Ratan Tata vs Air India: 12 जून 2025 को अहमदाबाद में एयर इंडिया की उड़ान AI171, एक बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में 241 यात्रियों और चालक दल के सदस्य अपनी जान गंवा बैठे, जिनमें सिर्फ एक ब्रिटिश यात्री, विशवकुमार रमेश, जीवित बच सके। यह हादसा न केवल भारत के सबसे भयावह विमान दुर्घटनाओं में से एक है, बल्कि इसने टाटा ग्रुप द्वारा एयर इंडिया के पुनर्निर्माण के प्रयासों पर भी सवाल उठाए हैं। इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि अगर रतन टाटा आज जिंदा होते, तो क्या एयर इंडिया की स्थिति में कोई बदलाव आता? क्या 2022 में एयर इंडिया का अधिग्रहण टाटा की भूल थी, और क्या उनका नेतृत्व आज के संकट को संभालने में सक्षम होता?
एयर इंडिया का इतिहास और टाटा का योगदान- Ratan Tata vs Air India
एयर इंडिया की नींव 1932 में जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस के रूप में रखी थी। महज दो लाख रुपये की पूंजी से शुरू होने वाली यह एयरलाइन, पहले साल में 155 यात्रियों और 9.72 टन डाक को लेकर उड़ान भर चुकी थी। जेआरडी टाटा ने खुद पहली उड़ान भरी, जो कराची से मुंबई और फिर चेन्नई तक गई। 1946 में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया रखा गया और इसका प्रसिद्ध शुभंकर ‘महाराजा’ बनाया गया। 1953 में भारत सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया और जेआरडी टाटा को इसका चेयरमैन नियुक्त किया। उनके नेतृत्व में एयर इंडिया ने अपने स्वर्णिम दौर को देखा, लेकिन कुप्रबंधन और सरकारी हस्तक्षेप ने एयर इंडिया को घाटे में डुबो दिया।
2022 में टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को फिर से 18,000 करोड़ रुपये में अधिग्रहित किया। रतन टाटा ने इसे एक भावनात्मक वापसी के रूप में देखा, क्योंकि यह उनके पूर्वज जेआरडी टाटा की विरासत थी। टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया के पुनर्निर्माण के लिए 470 नए विमानों (250 एयरबस, 220 बोइंग) का ऑर्डर दिया और न्यूजीलैंड के कैम्पबेल विल्सन को सीईओ नियुक्त किया। लेकिन हाल के हादसे ने इन प्रयासों को सवालों के घेरे में डाल दिया।
रतन टाटा का नेतृत्व और मुंबई हमले में भूमिका
रतन टाटा की पहचान एक दूरदर्शी और संवेदनशील नेता के रूप में रही है। 2008 के मुंबई हमलों के दौरान, जब आतंकवादियों ने ताजमहल पैलेस होटल को निशाना बनाया, तो रतन टाटा ने त्वरित प्रतिक्रिया दी। दरअसल 26 नवंबर 2008 की रात, मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने हमला किया। यह हमला शहर को बंधक बना देने वाला था और 60 घंटों तक चला। आतंकियों ने ताज महल पैलेस होटल को भी निशाना बनाया, जो रतन टाटा के दादा, जमशेद जी टाटा द्वारा 1903 में नस्लभेद के कारण बनवाया गया था। इस हमले में कुल 166 लोग मारे गए और 10 आतंकियों में से 9 को मार गिराया गया। अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया, जिसे बाद में फांसी दी गई।
रतन टाटा का साहसी नेतृत्व
जब रतन टाटा को ताज होटल पर हमले की जानकारी मिली, तो वह आतंकियों की गोलीबारी की परवाह किए बिना वहां पहुंचे। गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच, रतन टाटा ने तीन दिन और तीन रात तक होटल में रहकर 300 से अधिक गेस्ट और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित की। उनका यह साहसिक कदम और समर्पण उस समय की सबसे बड़ी जरूरत थी।
रतन टाटा ने न केवल ताज होटल के कर्मचारियों, बल्कि अन्य पीड़ितों के परिवारों की भी मदद की। उन्होंने 80 कर्मचारियों के परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की और उनके मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा। 20 दिनों के भीतर उन्होंने एक नया ट्रस्ट बनाया और कर्मचारियों के परिवारों को 36 लाख से लेकर 85 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया। साथ ही, उनके परिवारों को आजीवन हर महीने उतने पैसे देने की व्यवस्था की जितनी कि कर्मचारियों की आखिरी सैलरी थी।
आतंकी हमले के अन्य पीड़ितों की मदद
रतन टाटा ने ताज होटल के कर्मचारियों के अलावा रेलवे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ और राहगीरों को भी मुआवजा दिया। एक घायल बच्ची, जो हमले में जख्मी हुई थी, उसके इलाज का पूरा खर्च रतन टाटा ने उठाया, और बच्ची पूरी तरह स्वस्थ हुई।
रतन टाटा के नेतृत्व ने न केवल ताज होटल के कर्मचारियों और पीड़ितों के परिवारों को सहारा दिया, बल्कि उन्होंने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। उनका यह समर्पण और संवेदनशीलता आज भी एक प्रेरणा बनकर उभरा है। उनके नेतृत्व में एयर इंडिया की स्थिति में सुधार लाने में भी यही सोच अहम भूमिका निभा सकती थी।
अगर रतन टाटा आज एयर इंडिया के नेतृत्व में होते, तो उनकी यह दूरदर्शिता और मानवता की भावना शायद एयर इंडिया के पुनर्निर्माण में और भी गति ला सकती थी। उनकी नेतृत्व शैली में दीर्घकालिक सोच और गुणवत्ता पर जोर था, जो एयर इंडिया के लिए भी जरूरी था।
क्या विस्तारा एयर इंडिया से बेहतर था?
