Naxal Commander Hidma: आख़िरकार वह दिन आ ही गया जिसका सुरक्षा एजेंसियों को एक दशक से इंतज़ार था। वह दिन जब भारतीय सुरक्षा बलों ने देश के सबसे कुख्यात, सबसे हिंसक और सबसे रहस्यमय नक्सली चेहरे को ढेर कर दिया। बीजापुर-सुकमा बेल्ट का वो आतंक, जिसे माओवादी बटालियन-01 का सबसे बड़ा हथियार माना जाता था जिसका नाम था माडवी हिडमा। 25 मई 2013 के झीरम घाटी हत्याकांड से लेकर 2010 के ताड़मेटला नरसंहार तक, देश की एंटी-नक्सल ऑपरेशंस की फाइल खोलिए तो लगभग हर बड़े हमले के पीछे एक ही नाम उभरता है हिडमा।
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आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली जंगल में हुई भीषण मुठभेड़ में हिडमा की मौत केवल एक नक्सली का अंत नहीं है, बल्कि उन इलाकों के लिए राहत की सांस है जो दशकों से नक्सली दहशत में जी रहे थे। यह ऑपरेशन इतना जटिल था कि इसे सुरक्षा एजेंसियों ने “सबसे कठिन और निर्णायक एंटी-नक्सल वॉर” कहा।
घने जंगलों में 34 घंटे का रोमांचक ऑपरेशन (Naxal Commander Hidma)
यह मुठभेड़ अल्लूरी सीतारामाराजू जिले के मारेदुमिल्ली जंगलों में हुई। यह इलाका आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना तीनों राज्यों के त्रि-जंक्शन पर आता है। यही वह लोकेशन है जिसे नक्सली वर्षों से “सेफ जोन” की तरह इस्तेमाल करते रहे थे। जंगल इतने घने कि दिन में भी सूरज की रोशनी मुश्किल से पहुंचती है, और पहाड़ी रास्ते इतने उलझे हुए कि GPS भी कई बार धोखा दे जाए।
लेकिन इस बार सुरक्षा बलों ने बिल्कुल वैसी ही तैयारी की साइलेंट मूवमेंट, मल्टी-लेयर कॉर्डन, और लगातार तकनीकी निगरानी। इसके बाद जो हुआ वह किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था। मंगलवार सुबह करीब 6 बजे मुठभेड़ शुरू हुई, पर इसकी तैयारी कई दिनों से चल रही थी। 34 घंटे की निरंतर निगरानी के बाद कमांडो टीमों ने एक ऐसा घेरा बनाया जिसमें से हिडमा के बचने की कोई सम्भावना ही नहीं बची। इस भीषण एनकाउंटर में हिडमा के साथ उसकी पत्नी मदकम राजे और चार अन्य नक्सली भी मारे गए। मौके से भारी मात्रा में हथियार दो AK-47, पिस्तौल, सिंगल बोर बंदूक, गोला-बारूद और दस्तावेज़ बरामद हुए।
हिडमा कौन था? एक झौंपड़ी से निकलकर जंगलों का सबसे खौफनाक चेहरा
बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस शख्स ने 100 से ज़्यादा जवानों की हत्या वाले ऑपरेशंस को लीड किया, वह कभी 5वीं कक्षा से आगे पढ़ा ही नहीं था।
- नाम: माडवी हिडमा
- उम्र: 51 साल
- कद: 5 फुट 5 इंच
- इनाम: 45 लाख रुपये (कुछ राज्यों में कुल इनाम 1 करोड़ तक)
- विशेषज्ञता: घात लगाकर हमले, जंगल गोरिल्ला वॉरफेयर
- क्षेत्र: छत्तीसगढ़, आंध्र, तेलंगाना और महाराष्ट्र के घने जंगल
16 साल की उम्र में नक्सलियों में शामिल हुए हिडमा को संगठन ने पहले सांस्कृतिक टीम में रखा। वहीं से उसका ब्रेनवॉश शुरू हुआ। धीरे-धीरे उसने हथियार उठा लिए और अपनी फुर्ती, चालाकी और एरियल मैपिंग जैसी तकनीकें सीखकर वह जल्द ही संगठन का सबसे खतरनाक फील्ड कमांडर बन गया।
उसकी सबसे बड़ी पहचान थी निर्दयता और रणनीति। ताड़मेटला की घटना में 76 CRPF जवानों के शहीद होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां हिडमा का नाम सुनकर ही चौकन्नी हो जाती थीं। झीरम घाटी में 33 कांग्रेस नेताओं की हत्या भी उसी की प्लानिंग बताई जाती है।
