Supreme Court News: राज्य विधानसभाओं में पास किए गए विधेयकों को राष्ट्रपति या राज्यपाल कब तक मंजूरी देंगे, क्या इसकी कोई समयसीमा तय की जा सकती है? इस संवैधानिक सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने करीब 10 दिन की लंबी बहसों के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने से जुड़ा है। दरअसल, राष्ट्रपति ने जानना चाहा था कि क्या कोर्ट यह तय कर सकता है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति, विधानसभा से पारित बिलों को मंजूरी देने में कितने समय तक का विवेकाधिकार इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं।
राष्ट्रपति का यह संदर्भ तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल की शक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के आठ अप्रैल के फैसले के बाद आया था।
कौन-कौन जज थे बेंच में? Supreme Court News
इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ के पांच सदस्यों की बेंच कर रही थी, जिसमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की जगह इस बार CJI बीआर गवई मौजूद थे। उनके साथ बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, और जस्टिस ए एस चंदुरकर भी शामिल थे।
सुनवाई के दौरान जहां गहन कानूनी बहसें चलीं, वहीं कुछ हल्के-फुल्के पल भी देखने को मिले। एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब बहस के दौरान ब्रेक हुआ और जज आपस में बातचीत में मशगूल हो गए। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मजाक में कहा, “काश मैंने लिप रीडिंग सीखी होती, ताकि पता चलता आप क्या चर्चा कर रहे हैं!”
CJI गवई ने सुनाए पुराने किस्से
इस मौके पर CJI गवई ने बंबई हाईकोर्ट के एक पूर्व जज को याद करते हुए बताया कि कैसे वो बहस के दौरान ड्रॉइंग बनाते थे या लकड़ी से कला रचते थे, लेकिन फैसले सुनाने में पीछे रह जाते थे। उन्होंने कहा कि हम आज भी पूरी सुनवाई गंभीरता से लेते हैं और फैसला पूरी तरह कानूनी पहलुओं पर ही आधारित होता है।
CJI ने दिल्ली के वकीलों की पढ़ने की स्पीड को लेकर भी मजाक में कहा, “मैं 2019 में सुप्रीम कोर्ट में आया था, लेकिन अब भी दिल्ली के वकीलों की स्पीड के साथ मेल नहीं बैठा पाता।” उन्होंने बताया कि वो और बाकी जज 5000 पन्नों तक के दस्तावेज बारीकी से पढ़ते हैं, जिससे कई बार बहस के दौरान खो भी जाते हैं।
इस पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, “यह नई पीढ़ी के वकीलों के लिए एक संदेश है कि पढ़ना छोड़ने की आदत न डालें।”
अब आगे क्या?
कोर्ट ने इस संवैधानिक मामले पर अपनी सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला देने के लिए कोई तय समयसीमा बांधी जा सकती है या नहीं।
और पढ़ें: Uttarakhand Illegal Mining: विधायक ने बताया ‘खनन का काला सच’, सरकार ने रिपोर्ट से किया इनकार!