विस्तारा, जो टाटा संस और सिंगापुर एयरलाइंस का संयुक्त उद्यम है, 2015 में शुरू हुआ था। विस्तारा की सेवा को लेकर हमेशा सकारात्मक समीक्षाएं रही हैं, विशेष रूप से उसकी प्रीमियम सेवाओं के लिए। वहीं, एयर इंडिया की सेवा के लिए शिकायतें आम रही हैं, जैसे उड़ान में देरी, खराब खाना, और टूटी सीटें। विस्तारा ने ग्राहक संतुष्टि और समयबद्धता में बेहतर प्रदर्शन किया, और यह एयर इंडिया के लिए एक चुनौती थी।
2024 में, विस्तारा का एयर इंडिया में विलय हो गया, और इसका ब्रांड बंद कर दिया गया। इस विलय के दौरान, टाटा ने यह सुनिश्चित किया कि विस्तारा की सेवा गुणवत्ता एयर इंडिया में बनी रहे, क्योंकि विस्तारा का ब्रांड एयर इंडिया से कहीं बेहतर था। रतन टाटा के नेतृत्व में, यह संभव था कि वह विस्तारा की मजबूत सेवा गुणवत्ता और ग्राहक संतुष्टि के सिद्धांतों को और अधिक प्रभावी ढंग से एयर इंडिया में एकीकृत करते।
क्या एयर इंडिया का अधिग्रहण टाटा की भूल थी?
2022 में एयर इंडिया का अधिग्रहण टाटा के लिए एक रणनीतिक कदम था। भारतीय उड्डयन बाजार, जो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार बन चुका है, में एयर इंडिया को एक वैश्विक खिलाड़ी बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा थी। लेकिन, एयर इंडिया को 63,000 करोड़ रुपये के कर्ज और कुप्रबंधन की विरासत से जूझना पड़ा। यह एक कठिन स्थिति थी, लेकिन रतन टाटा की दीर्घकालिक सोच और निवेश की रणनीति के कारण टाटा ग्रुप ने इस अधिग्रहण को संभालने का निर्णय लिया।
हालांकि, 2025 के हादसे ने इस अधिग्रहण पर सवाल उठाए। टाटा ग्रुप की प्रतिष्ठा को इससे ठेस पहुंची, और शेयर बाजार में टाटा समूह की कंपनियों के शेयर 2% तक गिर गए। फिर भी, यह कहना कि यह अधिग्रहण एक भूल था, जल्दबाजी होगी। रतन टाटा ने पहले भी जटिल अधिग्रहणों को सफलतापूर्वक संभाला है, जैसे कि जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण। एयर इंडिया के लिए 470 नए विमानों का ऑर्डर और सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझेदारी भविष्य में लाभकारी हो सकती है।
क्या रतन टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया की स्थिति बेहतर होती?
12 जून 2025 का हादसा एक त्रासदी है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि रतन टाटा के नेतृत्व में यह स्थिति टल सकती थी। उनकी रणनीतिक सोच और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना ने टाटा ग्रुप को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। यदि रतन टाटा आज होते, तो संभवतः एयर इंडिया के पुनर्निर्माण में और तेजी आती, और टाटा ग्रुप की पूरी ताकत का इस्तेमाल करते हुए एयर इंडिया की स्थिति में सुधार होता।
अधिग्रहण कोई भूल नहीं थी, बल्कि एक दीर्घकालिक निवेश था, जिसके परिणाम आने में समय लगेगा। टाटा ग्रुप ने पीड़ित परिवारों के लिए 1 करोड़ रुपये की सहायता और बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के पुनर्निर्माण का वादा किया है, जो उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह घटनाक्रम दिखाता है कि टाटा ग्रुप अपनी जिम्मेदारी निभाने में पीछे नहीं हटता, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
एयर इंडिया के हालात और रतन टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए यह कहा जा सकता है कि टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को अपने मूल रूप में पुनः स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। हालांकि, हालिया हादसा और अन्य चुनौतियां इस प्रक्रिया में अड़चनें ला सकती हैं। फिर भी, रतन टाटा की दीर्घकालिक सोच, उनके कड़ी मेहनत और सामाजिक जिम्मेदारी को देखते हुए, यह कहना कि एयर इंडिया का अधिग्रहण एक भूल था, जल्दबाजी होगी। आने वाले समय में, एयर इंडिया के पुनर्निर्माण में टाटा ग्रुप की रणनीतियां असर दिखा सकती हैं।