केरल में चमगादड़ों की वजह से मौत का कहर देखने को मिल रहा है। बता दें केरल के कोझिकोड जिले में चमगादड़ों द्वारा फैलने वाले वायरस से अब तक तीन लोगों की जान चली गई है और एक का इलाज चल रहा हैै। इस घातक निपाह वायरस से कई लोगों के भी संक्रमित होने की आशंका है। मीडिया सूत्रो के अनुसार इस बीमारी से करीब 16 लोगों की मौत हो चुकी है।
केरल के स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा ने कहा कि पिछले कुछ महीने पहले एक ही परिवार के तीन लोगों की जान जाने के साथ इस वायरस की पहचान कर ली गई थी। इस परिवार में एक व्यक्ति का इलाज अभी चल रहा है। इनके घर में एक कुआं है जिसमें चमगादड़ पाया गया था। लेकिन अब यह कुआं बंद कर दिया गया है। यह बहुत ही खतरनाक वायरस है जो चमगादड़ द्वारा फैल रहा है। इस वायरस से मनुष्य और जानवार दोनों में गंभीर बीमारी पैदा कर सकता हैं बता दें तीनों संक्रमित लोगों का इलाज करने वाली नर्स लिनी में भी वायरस फैलने की आशंका है।
सूत्रों के अनुसार, मलापुरम जिले में भी तेज बुखार और वायरस से होने वाले लक्षणों की वजह से पांच लोगों की मौत हो गई है। वैसे अभी तक यह पुष्टि नहीं हुई कि यह मौते निपाह वायरस की वजह से ही हुई हैं पर बताया जा रहा है यह सिर्फ संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से ही फैलता है।
आपको बता दें केरल में हाई अलर्ट कर दिया गया है और दो कंट्रोल रूम भी बनाये गये है ताकि लोगों की हालात पर निगरानी की जा सके। इसके लिए राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ;एनसीडीसी की उच्च टीम भी पहुंच गई है। उन मरीजो की सूची तैयारी की जा रही है जो वायरस के संपर्क में आ चुके हैं। इसके लिए मेडिकल कॉलेज में एक अलग वार्ड का इंतजाम भी किया गया है।
लक्षण
इस वायरस के प्रभाव में आने से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। दिमाग में जलन और तेज बुखार, आलस आना, कनफ्यूजन होना, भूलने की आदत हो जाना, जैसे लक्षण महसूस हो सकते है। वहीं इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति का अगर सही समय पर इलाज न हो तो उसकी मौत हो सकती है।
कैसे फैलता है ये वायरस
बता दें यह वायरस प्राकृतिक वाहक चमगादड़ द्वारा खाये फलों से हो जाता है। इस फल को खाने वाला व्यक्ति तो संक्रमित होता है वहीं उसके संपर्क में आये उस व्यक्ति को भी संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।
क्या है निपाह वायरस
यह एक ऐसा वायरस है जो इंसान और जानवरों में फैलता हैं। बता दें इस वायरस की पहचान 1998 को मलेशिया के कामपुंग सुनगेई निपाह में सबसे पहले हुई। इस वायरस का वाहक उस समय सुअरों को बताया गया था। बांग्लादेश में भी यह वायरस फैल चुका है। भारत में यह वायरस 2001 में सिलीगुड़ी में फैला था।
बचाव
इस निपा वायरस से बचने का एक ही तरीका है सही तरीके से देखभाल। रिबावायरिन नामक दवा को इस वायरस के लिए प्रभावी बताया गया है लेकिन मानव परीक्षणों में इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है। इसके बावजूद संक्रमित सुअर, चमगादड़ या अन्य संक्रमित जीवों से दूरी बनाये रखें।