Save Hasdeo Chhattisgarh: अदानी के कोल साम्राज्य का काला खेल! हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और पर्यावरण का खतरा

Save Hasdeo Chhattisgarh gautam adani
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Save Hasdeo Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल खनन को लेकर हाल ही में उठे विवादों ने एक बार फिर प्रशासन की नीतियों को सवालों के घेरे में डाल दिया है। केंद्र और राज्य सरकार ने अदानी समूह के तहत आने वाले तीन कोल ब्लॉकों को लेमरू हाथी रिजर्व के बाहर रखने का फैसला किया है, जबकि बाकी सभी 21 कोल ब्लॉकों को लेमरू रिजर्व के अंदर रखने का निर्णय लिया था। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब स्थानीय लोग और पर्यावरणविद इस क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन को बचाने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।

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हसदेव अरण्य का ऐतिहासिक संघर्ष- Save Hasdeo Chhattisgarh

2021 में, हसदेव अरण्य के 1995 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेमरू हाथी रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने के बाद इस क्षेत्र में खनन के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन शुरू हुआ था। वर्ष 2011 में, हसदेव अरण्य को समृद्ध जैव विविधता और विशिष्ट पारिस्थितिकीय तंत्र के कारण खनन से मुक्त क्षेत्र (नो हो क्षेत्र) घोषित किया गया था। लेकिन इसके बावजूद, पीईकेबी (द्वितीय चरण) जैसी खदानों के विस्तार की अनुमति देने के लिए नीतियां बदलीं।

सुप्रीम कोर्ट और न्यायिक लूपहोल्स

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पीईकेबी खदान की वन स्वीकृति को निरस्त कर दिया था, लेकिन बाद में 2023 तक इस पर स्थगन आदेश जारी किया गया, जिससे खदान को संचालित करने की अनुमति दी गई। हालांकि, इस आदेश के बावजूद खदान की क्षमता में 10 से 21 MTPA तक का विस्तार कर दिया गया। इसके कारण निचली अदालतों में खदान से संबंधित अन्य मामलों की सुनवाई में भी कठिनाइयाँ आईं। इस समय, सुप्रीम कोर्ट, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), और उच्च न्यायालय में प्रभावित समुदाय की याचिकाएं लंबित हैं, लेकिन न्याय की उम्मीद अब भी जीवित है।

जैव विविधता और पर्यावरणीय खतरे

भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा 2021 में तैयार की गई रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि हसदेव अरण्य को फिर से नो हो क्षेत्र घोषित किया जाए, क्योंकि किसी भी कोल ब्लॉक में खनन की अनुमति देने से छत्तीसगढ़ में मानव और हाथी संघर्ष और अधिक विकराल हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इससे हसदेव नदी और बागों बांध का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है। इसके बावजूद, सरकार ने पीईकेबी, परसा और कैंट एक्सटेंशन कोल ब्लॉकों को रिजर्व से बाहर रखा और 2022 में इन खदानों की वन स्वीकृति जारी कर दी।

स्थानीय विरोध और राज्य सरकार की निष्क्रियता

स्थानीय ग्राम सभाओं और ग्रामीणों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, राज्य और केंद्र सरकार ने इन कोल ब्लॉकों की अनुमति को निरस्त नहीं किया। यहां तक कि राज्यपाल ने फर्जी ग्राम सभाओं की जांच के आदेश दिए थे, लेकिन इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया गया। 2022 में, छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से यह संकल्प पारित किया कि हसदेव अरण्य के सभी कोल ब्लॉकों को निरस्त किया जाए, लेकिन इसके बावजूद अनुमति जारी करने की प्रक्रिया नहीं रुकी।

पुलिस बल और दमन की स्थिति

स्थानीय समुदाय के विरोध और संघर्ष के बावजूद, पुलिस बल के सहयोग से इन कोल ब्लॉकों में पेड़ों की कटाई का काम तेज़ी से किया जा रहा है। प्रत्येक छह महीने में, इन क्षेत्रों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, जो पर्यावरणीय संकट को और बढ़ा रही है। यह सवाल उठता है कि शासन और प्रशासन आखिर किसके साथ खड़ा है, क्योंकि स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद इन खदानों के संचालन को लेकर प्रशासन का रवैया कठोर बना हुआ है।

हसदेव अरण्य में हो रहे इन विवादों ने पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर सरकार खनन कार्यों को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय समुदाय और पर्यावरणविदों द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है। यह स्थिति यह साबित करती है कि विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बन गया है। स्थानीय समुदायों और पर्यावरण के हितों की अनदेखी करने से न केवल जैव विविधता संकट में पड़ सकती है, बल्कि यह भविष्य में मानव-हाथी संघर्ष को भी और गंभीर बना सकता है।

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