Badri cow Farming: भारत में देसी गाय पालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जहां एक तरफ खेती में लागत कम करने और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए गायों का सहारा लिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर गाय के दूध, घी और दूसरे डेयरी प्रोडक्ट्स की मांग भी खूब बढ़ी है। इस बीच उत्तराखंड की एक खास देसी गाय “बद्री गाय” चर्चा में है, जिसे ‘पहाड़ों की कामधेनु’ तक कहा जाने लगा है। वजह है इसका बेहद पौष्टिक दूध और उससे बनने वाला महंगा घी, जिसकी कीमत बाजार में करीब ₹5,500 प्रति किलो तक पहुंच गई है।
दूध कम, लेकिन गुणों से भरपूर- Badri cow Farming
बद्री गाय कोई हाई यील्डिंग नस्ल नहीं है। ये रोजाना करीब 3 से 4 लीटर तक ही दूध देती है, जो आम डेयरी नस्लों के मुकाबले बहुत कम है। लेकिन जो बात इसे खास बनाती है, वो है इसका दूध और घी की गुणवत्ता। इस गाय के दूध में 8.4% तक फैट पाया गया है, जो इसे बाकी गायों और भैंसों से कहीं आगे खड़ा करता है।
सिर्फ फैट ही नहीं, बद्री गाय के दूध में A2 प्रोटीन, 9.02% टोटल सॉलिड्स और 3.26% क्रूड प्रोटीन जैसे जरूरी पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं। यही वजह है कि इसके दूध से बनने वाले प्रोडक्ट्स जैसे घी, मक्खन, छाछ आदि बाजार में खासे महंगे बिकते हैं। कई ऑनलाइन कंपनियां भी अब इसे शुद्ध और प्राकृतिक उत्पाद के रूप में ब्रांड करके बेच रही हैं।
कम दूध के चलते खत्म हो रही थी नस्ल
हालांकि, बद्री गाय की दूध देने की क्षमता कम होने के कारण इसे लंबे समय तक अनदेखा किया गया। डेयरी इंडस्ट्री में जहां ज्यादा दूध देने वाली नस्लें प्राथमिकता में होती हैं, वहीं बद्री जैसी गायें धीरे-धीरे हाशिए पर चली गईं। आज आलम यह है कि यह नस्ल धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई थी, और अब इसकी संख्या देशभर में कुछ सौ तक ही सिमट चुकी है।
लेकिन अच्छी बात ये है कि अब इसे बचाने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं। उत्तराखंड के चंपावत जिले के नरियाल गांव में स्थित पशुपालन प्रजनन केंद्र में बद्री गाय के संरक्षण और संवर्धन का काम किया जा रहा है। कई छोटे किसान भी अब इसकी अहमियत को समझने लगे हैं और इसे अपनी कमाई का जरिया बना रहे हैं।
पहाड़ी इलाकों की खास गाय
बद्री गाय हिमालयी इलाकों के लिए एकदम परफेक्ट मानी जाती है। ये गाय जंगलों और बुग्यालों (पर्वतीय चारागाहों) में चरकर ही दूध देती है। माना जाता है कि इन बुग्यालों में मिलने वाली जड़ी-बूटियां गाय के दूध को और भी पौष्टिक बना देती हैं। यही वजह है कि यहां के लोकदेवताओं को भी बद्री गाय का दूध अर्पित किया जाता है, और लोग इसे पवित्र मानते हैं।
स्थानीय मान्यता तो यह भी है कि ‘असली गौदान’ बद्री गाय का ही माना जाता है। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व तीनों बेहद गहरा है।
सरकार और संस्थाएं भी कर रही हैं सहयोग
बद्री गाय की अहमियत को देखते हुए अब उत्तराखंड डेयरी विभाग और यूकेसीडीपी (UKCDP) जैसे संस्थान भी इसके संरक्षण में जुटे हैं। इनका लक्ष्य है कि पहाड़ों की इस खास नस्ल को सिर्फ बचाया ही न जाए, बल्कि इसे स्थानीय किसानों की आय का मजबूत जरिया भी बनाया जाए।
Disclaimer: यह खबर विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स की जानकारी पर आधारित है। किसी भी डेयरी प्रोजेक्ट की शुरुआत करने से पहले विशेषज्ञ सलाह जरूर लें।
और पढ़ें: Ajab Gajab: झारखंड का रहस्यमय गांव, जहां ना कोई इंसान बचा, ना घर – बस रह गईं यादें और कब्रगाहें