Sonam Wangchuk Arrested: लद्दाख में 24 सितंबर को हुई हिंसा ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर इस शांतिप्रिय क्षेत्र की ओर खींच लिया है। एक ओर पुलिस और प्रशासन का दावा है कि हिंसा सुनियोजित थी और कुछ “तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ताओं” द्वारा भड़काई गई, वहीं दूसरी ओर लोगों का आरोप है कि शांतिपूर्ण विरोध को जबरदस्ती दबाने की कोशिश की गई और निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया।
डीजीपी ने लगाए गंभीर आरोप- Sonam Wangchuk Arrested
लद्दाख के पुलिस महानिदेशक एसडी सिंह जम्वाल ने लेह में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दावा किया कि 24 सितंबर को जो हिंसा हुई, वो कोई सामान्य विरोध नहीं था, बल्कि एक साज़िश के तहत इसे अंजाम दिया गया। उन्होंने इस पूरी घटना के पीछे प्रमुख रूप से प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक का नाम लिया। डीजीपी के अनुसार, सोनम वांगचुक ने न केवल सरकार के साथ चल रही बातचीत को पटरी से उतारने की कोशिश की, बल्कि “अनशन मंच” का दुरुपयोग करते हुए जनता को भड़काया भी।
उन्होंने बताया कि करीब 5000 से 6000 लोगों की भीड़ ने सरकारी इमारतों और राजनीतिक दलों के दफ्तरों पर हमला किया, पथराव किया और एक कार्यालय को आग के हवाले कर दिया। इस दौरान हिल काउंसिल और सचिवालय में तैनात कई अधिकारियों की जान को खतरा हो गया, जिसके चलते गोलीबारी करनी पड़ी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई।
भीड़ में शामिल थे असामाजिक तत्व: पुलिस
डीजीपी के अनुसार, हिंसा में 70 नागरिक, 17 सीआरपीएफ जवान, और 15 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। उन्होंने बताया कि अब तक 44 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि इंटरनेट मीडिया पर हिंसा से पहले ही भड़काऊ भाषणों और वीडियो की बाढ़ आ गई थी, जो कानून-व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक थे।
साथ ही यह भी बताया गया कि सीआरपीएफ के जवानों पर हमला हुआ, तीन महिला पुलिस अधिकारी उस इमारत में फंसी थीं जिसे भीड़ ने आग लगा दी थी।
क्या वाकई वांगचुक के भाषणों से भड़की हिंसा?
हालांकि, सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों का दावा इससे बिल्कुल उलट है। वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने खुलकर सरकार और पुलिस प्रशासन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह एक सोची-समझी “मनगढ़ंत कहानी” है, ताकि लद्दाख में उठ रही छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग को दबाया जा सके।
उनका कहना है कि हिंसा की ज़िम्मेदारी उन लोगों पर थोप दी जा रही है जो शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रख रहे थे। उन्होंने डीजीपी के बयानों की कड़ी निंदा करते हुए कहा, “हम पूछना चाहते हैं कि CRPF को गोली चलाने का आदेश किसने दिया? अपने ही नागरिकों पर कौन गोली चलाता है?”
गीतांजलि ने साफ किया कि सोनम वांगचुक उस वक्त किसी और जगह पर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल कर रहे थे और उन्हें इस घटना की जानकारी बाद में मिली।
पुलिस पर “एजेंडा” के तहत काम करने का आरोप
वांगचुक की पत्नी ने आरोप लगाया कि पुलिस एक खास राजनीतिक एजेंडे के तहत काम कर रही है। उन्होंने कहा, “लेह के लोग हमेशा से शांतिप्रिय, देशभक्त और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले रहे हैं। लेकिन अब उन्हें उकसाने की कोशिश की जा रही है और दमनकारी नीतियों के जरिए डराने की रणनीति अपनाई जा रही है।”
हिरासत में लिए गए सोनम वांगचुक, NSA लगाया गया
आपको बता दें, हिंसा के बाद प्रशासन ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया है और जोधपुर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह कार्रवाई भी सवालों के घेरे में आ गई है, क्योंकि वांगचुक के समर्थकों का कहना है कि सरकार उनकी लोकप्रियता और प्रभाव से घबरा गई है।
लद्दाख की मांगें और राजनीति
लद्दाख में लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि इस क्षेत्र को राज्य का दर्जा मिले और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, जिससे यहां के मूल निवासियों को राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक अधिकार मिल सकें।
5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, तब लेह में इसका स्वागत किया गया था। लेकिन अब वहां के बीजेपी से अलग हुए नेता, जैसे कि छेवांग और लकरुक, राज्य के दर्जे की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इन नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में खुद छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने का वादा किया था और अब इससे पीछे हटना वादाखिलाफी है।
क्या विदेशी हाथ भी है पीछे?
घटना की जांच में अब इस पहलू को भी देखा जा रहा है कि क्या इसके पीछे कोई विदेशी संलिप्तता है। डीजीपी ने बताया कि दो और लोगों को हिरासत में लिया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में नेपाली मजदूरों का आना-जाना रहा है, इसलिए सभी एंगल से जांच की जा रही है।
कर्फ्यू और निषेधाज्ञा लागू
लेह में अब बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। पांच या उससे ज्यादा लोगों के एक साथ एकत्र होने पर प्रतिबंध है और किसी भी प्रकार की रैली, जुलूस, मार्च के लिए प्रशासन से पूर्व लिखित अनुमति अनिवार्य कर दी गई है।
अधिकारियों ने कहा है कि कर्फ्यू को दो चरणों में हटाने की योजना बनाई गई है, लेकिन हालात को देखते हुए किसी भी प्रकार की ढील से पहले पूर्ण सतर्कता बरती जा रही है।
24 सितंबर की हिंसा ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या लद्दाख की लोकतांत्रिक आवाज को सुना जाएगा या फिर उसे कुचलने की कोशिश की जाएगी?
सोनम वांगचुक जैसे व्यक्ति, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सॉफ्ट पावर का चेहरा रहे हैं, जब उन्हीं पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप लगते हैं, तो यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन जाता है। वहीं, यह भी सच है कि कानून व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है, लेकिन इसकी आड़ में अगर असहमति की आवाज को कुचला जाए, तो लोकतंत्र की आत्मा ही घायल होती है।