UP Pratapgarh Couple Missing: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से हनीमून के लिए सिक्किम गए कौशलेंद्र सिंह और अंकिता सिंह की तलाश में 15 दिन बाद भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी है। इस बीच, पीड़ित परिवार सिक्किम में रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी है। परिवार के सदस्य, जो प्रतापगढ़ से सिक्किम तक गए थे, अब वहां के मंदिर में महामृत्युंजय जाप कर रहे हैं, और उनका विश्वास है कि जल्द ही उनके बेटे और बहू का पता चलेगा।
हनीमून पर गए थे, अचानक लापता हो गए- UP Pratapgarh Couple Missing
कौशलेंद्र और अंकिता की शादी 5 मई को हुई थी। इसके बाद, दोनों ने 25 मई को हनीमून के लिए सिक्किम यात्रा शुरू की थी। लेकिन 29 मई की रात 8 बजे के बाद दोनों का कोई पता नहीं चला। उस रात अंकिता ने अपनी मां से बात की थी, लेकिन इसके बाद उनका फोन बंद हो गया। अगले दिन परिवार को सूचना मिली कि जिस गाड़ी में वे यात्रा कर रहे थे, वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। इस हादसे के बाद परिवार में शोक की लहर दौड़ गई और उन्हें लगा कि अब उनके बेटे-बहू का कुछ पता चलने का कोई रास्ता नहीं बचा है।
रेस्क्यू ऑपरेशन की जटिलताएं
कौशलेंद्र के चाचा, दिनेश सिंह, और अन्य परिवार के सदस्य सिक्किम पहुंच गए थे और घटना स्थल तक भी पहुंचे। दिनेश बताते हैं कि जब वे 31 मई को सिक्किम के जलपाईगुड़ी पहुंचे, तो उन्होंने घटनास्थल तक जाने की कोशिश की, लेकिन वहां के रास्ते बर्फबारी और लैंडस्लाइड की वजह से बंद थे। इसके बावजूद, प्रशासन ने उन्हें घटनास्थल तक पहुंचने में मदद नहीं की। 2 जून को एनडीआरएफ (नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) ने पहली बार रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन खराब मौसम और तीस्ता नदी के उफान के कारण इसे रोकना पड़ा।
प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
कौशलेंद्र के दूसरे चाचा प्रमोद सिंह का कहना है कि घटना के तुरंत बाद लोकल प्रशासन ने रेस्क्यू शुरू किया था, लेकिन उसमें कोई तेजी नहीं दिखाई गई। प्रमोद सिंह कहते हैं कि प्रशासन ने पहले दिन तो रेस्क्यू किया, लेकिन अगले दो दिनों में बारिश और नदी के तेज बहाव के कारण स्थिति और भी मुश्किल हो गई। बाद में जब एनडीआरएफ ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया, तो उन्हें जो कुछ भी सामान मिला, वह वीडियो कॉल के जरिए परिवार को दिखाया गया, लेकिन उसमें कौशलेंद्र और अंकिता का कोई सामान नहीं था।
प्रशासनिक असंवेदनशीलता और सर्च अभियान की सुस्ती
परिवार के लोग बताते हैं कि जब वे घटनास्थल पर पहुंचे, तो प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। उन्हें बताया गया कि वे घटनास्थल पर कोई सुधारात्मक काम नहीं कर सकते, और अधिकतर समय वीडियो कॉल और फोटो के जरिए ही सूचना प्राप्त होती रही। दिनेश सिंह ने यह भी कहा कि जब सर्च ऑपरेशन चल रहा था, तो एनडीआरएफ के जवान भी परेशान थे क्योंकि नदी के अंदर बड़े-बड़े पत्थर थे, जिनकी वजह से सर्च ऑपरेशन में कठिनाई आ रही थी।
परिवार का संघर्ष और प्रशासन से निराशा
कौशलेंद्र के पिता, शेर बहादुर सिंह, जिन्होंने शुरुआत में सिक्किम छोड़ने का मन बना लिया था, बाद में परिवार के समझाने पर वापस लौटने पर मजबूर हो गए। वे वीडियो संदेश के जरिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद की अपील कर रहे थे, लेकिन उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार से कोई मदद नहीं मिली। शेर बहादुर सिंह ने कहा, “अगर सरकार ने हमारी मदद की होती, तो शायद हम कुछ और हासिल कर पाते।” उन्होंने सिक्किम के मुख्यमंत्री से भी मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन इसके बावजूद राहत कार्य में कोई खास तेजी नहीं आई।
गांव में महामृत्युंजय जाप, परिवार का विश्वास
11 जून से, प्रतापगढ़ के राहाटीकर गांव के मंदिर में 51 हजार महामृत्युंजय जाप की शुरुआत हुई। परिवार के सभी सदस्य दिनभर पूजा-पाठ और भजन में व्यस्त रहते हैं, ताकि उनकी प्रार्थनाएं पूरी हो सकें। वे सभी उम्मीद करते हैं कि कौशलेंद्र और अंकिता जल्दी और सुरक्षित रूप से लौटेंगे। गांववाले भी उनके लिए प्रार्थना कर रहे हैं और चाहते हैं कि उनका दर्द जल्दी खत्म हो।
सिक्किम का पर्यटन और प्रशासनिक लापरवाही
सिक्किम की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है। लेकिन, पर्यटन के लिए उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च तक होता है। इसके बावजूद, सिक्किम प्रशासन ने निर्धारित समय से बाहर भी पर्यटकों को भेजने की अनुमति दी थी, और वह भी ऐसे स्थानों पर जहां रिस्क बहुत ज्यादा था। यह घटना एक उदाहरण बन गई कि किस तरह सिक्किम के पर्यटन उद्योग ने जिम्मेदारियां लेने में चूक की है।
परिवार की उम्मीद और प्रशासनिक चुनौती
कौशलेंद्र और अंकिता की लापता होने की घटना ने न केवल उनके परिवार को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्यों प्रशासन ने सही समय पर रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी नहीं दिखाई। अब, परिवार के लोग सिक्किम से लौट चुके हैं, लेकिन उनकी उम्मीदें अभी भी जीवित हैं। उनका विश्वास है कि जल्द ही उनका बेटा और बहू सही सलामत लौटेंगे। इस दुखद घटना से यह भी साबित होता है कि प्रशासन की असंवेदनशीलता और पर्यटन पर अत्यधिक निर्भरता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
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