले से तैयार था।
नायक से व्यापारी और फिर सत्ता के केंद्र तक
अश्विनी वैष्णव की कहानी किसी थ्रिलर फिल्म की तरह लगती है। 1994 में उड़ीसा कैडर के IAS अधिकारी बनने से लेकर 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव के तौर पर काम करने तक उनका रुतबा साफ दिखता है।
लेकिन 2004 में कांग्रेस सरकार आने पर उन्होंने उस सरकार के अधीन काम करने से मना कर दिया और बाहर निकल गए। फिर अमेरिका जाकर Wharton से MBA किया। फिर भारत लौटे, कंपनियां खोलीं, व्यापार किया, खनन माफियाओं से नजदीकी बढ़ी, और फिर राजनीति में एंट्री की सीधे राज्यसभा और फिर कैबिनेट में।
अश्विनी वैष्णव की कहानी आज के भारत में सत्ता, व्यवसाय और ब्यूरोक्रेसी के गठजोड़ का उदाहरण बन चुकी है। जहां एक आम आदमी की कमाई सालों में नहीं बढ़ती, वहीं एक व्यक्ति 1 लाख के बदले 113 करोड़ के मालिक बन जाता है। और जब उसकी जिम्मेदारी में देश का सबसे बड़ा रेल हादसा होता है, तब भी उसे हटाया नहीं जाता।