SC Waqf Act Hearing: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बार फिर सुनवाई हुई। इस दौरान पक्षकारों के बीच कई संवेदनशील मुद्दों पर तीखी बहस देखी गई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाए, जबकि सॉलिसिटर जनरल और अन्य पक्षकार सुनवाई को सीमित करने की कोशिश कर रहे थे।
सुनवाई के दौरान उठाए गए अहम मुद्दे- SC Waqf Act Hearing
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पहले सुनवाई के लिए तीन मुख्य मुद्दे तय किए थे, जिन पर तुषार मेहता ने लिखित जवाब दाखिल किए। हालांकि, कपिल सिब्बल ने कहा कि सभी मुद्दों पर दलील दी जाएगी। उन्होंने इस दौरान कहा कि मस्जिदों में चंदे की तुलना मदिरों से नहीं की जा सकती क्योंकि मस्जिदों में लाखों-करोड़ों का चंदा नहीं आता।
सिब्बल ने यह भी बताया कि पुराने वक्फ, जो कई सौ साल पहले बनाए गए थे, उनमें पंजीकरण का प्रावधान था, लेकिन अगर पंजीकरण नहीं हुआ तो इसे वक्फ नहीं माना जाता था। इसके बावजूद, 2013 तक ‘वक्फ बाय यूजर’ की प्रथा में पंजीकरण अनिवार्य नहीं था।
जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या ‘वक्फ बाय यूजर’ के मामले में पंजीकरण जरूरी था, तो सिब्बल ने माना कि 1954 से पहले नहीं था, लेकिन उसके बाद यह आवश्यक हो गया। उन्होंने मंदिरों में चढ़ावा होने और मस्जिदों में न होने की बात दोहराई और बाबरी मस्जिद को भी इसी श्रेणी में बताया।
वक्फ संपत्तियों पर विवाद और सरकार की भूमिका
कपिल सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ को दी गई निजी संपत्तियां सिर्फ इसलिए सरकार छीन रही है क्योंकि उन पर विवाद हैं। उनका कहना था कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए बनाया गया है। इस पर अदालत ने सवाल किया कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है, तो क्या मस्जिदों में नहीं? इस पर सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वे मस्जिदों की बात कर रहे हैं, दरगाह अलग हैं।
सिब्बल ने आगे कहा कि वक्फ एक बार हो गया तो वह स्थायी हो जाता है और सरकार आर्थिक सहायता नहीं दे सकती। मस्जिदें दान पर निर्भर होती हैं क्योंकि उनमें चढ़ावा नहीं होता।
जांच प्रक्रिया और संवैधानिक सवाल
सिब्बल ने कहा कि कलेक्टर जांच करेंगे, लेकिन जांच की कोई समय सीमा नहीं है। जांच रिपोर्ट आने तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा। जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या इससे धर्म पालन पर रोक लगती है, तो सिब्बल ने कहा कि यह अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने वक्फ को अपने नियंत्रण में ले लिया है, जिससे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन हो रहा है। खासकर अनुसूचित जनजाति मुस्लिमों के लिए यह बड़ा खतरा है, जो वक्फ संपत्ति बनाना चाहते हैं।
अन्य संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन
सिब्बल ने यह भी बताया कि सरकार को यह दिखाना गलत है कि वे मुस्लिम हैं, और पांच साल तक इंतजार करना अनुच्छेद 14, 25 और 26 के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ को अब हटा दिया गया है जबकि यह एक धार्मिक अधिकार है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट में बहस के अन्य पहलू
सीजेआई बीआर गवई ने उदाहरण देते हुए कहा कि खजुराहो का मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी वहां पूजा की जा सकती है। कपिल सिब्बल ने बताया कि नए कानून के तहत यदि संपत्ति एएसआई के संरक्षण में है तो वह वक्फ नहीं मानी जा सकती।
सिब्बल ने एक अन्य प्रावधान का भी उल्लेख किया जिसमें वक्फ करने वाले का नाम, पता, वक्फ की विधि और तारीख मांगी जाती है, जो कि सदियों पुराने वक्फ के लिए असंभव है। यदि ये जानकारी नहीं दी जाती है तो मुतवल्ली को छह महीने की जेल हो सकती है।