Terrorist attacks in India: पिछले 30 वर्षों में भारत ने कई आतंकी हमलों का सामना किया है, जिन्होंने देश की सुरक्षा और स्थिरता को चुनौती दी है। 1993 के मुंबई बम धमाकों से लेकर 2025 के हालिया पहलगाम हमले तक, आतंकवाद ने विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में देश को प्रभावित किया। आईए इस लेख के माध्यम से इस बात का विश्लेषण करें कि किस सरकार के दौरान सबसे ज्यादा आतंकी हमले हुए और उन हमलों के जवाब में क्या कार्रवाई की गई।
आतंकी हमलों का अवलोकन: 1995-2025 (Terrorist attacks in India)
पिछले तीन दशकों में भारत में आतंकवाद ने अलग-अलग रूप लिए, जिसमें इस्लामी आतंकवाद, अलगाववादी आंदोलन, और नक्सलवाद शामिल हैं। प्रमुख हमलों में 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट (257 मरे), 2001 का संसद हमला, 2008 का 26/11 मुंबई हमला (166 मरे), और 2019 का पुलवामा हमला (40 जवान शहीद) शामिल हैं। हाल ही में, 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए हमले में 26 से ज्यादा पर्यटकों की मौत हुई।
विकिपीडिया के आंकड़ों के अनुसार, 1984 से 2014 तक 57 प्रमुख आतंकी घटनाएं दर्ज की गईं। 2005 से 2016 तक, 707 लोगों की जान गई और 3,200 से अधिक घायल हुए। हालांकि, सटीक आंकड़ों की कमी और विभिन्न स्रोतों में अंतर के कारण यह निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है कि किस सरकार के दौरान सबसे ज्यादा हमले हुए। फिर भी, कुछ अवधियों में आतंकी गतिविधियों में वृद्धि देखी गई।
सरकारों के कार्यकाल और आतंकी हमले
- 1991-1996 (पी. वी. नरसिम्हा राव, कांग्रेस): इस दौरान 1993 के मुंबई बम धमाकों (257 मरे) और 1995 के पुरुलिया हथियार गिराने की घटना जैसी बड़ी घटनाएं हुईं। राव सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानूनों को मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन खुफिया तंत्र की कमियों के कारण प्रभावी कार्रवाई सीमित रही।
- 1998-2004 (अटल बिहारी वाजपेयी, बीजेपी): इस कार्यकाल में 2001 का संसद हमला (9 मरे) और 2002 का कालूचक हमला (36 मरे) हुआ। वाजपेयी सरकार ने ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया और आतंकवाद विरोधी कानून POTA लागू किया। हालांकि, कंधार विमान अपहरण (1999) में आतंकियों की रिहाई ने सरकार की आलोचना को जन्म दिया।
- 2004-2014 (मनमोहन सिंह, यूपीए): इस अवधि में 2006 के मुंबई ट्रेन धमाके (209 मरे), 2008 का 26/11 हमला, और 2010 के पुणे बम धमाके (9 मरे) जैसे हमले हुए। यूपीए सरकार ने NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की स्थापना की और खुफिया तंत्र को मजबूत किया। हालांकि, 26/11 के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सीमित कार्रवाई को लेकर आलोचना हुई।
- 2014-2025 (नरेंद्र मोदी, बीजेपी): इस दौरान 2016 का उरी हमला (19 जवान शहीद), 2019 का पुलवामा हमला, और 2025 का पहलगाम हमला हुआ। मोदी सरकार ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसी सैन्य कार्रवाइयों के साथ आक्रामक रुख अपनाया। पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित किया और अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी।
तुलनात्मक विश्लेषण
X पर उपलब्ध पोस्ट्स के आधार पर, 2004-2014 (यूपीए) के दौरान 7,217 आतंकी घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2014-2023 (मोदी सरकार) में यह संख्या घटकर 2,000-2,197 रही, जो 70% की कमी दर्शाती है। हालांकि, ये आंकड़े समग्र आतंकी घटनाओं को दर्शाते हैं, न कि केवल बड़े हमलों को। 1990 के दशक में भी, खासकर कश्मीर में, आतंकी गतिविधियां चरम पर थीं।
बड़े हमलों की संख्या के आधार पर, यूपीए कार्यकाल (2004-2014) में आतंकी हमलों की आवृत्ति और प्रभाव अधिक दिखाई देता है, विशेष रूप से 26/11 जैसे हमले। हालांकि, मोदी सरकार के दौरान कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आई, लेकिन पहलगाम जैसे हालिया हमले चुनौतियों को उजागर करते हैं।
सरकारों की कार्रवाइयां
- राव सरकार: खुफिया सुधार और TADA जैसे कानूनों पर जोर, लेकिन सीमित प्रभाव।
- वाजपेयी सरकार: POTA और सैन्य तैनाती, लेकिन कंधार प्रकरण से आलोचना।
- यूपीए सरकार: NIA और UAPA संशोधन, लेकिन 26/11 के बाद नरम रुख की आलोचना।
- मोदी सरकार: सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट, और राजनयिक कदम जैसे सिंधु जल समझौता निलंबन।
इन आंकड़ों को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि 2004-2014 का यूपीए कार्यकाल बड़े और घातक हमलों के लिए अधिक चर्चित रहा। मोदी सरकार ने आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में आक्रामकता दिखाई, जिससे घटनाओं में कमी आई, लेकिन हालिया हमले सुरक्षा चुनौतियों को रेखांकित करते हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए खुफिया तंत्र, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है।