RAW Agent Salary: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक बार फिर जासूसी का मामला सुर्खियों में है। हाल ही में यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा समेत कई लोगों को पाकिस्तानी एजेंट होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है। उन पर आरोप है कि वे भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और पाकिस्तान के लिए संवेदनशील जानकारी साझा कर रहे थे। इन गिरफ्तारियों ने एक बार फिर खुफिया एजेंसियों के कार्य और एजेंट्स की भूमिका को चर्चा में ला दिया है। खासकर भारत की प्रमुख खुफिया एजेंसी रॉ (Research and Analysis Wing), जिसे देश के अंदर और बाहर रणनीतिक मिशनों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। लेकिन रॉ एजेंट्स के काम और उनकी पहचान हमेशा रहस्य से घिरी रहती है।
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रॉ एजेंट्स: देश की सुरक्षा के गुप्त प्रहरी- RAW Agent Salary
रॉ एजेंट्स देश की सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला और भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करते हैं। इनका हर मिशन गोपनीय होता है और इसके बारे में आम लोगों को कोई जानकारी नहीं होती। एजेंट्स को कई महीनों तक बेहद कठिन ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें मानसिक मजबूती, विश्लेषणात्मक क्षमता, जासूसी तकनीकों की समझ और दूसरे देशों की संस्कृति में घुलने-मिलने की क्षमता विकसित की जाती है।
पहचान बनी रहनी चाहिए गुप्त
रॉ एजेंट्स का सबसे बड़ा हथियार होता है उनकी छिपी हुई पहचान। चाहे वे भारत में रह रहे हों या किसी अन्य देश में मिशन पर हों, उनकी असली पहचान को छिपाकर रखना जरूरी होता है। अक्सर वे अलग नाम, पेशा और जीवनशैली अपनाते हैं ताकि उनके असली मकसद का पता न चले। यह जरूरी है क्योंकि एक बार अगर उनकी असल पहचान उजागर हो जाती है, तो ना केवल उनका जीवन खतरे में पड़ता है, बल्कि मिशन भी विफल हो सकता है।
सैलरी का सिस्टम कैसे चलता है?
अब सवाल उठता है कि इतनी गोपनीयता के बावजूद, रॉ एजेंट्स को सैलरी कैसे दी जाती है? चूंकि रॉ का काम पूरी तरह गोपनीय होता है, इसलिए इसके एजेंट्स की सैलरी से जुड़ा कोई आधिकारिक डाटा सार्वजनिक नहीं किया जाता। लेकिन जानकारों के मुताबिक, एजेंट्स की पहचान भले ही आम लोगों से छिपाई जाती हो, परंतु सरकारी रिकॉर्ड्स में उनका असली नाम होता है। उसी नाम से उनका बैंक अकाउंट चलता है और वहीं पर उनकी सैलरी ट्रांसफर की जाती है।
हालांकि यह भी माना जाता है कि विदेश में तैनाती के दौरान रॉ एजेंट्स को स्थानीय पहचान के अनुरूप नकद भत्ते या छद्म नाम से व्यवस्थाएं दी जाती हैं ताकि उनकी पहचान उजागर न हो। वहीं, भारत में रहते हुए वे अपने असली नाम से रहते हैं और सामान्य नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करते हैं, लेकिन उनके असली काम की जानकारी केवल उच्च स्तर के अधिकारियों को ही होती है।
क्यों आई चर्चा में रॉ एजेंसी?
यूट्यूबर समेत कई लोगों की गिरफ्तारी के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि पाकिस्तान भी भारत की तरह एजेंट्स भेजकर खुफिया जानकारी जुटाने की कोशिश करता है। फर्क सिर्फ इतना है कि रॉ के एजेंट्स गहन ट्रेनिंग से गुजरते हैं और उनका चयन बेहद कठोर प्रक्रिया से होता है। उन्हें देशभक्ति, गोपनीयता और जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना होता है।