Trump Tariff On India: अमेरिका की ओर से बढ़ते टैरिफ दबाव और डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के बीच भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद पर फिलहाल ब्रेक लगा दी है। देश की बड़ी सरकारी तेल कंपनियां इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (BPCL), हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) और मैंगलोर रिफाइनरी ने रूस से तेल मंगाना अस्थायी रूप से बंद कर दिया है। अब ये कंपनियां तेल खरीद के लिए मिडिल ईस्ट और अफ्रीका की ओर रुख कर रही हैं।
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सूत्रों के हवाले से खुलासा- Trump Tariff On India
खबरों के मुताबिक बीते एक हफ्ते से इन कंपनियों ने रूस से कोई नया कच्चा तेल आयात नहीं किया है। अभी तक ना तो इन कंपनियों ने और ना ही सरकार ने इस फैसले पर कोई आधिकारिक बयान दिया है। लेकिन अंदरखाने में यह माना जा रहा है कि यह कदम अमेरिका के ताजा फैसलों के मद्देनज़र उठाया गया है।
निजी कंपनियां अब भी रूस से खरीद रही तेल
जहां सरकारी कंपनियों ने कदम पीछे खींच लिए हैं, वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी निजी तेल रिफाइनरियां अब भी रूस से तेल मंगा रही हैं। वजह यह है कि इन कंपनियों के पास पहले से तय सालाना कॉन्ट्रैक्ट हैं। हालांकि जानकारों का कहना है कि अगर अमेरिका का दबाव और बढ़ा, तो निजी क्षेत्र पर भी असर पड़ सकता है।
ट्रंप का टैरिफ कार्ड
आपकी जानकारी के लिए बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ऐलान किया कि 1 अगस्त से भारत से आने वाले सभी सामानों पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा। इसके अलावा, उन्होंने रूस से तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद को लेकर भारत पर अलग से पेनाल्टी लगाने की भी बात कही है। ट्रंप ने करीब 90 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिया है और भारत को लेकर उनका रुख काफी सख्त हो गया है।
ट्रेड डील में अड़चन और नाराजगी
वहीं, भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही थी। पीएम नरेंद्र मोदी की ट्रंप से मुलाकात भी इसी सिलसिले में हुई थी। लेकिन बातचीत में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर सामने आया – कृषि क्षेत्र। भारत मक्का, सोयाबीन, डेयरी और बादाम जैसे उत्पादों के आयात पर छूट देने को तैयार नहीं है। सरकार का साफ कहना है कि ये फैसला देश के किसानों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। किसान संगठन पहले ही सरकार को ऐसे किसी समझौते के खिलाफ चेतावनी दे चुके हैं।
अमेरिकी मंत्रियों की तीखी टिप्पणियां
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत ने ट्रेड बातचीत की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में चीजें खिंचती चली गईं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत रूस से प्रतिबंधित तेल खरीद कर उसे रिफाइन कर दुनिया को बेच रहा है, जिससे वैश्विक नियमों का उल्लंघन हो रहा है। वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि भारत की रूस से तेल खरीद यूक्रेन में चल रहे युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि भारत की ऊर्जा ज़रूरतें बहुत बड़ी हैं और सस्ते विकल्पों की तलाश उसकी मजबूरी है।
अब आगे क्या?
फिलहाल भारत की सरकारी कंपनियों का यह कदम अमेरिका के साथ तनावपूर्ण रिश्तों को संभालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। यह अस्थायी रोक भविष्य में स्थायी भी बन सकती है, अगर टैरिफ और कूटनीतिक दबाव ऐसे ही बढ़ते रहे। भारत को अब अपनी ऊर्जा जरूरतों और वैश्विक दबावों के बीच संतुलन बिठाना होगा – और यह संतुलन आसान नहीं होगा।