Ram Mandir Dhwajarohan 2025: अयोध्या में आज का दिन एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना, जिसका इंतज़ार करोड़ों भक्तों ने वर्षों से किया था। राम नगरी में भव्य राम मंदिर के संपूर्ण निर्माण के बाद आज मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजारोहण किया गया। जैसे ही केसरिया ध्वज 161 फीट ऊंचे शिखर पर लहराया, पूरा माहौल “जय श्री राम” के जयघोष से गूंज उठा। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि रामराज की पुनर्स्थापना का संदेश देने वाला ऐतिहासिक पर्व बन गया है।
अयोध्या शहर आज मानो दीपोत्सव से भी अधिक दमक रहा था। हर सड़क, हर चौराहा और हर मंदिर रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था। बीती रात राम मंदिर के शिखर पर लेजर शो ने माहौल को और भी दिव्य बना दिया। प्रभु श्रीराम और माता सीता से जुड़े मनमोहक दृश्यों ने श्रद्धालुओं का दिल जीत लिया। ऐसा लग रहा था मानो अयोध्या किसी अद्भुत अध्यात्मिक ऊर्जा से भरी हुई हो।
अभिजीत मुहूर्त में हुआ ध्वजारोहण, कुल 44 मिनट का शुभ समय (Ram Mandir Dhwajarohan 2025)
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, ध्वजारोहण शुभ अभिजीत मुहूर्त में किया गया। यह मुहूर्त सुबह 11:45 बजे शुरू होकर दोपहर 12:29 बजे तक चला। मान्यता है कि इसी अभिजीत मुहूर्त में भगवान राम का जन्म हुआ था, इसलिए इस विशेष क्षण में ध्वजारोहण को अत्यंत शुभ माना गया।
25 नवंबर की तिथि क्यों है खास?
धर्म ध्वजारोहण के लिए 25 नवंबर को चुनने के पीछे धार्मिक कारण भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। साधु-संतों के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम और माता जानकी का विवाह मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुआ था। संयोग से आज भी वही पंचमी तिथि है, जिसे हिंदू पंचांग में सर्वश्रेष्ठ विवाह तिथियों में माना जाता है। इसलिए इस दिन को मंदिर ध्वजारोहण के लिए अत्यंत शुभ माना गया।
कैसा था यह विशेष धर्म ध्वज?
मंदिर पर फहराया गया ध्वज पूरी तरह केसरिया रंग का है त्याग, बलिदान और वीरता का प्रतीक।
- ध्वज की लंबाई: 22 फीट
- चौड़ाई: 11 फीट
- ध्वजदंड की ऊंचाई: 42 फीट
- स्थापना: 161 फीट ऊंचे मंदिर शिखर पर
इस केसरिया ध्वज पर तीन महत्वपूर्ण प्रतीक अंकित हैं सूर्य, ऊं, और कोविदार वृक्ष। सूर्य रघुवंश का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि श्रीराम सूर्यवंशी थे। भगवा रंग भी रघुवंश काल में विशेष महत्व रखता था। यही रंग ज्ञान, पराक्रम और सत्य की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।
कोविदार वृक्ष और ‘ऊं’ का दिव्य महत्व
ध्वज पर बना कोविदार वृक्ष प्राचीन ग्रंथों में वर्णित एक पवित्र वृक्ष है। इसे पारिजात और मंदार के दिव्य संयोग का रूप माना जाता है। यह आज के कचनार वृक्ष जैसा दिखाई देता है। रघुवंश की परंपरा में इसकी बड़ी प्रतिष्ठा है। वाल्मीकि रामायण में भी इसका उल्लेख मिलता है जब भरत, राम से मिलने वन गए थे, तब उनके ध्वज पर कोविदार का ही प्रतीक था।
इसी तरह ‘ऊं’ वह ध्वनि है, जिसे संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार माना जाता है। ध्वज पर इसका अंकन सृष्टि और संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्यदेवता का चिह्न इस ध्वज को विजय और तेज का प्रतीक बनाता है।
ध्वजारोहण का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में मंदिरों पर ध्वजा फहराना अत्यंत पवित्र परंपरा है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मंदिर पर लहराता ध्वज देवता की उपस्थिति का संकेत देता है और जिस दिशा में वह फहरता है, वह पूरा क्षेत्र पवित्र माना जाता है। शास्त्रों में ध्वज को देवता की महिमा और संरक्षण का प्रतीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ध्वज, पताका और तोरणों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
आज का यह ध्वजारोहण त्रेता युग की याद दिलाता है। जैसे उस युग में राघव के जन्म पर उत्सव मनाया गया था, वैसे ही कलियुग में आज यह ध्वजा मंदिर निर्माण के पूर्ण होने की घोषणा कर रही है। यह संदेश देती है कि अयोध्या में रामराज के आदर्श फिर से स्थापित हो रहे हैं।
