Supreme Court News: हर कर्मचारी अपनी सैलरी बढ़ने की उम्मीद जरूर करता है, चाहे वह प्राइवेट सेक्टर में हो या सरकारी दफ्तर में। आमतौर पर सालाना वेतनवृद्धि एक नियमित प्रक्रिया होती है। लेकिन क्या होगा अगर किसी कर्मचारी की सैलरी सालभर में छह बार बढ़ जाए? सुप्रीम कोर्ट में बीते कुछ वर्षों में ऐसी ही असामान्य स्थिति सामने आई। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कई मुख्य न्यायाधीशों (CJI) ने अपने रिटायरमेंट से पहले अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को अतिरिक्त वेतनवृद्धि दी।
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कितनी बढ़ी सैलरी और किसे मिला लाभ (Supreme Court News)
रिपोर्ट में बताया गया कि जिन न्यायाधीशों का कार्यकाल छोटा था, उन्होंने अपने निजी स्टाफ या ‘असाधारण कार्य’ करने वाले कर्मचारियों को सालाना इंक्रीमेंट के अलावा अतिरिक्त बढ़ोतरी दी। बीते चार वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के करीब 2,000 कर्मचारियों को कम से कम दो से तीन अतिरिक्त वेतनवृद्धि मिली, जबकि कुछ ‘खास’ कर्मचारियों को छह अतिरिक्त इंक्रीमेंट तक मिला। इसका असर यह हुआ कि कुछ कर्मचारियों की सैलरी सामान्य वेतन से करीब 150 प्रतिशत तक पहुंच गई।
फुल कोर्ट की बैठक और बड़ा फैसला
इस असमानता को दूर करने के लिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने सभी जजों की फुल कोर्ट बैठक बुलाई। बैठक में अधिकांश न्यायाधीशों ने माना कि सुप्रीम कोर्ट कोई ‘साम्राज्य’ नहीं है और चीफ जस्टिस कोई ‘राजा’ नहीं, जो अपने विवेक से चुनिंदा लोगों को वेतन लाभ बांटें। लंबे विचार-विमर्श के बाद फुल कोर्ट ने फैसला किया कि ऐसी विवेकाधीन वेतनवृद्धि की प्रथा तत्काल समाप्त की जाए।
फुल कोर्ट ने यह भी तय किया कि बीते वर्षों में दी गई अतिरिक्त वेतनवृद्धि वापस ली जाएगी। भविष्य में किसी विशेष इंक्रीमेंट पर विचार केवल फुल कोर्ट की मंजूरी से ही संभव होगा।
कर्मचारियों की प्रतिक्रिया और परेशानी
इस फैसले का असर कई कर्मचारियों पर अचानक पड़ा। जिन कर्मचारियों को अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिला था, उनकी सैलरी में भारी कटौती हुई। कई कर्मचारियों ने बताया कि उन्होंने बढ़ी हुई सैलरी को आधार बनाकर घर या कार लोन ले लिया था, जिससे अचानक वेतन घटने से उनका बजट प्रभावित हुआ। कुछ मामलों में मासिक सैलरी 30 से 40 हजार रुपये तक कम हो गई।
कई कर्मचारियों ने नाराजगी जताते हुए आरोप लगाया कि कुछ रजिस्ट्रारों ने तत्कालीन सीजेआई को गलत जानकारी दी, जिसके आधार पर इंक्रीमेंट दिए गए। वहीं, कुछ का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला लेना ही था, तो अतिरिक्त वेतनवृद्धि को भविष्य के सालाना इंक्रीमेंट में समायोजित किया जा सकता था, ताकि अचानक कटौती का झटका न लगे।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता और समानता की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। हालांकि, इससे जुड़े मानवीय और आर्थिक पहलुओं को लेकर कर्मचारियों में असंतोष भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।








