Super 30 Anand Kumar: पटना की तंग गलियों से निकलकर दुनिया के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और छात्रों तक मार्गदर्शन देने वाले आनंद कुमार की कहानी किसी प्रेरक फिल्म से कम नहीं। एक ऐसा इंसान जिसने अपने संघर्ष और मेहनत से साबित कर दिया कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, सपनों को सच किया जा सकता है। हाल ही में फ्लाइट में हुई एक छोटी-सी मुलाकात ने फिर से दिखा दिया कि सुपर 30 के बच्चों की सफलता ही आनंद कुमार की असली विरासत है।
छात्र राम कुमार की कहानी- Super 30 Anand Kumar
हाल ही में आनंद कुमार ने ट्विटर पर साझा किया कि फ्लाइट में एक छात्र उनके पास आया और चरण स्पर्श करते हुए मुस्कुराया। छात्र ने खुद को राम कुमार, 2007 बैच का स्टूडेंट बताया। उसने आनंद को बताया कि उसके पिता सिपाही थे, लेकिन आज वह Idaho National Laboratory, USA में साइंटिस्ट हैं।
कल रात जैसे ही मैं फ्लाइट में बैठा, एक नौजवान मेरे पास आया, चरण स्पर्श करते हुए मुस्कुराकर बोला —“सर, पहचाना मुझे? मैं आपका स्टूडेंट राम कुमार हूँ, 2007 बैच का।” उसकी आंखों में गर्व और भावनाएं झलक रही थीं। उसने बताया —“सर, मेरे पिताजी एक सिपाही थे, लेकिन आज मैं अमेरिकन गवर्नमेंट… pic.twitter.com/PWqIn2Fzci
— Anand Kumar (@teacheranand) November 8, 2025
राम कुमार ने कहा, “सर, यह सब आपकी वजह से संभव हुआ।” आनंद कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे तुम पर गर्व है।” राम ने जवाब दिया, “सर, अभी वह समय नहीं आया है… मैं लगातार रिसर्च कर रहा हूँ। एक दिन कुछ बड़ी उपलब्धि जरूर हासिल करूंगा — तब आपको सच में गर्व होगा।”
ऐसी मुलाकातें आनंद के लिए सिर्फ गर्व का मौका नहीं, बल्कि उनके काम की असली “कमाई” का एहसास भी हैं।
पटना से शुरू हुआ सफर
1 जनवरी 1973 को पटना के एक आम परिवार में जन्मे आनंद कुमार का जीवन किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं। उनके पिता डाक विभाग में क्लर्क थे, लेकिन उनके अचानक निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया।
आनंद को बचपन से ही गणित से खास लगाव था। उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का मौका भी हासिल किया, लेकिन घर की स्थिति ऐसी थी कि वे फीस और यात्रा का खर्च नहीं उठा पाए। नतीजा यह हुआ कि उनका सपना अधूरा रह गया।
गणित से बनी पहचान
1992 में आनंद ने पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया ताकि घर चल सके। धीरे-धीरे उन्होंने “रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथमैटिक्स” खोला और गरीब लेकिन प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कुछ करने का सपना देखा। 2002 में उनका यह सपना सुपर 30 के रूप में सामने आया। इसका मकसद था, गरीब बच्चों को IIT-JEE की तैयारी मुफ्त में कराना और उन्हें बड़े सपनों के करीब ले जाना।
सुपर 30 की असली सफलता
सुपर 30 की पहल अब तक सैकड़ों छात्रों की जिंदगी बदल चुकी है। कई बार 30 में से सभी 30 छात्र IIT में पास हुए और इसने देश-विदेश में लोगों का ध्यान खींचा। आनंद कुमार की मेहनत और लगन ने साबित कर दिया कि सही मार्गदर्शन और समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है।
सम्मान और पहचान
आनंद कुमार को कई पुरस्कार मिल चुके हैं। 2010 में बिहार सरकार ने उन्हें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद शिक्षा पुरस्कार दिया। TIME और Newsweek जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं ने भी उनकी पहल की तारीफ की। 2023 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
निजी जीवन और चुनौतियाँ
आनंद कुमार की पत्नी का नाम ऋतु रश्मि है। उनके दो बच्चे हैं बेटा जगत कुमार और बेटी सुहानी रश्मि। जीवन में सफलता मिलने के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ। कुछ साल पहले उन्हें Acoustic Neuroma नामक एक दुर्लभ बीमारी का पता चला, जिससे उनकी सुनने की क्षमता काफी प्रभावित हुई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज भी बच्चों को पढ़ाने में पूरी लगन से जुटे हैं।
नेट वर्थ और असली मूल्य
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आनंद कुमार की अनुमानित संपत्ति 80 से 100 करोड़ रुपये के बीच मानी जाती है, जबकि कुछ रिपोर्ट्स में इसे 300 करोड़ तक बताया गया है। लेकिन उनके लिए असली खजाना उनके छात्र और उनके बदले हुए जीवन हैं।
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