Supreme Court: देश के कई राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम रुख अपनाया। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किए और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई है। मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।
ये याचिकाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के तहत नागरिकों को मिली व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
क्या है याचिकाकर्ताओं का तर्क? Supreme Court
याचिका में कहा गया है कि इन कानूनों के तहत राज्य सरकारें लोगों के व्यक्तिगत फैसलों जैसे धर्म बदलना या अंतरधार्मिक विवाह करना में दखल दे रही हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने अदालत में दलील देते हुए कहा कि इन कानूनों के चलते अगर कोई व्यक्ति अंतरधार्मिक विवाह करता है, तो उसे जमानत तक मिलना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि कई राज्यों में इन कानूनों के जरिए बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हो रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां कानून में हाल में कड़े संशोधन किए गए हैं। इनमें तीसरे पक्ष को भी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार दे दिया गया है।
सिंह ने कोर्ट से आग्रह किया कि उन्हें याचिका में उत्तर प्रदेश के नए संशोधनों को शामिल करने के लिए संशोधन की अनुमति दी जाए, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
अन्य अधिवक्ताओं की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने मध्य प्रदेश के कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की, वहीं अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में लागू ऐसे ही कानूनों पर रोक लगाने की अपील की है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बातों को ध्यान से सुना और इस मसले को काफी गंभीर माना।
केंद्र और राज्यों की प्रतिक्रिया
वहीं केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने याचिकाओं पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अब तीन-चार साल बाद अचानक याचिकाकर्ता स्टे की मांग कर रहे हैं, जबकि इन कानूनों को चुनौती पहले ही दी जा चुकी थी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकारें अपना पक्ष सही तरीके से कोर्ट में रखेंगी।
इस बीच, कोर्ट ने वकील अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका को ‘डी-टैग’ करने का आदेश दिया, जिसमें उन्होंने छल-कपट से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि “यह कौन तय करेगा कि धर्मांतरण छल-कपट से हुआ है या नहीं?”
केस के संचालन के लिए नियुक्त हुए नोडल वकील
सुनवाई की प्रक्रिया को व्यवस्थित रखने के लिए अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सृष्टि और राज्यों की ओर से अधिवक्ता रुचिरा को नोडल वकील नियुक्त किया है, जिससे दस्तावेजों का आदान-प्रदान और सुनवाई का समन्वय ठीक से हो सके।
पहले भी हो चुकी है सुनवाई
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कानूनों की वैधता को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। उत्तराखंड में अगर कोई बलपूर्वक या किसी लालच के जरिए धर्मांतरण कराता है, तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है। वहीं, उत्तर प्रदेश का कानून न केवल विवाह के ज़रिए धर्मांतरण बल्कि सभी प्रकार के धर्म परिवर्तन को कवर करता है और इसके लिए जटिल प्रक्रियाएं निर्धारित करता है।
आगे क्या?
अब सभी संबंधित राज्यों को चार हफ्ते के भीतर अपना पक्ष रखना है। इसके बाद याचिकाकर्ता अपनी प्रतिक्रिया देंगे। छह हफ्ते बाद मामले की अगली सुनवाई होगी, जिसमें तय हो सकता है कि कोर्ट इन कानूनों के अमल पर कोई अंतरिम रोक लगाएगी या नहीं।
यह मामला संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसकी सुनवाई और भी अहम मानी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का अगला फैसला आने वाले समय में इन कानूनों की दिशा तय कर सकता है।