हिडमा की खोज: 125 गांवों की मैपिंग, NTRO की मदद और महीनों की प्लानिंग
हिडमा को पकड़ना आसान नहीं था। वह लगातार लोकेशन बदलता रहता था, जंगलों के हर रास्ते को पहचानता था और सुरक्षा बलों की हर रणनीति का अंदाजा लगा लेता था। हिडमा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने महीनों तक बेहद सटीक और खामोश तरीके से काम किया। सबसे पहले उन्होंने उसके संभावित छिपने वाले इलाकों को चिन्हित करने के लिए 125 से ज्यादा गांवों की थर्मल और टेक्निकल मैपिंग करवाई। इसके साथ ही NTRO की मदद लेकर जंगलों में उसकी हर छोटी-बड़ी मूवमेंट पर लगातार नजर रखी गई। सीमावर्ती इलाकों में ड्रोन और हाई-टेक सर्विलांस सिस्टम तैनात किए गए, ताकि कोई भी संदिग्ध गतिविधि बच न सके। ऑपरेशन के दौरान बलों ने साइलेंट पेट्रोलिंग बढ़ाई, जिससे बिना शोर किए कमांडो हिडमा के नजदीक पहुंचते रहे।
वहीं, इंटेलिजेंस टीमों ने यह भी ट्रैक किया कि माओवादी नेटवर्क अपनी सपोर्ट लाइन कहां-कहां शिफ्ट कर रहा है, ताकि उसकी सप्लाई और संपर्क प्रणाली को कमजोर किया जा सके। इन सभी प्रयासों ने मिलकर आखिरकार उस कुख्यात कमांडर तक पहुंचने का रास्ता साफ किया, जो वर्षों से सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर था। जब इनपुट मिला कि हिडमा दबाव से बचने के लिए आंध्र प्रदेश की तरफ शिफ्ट हो रहा है, तब ग्रेहाउंड कमांडो को अलर्ट किया गया। रात 2 बजे ऑपरेशन शुरू हुआ और सुबह तक फायरिंग गूंजती रही।
दक्षिण भारत में माओवादी नेटवर्क की फिर से हलचल और 31 संदिग्ध गिरफ्तार
हिडमा के मारे जाने के साथ-साथ पुलिस ने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा,NTR, कृष्णा और काकीनाडा ज़िलों में बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान 31 संदिग्ध माओवादी गिरफ्तार हुए, 9 लोग देवजी के सुरक्षा गार्ड बताए गए और कई लोग साउथ बस्तर ज़ोनल कमेटी से जुड़े थे। इससे साफ संकेत मिलता है कि नक्सली दक्षिण भारत में अपना पुराना नेटवर्क फिर से खड़ा करना चाहते थे। हिडमा की मौजूदगी इसी प्लानिंग का अहम हिस्सा थी।
सोशल मीडिया पर हिडमा को मासूम बताने की कोशिश
जैसे ही 18 नवंबर को हिडमा के मारे जाने की खबर आई सोशल मीडिया पर वही पुराना पैटर्न दिखा। कुछ तथाकथित “शहरी नक्सल समर्थक बुद्धिजीवी” तुरंत सक्रिय हुए और हिडमा को “मासूम”, “न्याय के लिए लड़ने वाला”, यहां तक कि “पर्यावरण रक्षक” बताने लगे। दिल्ली में प्रदूषण के नाम पर हुए प्रदर्शनों में कुछ युवाओं ने “कितने हिडमा मारोगे” जैसे पोस्टर थाम लिए। कुछ ने तो पुलिस पर मिर्ची स्प्रे तक कर दिया और बैरिकेड तोड़कर सड़कें जाम कर दीं। यह वही नैरेटिव है जो हर बड़े नक्सली के मारे जाने के बाद बार-बार सामने आता है।
एनकाउंटर के बाद पत्रकार संजय ठाकुर को आया नक्सली का कॉल
हिडमा की मौत के तुरंत बाद एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया जिसने सुरक्षा एजेंसियों को भी चौंका दिया। पत्रकार संजय ठाकुर को एक नक्सली प्रवक्ता ने कॉल किया। कॉल करने वाले ने खुद को अनंत बताया और दावा किया कि वह महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ स्पेशल जोनल कमेटी (MMC Zonal Committee) का सदस्य है। उसने तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस, विष्णुदेव साय-विजय शर्मा और मोहन यादव को संबोधित एक लंबा संदेश पढ़ा।
