SC News: न्याय में देरी भले हो जाए, लेकिन सच की जीत जरूर होती है सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। देश की सर्वोच्च अदालत ने तीन दशक पुराने उस मामले में न्याय दिया है, जिसमें एक रेलवे टिकट परीक्षक (TTE) पर मात्र 50 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि दिवंगत अधिकारी वी.एम. सौदागर निर्दोष थे, और उनके परिवार को तीन महीने के भीतर पेंशन और अन्य सभी सेवा लाभ दिए जाएं।
1988 में लगा था रिश्वत का आरोप- SC News
मामला मई 1988 का है, जब वी.एम. सौदागर दादर–नागपुर एक्सप्रेस में बतौर टिकट परीक्षक (TTE) ड्यूटी पर थे। रेलवे की सतर्कता टीम ने आरोप लगाया कि उन्होंने तीन यात्रियों से सीट आवंटन के लिए 50 रुपये की रिश्वत मांगी। इस आरोप के बाद विभागीय जांच शुरू हुई, और 1996 में सौदागर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
यह वह क्षण था, जिसने एक ईमानदार अधिकारी की पूरी जिंदगी बदल दी।
CAT से हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक लंबा संघर्ष
अपनी बर्खास्तगी के बाद सौदागर ने मामला केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में चुनौती दी। 2002 में ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि रिश्वत के आरोप साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं हैं और सौदागर की सेवा बहाल की जानी चाहिए।
लेकिन रेलवे विभाग ने यह आदेश मानने के बजाय बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी। यह मुकदमा कई वर्षों तक वहीं लंबित रहा और इसी बीच वी.एम. सौदागर का निधन हो गया। इसके बावजूद उनके परिवार ने हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: बिना सबूत के सजा नहीं
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने पूरे रिकॉर्ड की बारीकी से जांच की और पाया कि विभागीय जांच अधूरी और त्रुटिपूर्ण थी।
अदालत ने कहा कि यात्रियों के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनमें से एक यात्री की गवाही ली ही नहीं गई थी, और बाकी दो ने भी रिश्वत देने की बात से इनकार किया था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि सौदागर द्वारा यात्रियों से यह कहना कि “वह बाकी कोचों की जांच के बाद उनकी राशि लौटा देंगे”, रेलवे की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है, रिश्वत नहीं।
‘संदेह पर नहीं दी जा सकती सजा’
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि “जब किसी कर्मचारी के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय सबूत न हों, तो केवल संदेह के आधार पर की गई कार्रवाई न्याय नहीं बल्कि अन्याय है।”
सुप्रीम कोर्ट ने सौदागर की बर्खास्तगी को अनुचित और अवैधानिक बताते हुए उसे रद्द कर दिया।
परिवार को मिलेगा पूरा हक
फैसले के तहत कोर्ट ने आदेश दिया कि सौदागर के परिवार को तीन महीने के भीतर सभी लंबित पेंशन, ग्रेच्युटी और सेवा लाभ दिए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को न सिर्फ न्याय की जीत बल्कि उन सभी कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण माना जा रहा है, जो झूठे आरोपों में सालों तक न्याय की प्रतीक्षा करते हैं।