इस संदेश की खास बातें थीं:
नक्सली नेतृत्व का हथियार छोड़ने का दावा
अनंत ने बताया कि केंद्रीय कमेटी के सदस्य सोनू दादा ने बदली परिस्थितियों का हवाला देते हुए हथियार त्यागने का निर्णय लिया है। इसके समर्थन में एक और वरिष्ठ नेता चंद्रण्णा भी आ गए हैं। MMC जोनल कमेटी भी इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।
15 फरवरी 2026 तक का समय मांगा
अनंत ने कहा कि वे सामूहिक निर्णय लेते हैं, इसलिए संगठन का संदेश हर साथी तक पहुंचाने में वक्त लगेगा। इसी कारण उन्होंने तीनों राज्यों की सरकारों से 15 फरवरी 2026 तक का समय मांगा।
सुरक्षा बलों से अभियान रोकने की मांग
अनंत ने अपने बयान में सरकारों से साफ तौर पर आग्रह किया कि फिलहाल सुरक्षा बल किसी भी तरह का ऑपरेशन न चलाएं। उनका कहना था कि पुलिस इनपुट मिलने पर भी एक्शन न करे और हालात को शांत बनाए रखने के लिए मुठभेड़ों पर पूरी तरह रोक लगा दी जाए। अनंत ने यहां तक मांग रखी कि आने वाले PLGA सप्ताह के दौरान भी सरकार किसी तरह की कार्रवाई न करे, ताकि दोनों पक्षों के बीच भरोसे का माहौल बन सके और संगठन अपने साथियों को संदेश पहुंचाकर अंतिम फैसला ले सके।
रेडियो पर संदेश प्रसारित करने की मांग
उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि उनके संदेश को कुछ दिनों तक रेडियो पर चलाया जाए ताकि वह जंगलों में मौजूद साथियों तक पहुंच सके।
सरकार–नक्सली बातचीत के लिए पत्रकारों को मध्यस्थ बनाने की अपील
अनंत ने संजय ठाकुर जैसे पत्रकारों से मध्यस्थता करने और बातचीत का रास्ता खोलने की अपील भी की।
क्या सभी नक्सली आत्मसमर्पण करेंगे?
एक धड़ा हथियार छोड़ने को तैयार है, जबकि दूसरा अभी भी संघर्ष जारी रखने की बात कर रहा है। इस पर संजय ठाकुर के सवाल पर अनंत ने कहा: “हथियारबंद संघर्ष मौजूदा समय में सफल नहीं हो सकता।
संगठन के अंदर मतभेद हैं, लेकिन उम्मीद है कि सब जल्द समझेंगे।”
स्पष्ट है कि हिडमा की मौत ने नक्सली नेतृत्व को अंदर तक हिला दिया है।
ऑपरेशन का महत्व: क्या नक्सलवाद अपने अंतिम दौर में है?
कईयों का मानना है कि मौजूदा हालात नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के सबसे बड़े संकेत दे रहे हैं। हिडमा का खात्मा, संगठन के वरिष्ठ नेताओं सोनू दादा और सतीश दादा का हथियार छोड़ने की इच्छा, अलग-अलग धड़ों के बीच आंतरिक मतभेद, सुरक्षा एजेंसियों की लगातार तकनीकी निगरानी, और दक्षिण भारत में नक्सलियों की बढ़ती गिरफ्तारियां, ये सभी मिलकर साफ इशारा करते हैं कि माओवादी आंदोलन अपनी सबसे नाजुक स्थिति से गुजर रहा है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि नक्सली पिछले पचास सालों में हर बड़े झटके के बाद खुद को दोबारा संगठित करते रहे हैं। इसलिए इसे अंतिम खत्म मान लेना फिलहाल जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि जमीनी हकीकत साबित करती है कि यह लड़ाई अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
